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रानी का दमदार अभिनय 'हिचकी'

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By Shyam Sharma
रानी का दमदार अभिनय 'हिचकी'
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बायोपिक के दौर में दर्शक को एक से एक बढ़िया सच्ची कहानियों या उनसे प्रेरित फिल्में देखने को मिल रही हैं। उन्हीं में शामिल इस सप्ताह यशराज बैनर और निर्देशक सिद्धार्थ पी मल्होत्रा की फिल्म ‘हिचकी’ रिलीज हुई है। टोरेंट्स सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी से अवगत कराती इस फिल्म से रानी मुखर्जी ने करीब चार साल बाद वापसी की है।

फिल्म की कहानी

टोरेंट्स सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रस्त रानी द्वारा बात करते करते बार बार गले से अजीब सी आवाजें निकालने के तहत उसे करीब बारह स्कूल बदलने पड़े। बाद में बतौर टीचर नौकरी के लिये भी उसे कितनी ही बार रिजेक्ट होना पड़ा। आखिर नौकरी मिली भी तो उसे उसी स्कूल में, जंहा उसने खुद पढ़ाई की थी। उस पॉश स्कूल में उसे उन चौदह गरीब बिगड़े हुये, स्कूल मैनेजमेंट तथा अमीर घर के बच्चों द्वारा उपेक्षित बच्चों की क्लास दी जाती है। अपने आपको स्कूल टीचर और अमीर बच्चों के द्वारा उपेक्षित समझा जाने से अपमानित ये बच्चे किसी भी टीचर को अपनी शरारतों द्वारा टिकने नहीं देते, लेकिन रानी उन बच्चों से नफरत करने वाले टीचर नीरज कबी के विरोध के बावजूद उनकी योग्यता को पहचान उन्हें दूसरे बच्चों के समक्ष ला खड़ा करने में सफल होती है।

फिल्म यूएस में रहने वाले शिक्षक ब्रेड कोहेन की जीवनी पर आधारित है। दरअसल कोहेन खुद इस बीमारी के शिकार रहे हैं बावजूद इसके वे एक सफल टीचर साबित हुये। उनके द्वारा लिखी बुक पर वहां एक फिल्म भी बन चुकी है। निर्देशक सिद्धार्थ ने फिल्म में टोरेंट्स सिंड्रोम नामक बीमारी से ग्रस्त किरदार की दुश्वारियों को प्रभावशाली तरीके से दिखाया है। हालांकि शुरू में बात बात पर गले से अजीब सी आवाजें निकालता रानी का किरदार डिस्टर्ब करने जैसा लगता है लेकिन कुछ देर बाद दर्शक उस बीमारी को समझते हुये उसे हमदर्दी के तहत देखने लगता है। पहले भाग में कहानी काफी दिलचस्प और नयापन लिये हुये है, लेकिन दूसरे भाग में वो ऐसे जाने पहचाने दृश्यों में तब्दील हो जाती है जो पहले भी कितनी ही फिल्मों में दिखे जा चुके हैं। जैसे अमीर गरीब का खेल, अंत में गरीब का अमीर को मात देना वगैरह वगैरह। सबसे बड़ी बात कि दर्शक को आगे की कहानी पहले से पता होती है। इसके अलावा क्लाइमेक्स और दिलचस्प बनाया जा सकता था। कॉनवेंट स्कूलों में अमीर गरीब के भेद भाव को दर्शाती इस फिल्म के संवाद अच्छे हैं, लेकिन पटकथा और चुस्त की जा सकती थी, लोकेशन तथा कैमरावर्क अच्छा है। म्यूजिक के तहत हिचकी और मैडम जी आदि गाने कर्णप्रिय बन पड़े हैं।

शानदार कमबैक

अभिनय की बात की जाये तो चार साल बाद रानी मुखर्जी की वापसी एक बेहतरीन अभिनेत्री की तरह ही हुई है। कहने का तात्पर्य कि शादी और बेटी होने के बाद भी रानी की अभिनय प्रतिभा कहीं डिस्टर्ब नहीं हुई, हां पता नहीं क्यों बतौर स्टार उसकी पर्सनेलिटी की चमक में कमी आई है। विरोधी टीचर की भूमिका में नीरज कबी ने सहजता से अपनी भूमिका निभा दी है जो उनके एक अच्छा एकटर होने की ताकीद करती है। रानी के मां बाप की भूमिका में सचिन, सुप्रिया पिलगांवर को देख अच्छा लगा। बाकी स्कूल के बिगड़े हुये तथा उपेक्षित गरीब बच्चों के किरदार में सभी बच्चों ने शानदार अभिव्यक्ति दी है।

रानी मुखर्जी के शानदार अभिनय के लिये फिल्म देखी जा सकती है।

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