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रेटिंगः एक स्टार
निर्माताः विकास बहल,जैकी भगनानी,वासु भगनानी, दीपषिखा देषमुख
लेखकः विकास बहल
निर्देषकः विकास बहल
कलाकारः अमताभ बच्चन, टाइगर श्राफ,कृति सैनन, एली अवराम, रहमान, जमील खान,गिरीष कुलकर्णी, श्रुति मेनन,जैद बाकरी,राॅब हौरेक्स व अन्य...
अवधिः दो घंटे 14 मिनट
2014 में टाइगर श्राफ व कृति सैनन ने सफल फिल्म "हीरोपंती" से अभिनय जगत में कदम रखा था. अब पूरे नौ वर्ष बाद टाइगर श्राफ व कृति सैनन की जोड़ी विकास बहल निर्देषित फिल्म "गणपत" में आयी है,मगर फिल्म दस मिनट में ही बोर करने लगती है. डायस्टोपियन यानी भविष्य की कहानी बताने वाली वह फिल्म, जिनमें लोग न्याय और सच्चाई के लिए सिस्टम के खिलाफ आवाज उठाते नजर आते हैं. विकास बहल का दावा है कि वह ऐसी ही फिल्म लेकर आए हैं, मगर अफसोस यह अति घटिया फिल्म है.
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कहानीः
फिल्म की कहानी दलपति (अमिताभ बच्चन) से शुरू होती है. फिल्म में ऐसी दुनिया नजर आती है, जहां अमीर और गरीब के बीच की खाई काफी बढ़ गई है. युद्ध के फलस्वरूप संसार नष्ट हो चुका है. इस दौरान जो अमीर, शक्तिशाली और लालची लोग बच गए, उन्होंने 'सिल्वर सिटी' नाम से अपनी एक नई दुनिया बना ली. गरीबों के लिए इस दुनिया में कोई जगह नहीं है, उन्हें इस चांदी के शहर से बाहर निकाल दिया जाता है. यह गरीब,जो खाना, पानी के लिए भी मारे मारे फिरते हैं. अमीर अपने छोटे मोटे कामों के लिए गरीबों का शोषण करते हैं.यह बेचारे लोग, जो हर छोटी-छोटी चीज के लिए तरसते हैं, आपस में लड़ते हैं.आए दिन होने वाली इन लड़ाइयों को रोकने के लिए दलपति एक बॉक्सिंग रिंग बनाते हैं और नियम बनाते हैं कि उन्हें बॉक्सिंग रिंग में ही लड़ना है.
जब सिल्वर सिटी में रहने वाले जॉन व डालिनी को इस बात का पता चलता है तो वह इन मुक्केबाजों को सिल्वर सिटी ले जाती है और वहां उन्हें बॉक्सिंग सट्टेबाजी के लिए मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. एक तरह से यह दांव दलिनी और आमिर को बनाता है और गरीब और गरीब हो जाते हैं. इस बेबसी और निराशा के साथ अपना जीवन जीने वाला एक बच्चा झुग्गी में अपनी मां से पूछता है कि यह बुरा दौर कब खत्म होगा, तब वह जवाब देती है कि दलपति द्वारा भविष्यवाणी के अनुसार एक दिन गणपत आएंगे और उन्हें शुभकामनाओं के साथ आशीर्वाद देंगे. तब अच्छे दिन लौटेंगे.
