पुरानी दिल्ली की तंग गलियों का मुजायका 'गली गुलियां'

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By Shyam Sharma
पुरानी दिल्ली की तंग गलियों का मुजायका 'गली गुलियां'
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इन दिनों रीयलस्टिक फिल्मों की हवा बनी हुई हैं लिहाजा आम आदमी को हीरो के तौर पेश करती इन फिल्मों के दर्शकवर्ग की अच्छी खासी तादाद हो चुकी है। इस सप्ताह निर्देशक दिपेश जैन की फिल्म ‘गली गुलियां’ एक ऐसे शख्स की कहानी है जो अपने आप में ही मग्न है पुरानी दिल्ली की तंग गलियों में घर बैठे ही आसपास के घरों का नजारा देखता रहता है।

फिल्म की कहानी

पुरानी दिल्ली की प्राचीन तंग गलियों का एक मकान की एक कोठरी में खुद्दूस यानि मनोज बाजपेयी रहता है। जो बिजली का बेहतरीन कारीगर हैं लेकिन उसे शायद ही किसी ने काम करते देखा हो। उसने अपने आजू बाजू के घरों में झांकने के लिये चोर कैमरे लगाये हुये हैं। जिनके द्धारा वो उन सभी घरों के बारे में अपनी कोठरी में बैठा जानकारी हासिल करता रहता है। वो ऐसा क्यों करता है ये तो फिल्म देखते हुये पता चलेगा। पड़ोस में रहने वाला रणवीर शौरी उसका इकलौता दोस्त है। वहीं पड़ोस में एक कसाई लियाकत यानि नीरज काबी अपनी खूबसूरत बीवी सुहाना गोस्वामी के साथ रहता है। उसका एक बारह बरस का बेटा है जिसे वो जबरदस्ती अपनी दुकान पर बैठाता है और बात बात पर कसाइयों की तरह उसकी पिटाई भी करता है। खुद्दूस को उसके द्धारा एक बच्चे पर किये जुल्म से भारी एतराज है, लिहाजा उसके बारे में जानकारी निकालने के लिये खुद्दूस उसके घर पर भी कैमरा लगाना चाहता है। जिसके लिये उसका दोस्त रणवीर सख्त खिलाफ है लेकिन बच्चे पर होते जुल्म से बचाने के लिये वो भी उसका साथ देता है। क्या खुद्दूस उस बच्चे का उसके बाप के जुल्मों से बचा पाता है। जवाब पाने के लिये फिल्म देखनी होगी।

एक अरसे बाद डायरेक्टर के तौर पर दिपेश जैन एक अलग सी कहानी को फिल्म में ढालने में सफल साबित हुये हैं। जो आम फिल्मों से कतई अलहैदा है। कहानी के अनुसार तलाश की गई लोकेशन कहानी को और ज्यादा रीयल बना देती है। इसके अलावा उन गलियों में रहने वालों का रहन सहन, बोलचाल सभी कुछ रीयल लगता है। इन सारी चीजों को कैमरामैन ने बहुत ही खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है। चुस्त स्क्रिप्ट कहानी को ट्रैक से जरा भी हिलने नहीं देती। संगीत कहानी को और मजबूत बनाता है।

मनोज बाजपेयी जैसे इस तरह के किरदारों को निभाने में सिद्धहस्त हो चुके हैं। खुद्दूस के किरदार को उन्होंने जिस तरह से निभाया है, देखते बनता है। दूसरे नबंर पर बच्चे के प्रति एक बेरहम बाप के किरदार में नीरज काबी बेमिसाल हैं। रणवीर शौरी ने अपनी साधारण सी सहयोगी भूमिका को खास बनाने की भरकस कोशिश की है। बाल कलाकार औम सिंह बढ़िया काम कर गया। सुहाना गोस्वामी के हिस्से में जो भी आया उसने उसे ईमानदारी से निभा दिया।

अगर आप लीक से हटकर फिल्में देखने और मनोज बाजपेयी के अभिनय के शैदाई हैं तो फिल्म जरूर देखें।

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