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मंदिर के पुजारी दलपति ने भविष्यवाणी की थी कि एक दिन एक योद्धा आएगा जो इन गरीबो का उद्धार करेगा.अब यह योद्धा कौन होगा? इस पर दलपति ने जॉन के हाथों मरने से पहले कहा था कि वह उनका पोता तथा षिवा व मीरा का बेटा गणपति होगा. पर जॉन,मीरा को मारकर उनके बेटे यानी कि गुड्डू को अपने साथ अपनी सिल्वर सिटी में ले जाते हैं, जहां बड़े होने पर गुड्डू (टाइगर श्राफ ) हर दिन ग्यारह बारह लड़कियों के साथ अय्याषी करने व षराब में डूबा रहता है. एक दिन जॉन की प्रेमिका, गुड्डू के साथ चिपकी होती है,यह देखकर जॉन,गुड्डू को जिंदा दफना देने का आदेष देता है,पर जॉन का एक सहायक गुड्डू को गरीब बस्ती में जाकर षिवा से मिलने के लिए भेज देता है. षिवा हर किसी को मार्षल आर्ट व बिना हथियार लड़ने की षिक्षा देेते हैं. षिवा को लगता है कि दलपति की भविष्यवाणी के अनुसार ही गणपत आया है. पर गणपत अय्याषी करने में माहिर है. वह किसी से लड़ने में सक्षम नही है और न ही षिवा से मार्षल आर्ट व लड़ना सीखना चाहता है. पर गणपत उर्फ गुड्डू को जस्सी से प्यार हो जाता है. तब जस्सी नाटक रचती है, और एक ताकतवर इंसान जस्सी (कृति सैनन) को अपने साथ ले जाता है, जिसके हाथांे गणपत घायल हो जाता है. उसके बाद वह षिवा से सब कुछ सीखकर ताकतवर और लड़ने में माहिर होकर कुष्ती में उस ताकतवर को हराकर जस्सी को छुड़ाने जाता है, पर वहां पर वह जॉन को बुला लेता है. गणपत उर्फ गुड्डू को कुष्ती में महारत देखकर जॉन, गुड्डू को अपने साथ ले जाते हैं. गणपति,जॉन के कुष्ती के व्यापार में भागीदार बनकर कुष्ती लड़ना षुरू करता है. और फिर अपने तरीके से दलपति की भविष्यवाणी को सही साबित करता है.
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समीक्षाः
कितनी दुःखद बात है कि विकास बहल की कथा पटकथा व निर्देषन के साथ टाइगर श्रॉफ जैसा एक्शन हीरा व कृति सेनन जैसी राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री और सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की फिल्म " गणपत" को दर्षक पांच मिनट बाद ही देखने से तोबा कर लेता है. पूरी कहानी में सिर्फ कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है. लगता है कि फिल्मकार ने महाभारत, गौतम बुद्ध व इतिहास की अन्य कहानियों का मिश्रण कर एक अजीबो गरीब कहानी गढ़ ली,पर कहानी के बीच तारतम्य नही बना सके.इतनी घटिया फिल्म पर दो सौ करोड़ लगाने वाले निर्माताओं की नजर मंे आखिर दर्षक कोई मायने नही रखते. कहानी का अता पता नही..पटकथा का अता पता नहीं..कभी भी कुछ भी घटित होने लगता है. कहीं भी गाना आ जाता है..फिल्म में मनोरंजन,इमोषंस,ड्ामा का भी घोर अभाव है.फिल्म का क्लायमेक्स अति घटिया है.
फिल्म की कहानी भविष्य की है,जिसमें गुड्डु मुंबई की मराठी हिंदी टपोरी भाषा में बात करते हैं, उनके दादा दलपति पंजाब के एक गांव के मुखिया लगते हैं और उनके माता-पिता ग्रीक पौराणिक कथाओं के पात्र लगते हैं. बॉक्सिंग मैच से लोगों को बचाना तर्क से परे है. कृति सैनन व टाइगर श्राफ के बीच रोमांस को भी निर्देषक ठीक से चित्रित नहीं कर पाए. मतलब सब कुछ भ्रमित करने वाली स्थिति है.
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एक तरफ गरीब बस्ती में रहने वाले गणपत की मां ग्रीक कैरेक्टर जैसी वेशभूषा में नजर आ रही हैं,तो वहीं कृति सेनन की मां साड़ी और बिंदी में नजर आ रही हैं. इस कॉलोनी में चीनी, विदेशी और भारतीय भी रहते हैं. लेकिन यह कहानी भारत की है. अब दर्षक समझ ही नही पाता कि वास्तव में सच क्या है. एक्शन दृष्यों के दौरान भगवान गणपति का बैकग्राउंड संगीत बजता है,इसे सेंसर बोर्ड ने पारित कैसे कर दिया,यह समझ से परे है.
अभिनय
दलपति के कैमियो किरदार में भी अमिताभ बच्चन अपनी छाप छोड़ जाते हैं. गणपति उर्फ गुड्डू के किरदार में टाइगर श्राफ डांस करना भूल गए हैं. कुष्ती के दृष्य बनावटी लगते हैं. इमोषनल दृष्यों मंे भी टाइगर एकदम सपाट चेहरे के साथ ही मौजूद रहते हैं. कृति सैनन पहली बार मार्षल आर्ट करते हुए नजर आयी हैं. उनके किरदार को ठीक से लिखा ही ही गया. षिवा के किरदार में रशीन रहमान जरुर अपनी छाप छोड़ते है. अन्य किसी भी किरदार में कोई ठीक से जंचता ही नहीं.एली अवराम भी निराष करती हैं.
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