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टोटल कन्फ्यूजन 'इश्क तेरा'

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By Shyam Sharma
टोटल कन्फ्यूजन 'इश्क तेरा'
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मल्टी पर्सनेलिटी डिसआर्डर यानि एक शख्स के भीतर दो व्यक्ति। ये एक ऐसी बीमारी है जो फिल्मों का हमेशा पंसदीदा विषय रहा है। इस विषय को लेकर निर्देशक जो जो डीसूजा की फिल्म ‘ इश्क तेरा’  इस सप्ताह रिलीज हुई पूरी तरह से एक कन्फयूज फिल्म साबित होती है । बस फिल्म की विषेश बात ये है कि इस बार इस बीमारी का शिकार हीरो नहीं बल्कि हीरोहन बनी है।

फिल्म की कहानी

ऋषिता भट्ट का बाप शहबाज खान पहले अपनी बीवी से धंधा करवाता है लेकिन अब वो अपनी जवान बेटी को भी इस धंधे में लाना चाहता है। अपनी बेटी को उसके बाप से बचाने के चक्कर में ऋषिता की मां और उसका छोटा भाई, अपने ही बाप की गोली से मारे जाते हैं। ऋषिता को एक शख्स मोहित मदान बचा लेता है और बाद में उससे शादी कर लेता है। लेकिन शादी के बाद पता चलता है कि ऋषिता मल्टी पर्सनेलिटी डिसआर्डर नामक बीमारी का शिकार है। उसमें कल्पना और लैला दो ओरतें हैं जिनमें कल्पना पढ़ी लिखी है जबकि लैला एक बदकार ओरत है। उसकी एक छह साल की बेटी भी है। ऋषिता एक ऑफिस में काम करती है उसका बॉस मनोज पाहवा एक दिन उसे एक क्लब में देखता है जहां वो लैला है तो वो उसे पाने की कोशिश करता है। उसी प्रकार उसका कलीग उसे अपनी बातों से प्रभावित कर उसके साथ हमबिस्तर होने में कामयाब हो जाता है। मोहित हर वक्त उसके साथ है और एक मनोचिकित्सक से ऋषिता का इलाज करवा रहा है। अचानक जेल से ऋषिता का बाप बाहर आ एक बार फिर अपना पुराना धंधा शुरू करते हुये बच्चों की किडनेपिंग करता हैं जिसमें वो ऋषिता की बेटी को भी किडनेप कर लेता है। ऋषिता अपनी बेटी को बचाने के लिये अपने बाप को गोली मार देती है। इसी के साथ फिल्म समाप्त होती है।

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बेसिकली फिल्म की कहानी एक ऐसी ओरत की है जिसे मल्टी डिसआर्डर नामक बीमारी है। उसे उसका पति बहुत प्यार करता है। लेकिन डायरेक्टर की बात की जाये तो पता नहीं वो क्या कहना चाहता था क्योंकि एक सिंपल सी कहानी में उसने अनेक क्न्फयूजन खड़े कर दिये, जैसे ऋषिता को बचाने अचानक मोहित कहां से आ जाता है और फिर आनन फानन में ऋषिता उससे शादी कर लेती है।  इस प्रकार छह साल बीत जाते हैं। उनकी छह साल की बेटी है। लेकिन क्या वजह है, कि ऋषिता अपने पति के साथ नहीं रहती, ये साफ नहीं हो पाता। मोहित शुरू से अंत तक क्न्फयूज रहता है उसे पता ही नही क्यों उसे राहुल से कबीर बना दिया जाता है। ऋषिता का दूसरा रोल लैला लोगों के साथ हम बिस्तर होता रहता है। वो अपने ऑफिस के कलीग के साथ हम बिस्तर होती है लेकिन क्यों और वो खुद उसके जन्मदिन पर मोहित के खिलाफ जाकर अपनी बेटी के साथ उसके जन्मदिन में शामिल होती हें जहां वो उसके और उसकी बेटी के ड्रिंक में नशे की गोलियां डाल देता है। जब मोहित उसका हम बिस्तर वाला वीडियो दिखाता है तो वो उल्टा उसी पर भड़कते हुये उसे अपने घर से निकाल देती है। क्लाईमेक्स में अचानक शहबाज जेल से आकर उसकी बच्ची को किडनेप कर लेता है कैसे। फिर वो अपने बाप को गोली मार देती है। बाद में क्या उसकी बीमारी ठीक हो पाती हैं, क्या वो मोहित के साथ रहने लगती है। मतलब अंत तक फिल्म में सवाल ही सवाल हैं जिन्हें झटक कर दर्शक किसी तरह फिल्म से पीछा छुड़ा बाहर की और भागता है ।

साधारण अभिनय

ऋषिता भट्ट दो भूमिकाओं में लेकिन अंत तक वो दोनों में से एक भी भूमिका ढंग से नहीं निभा पाती। इसी प्रकार मोहित मदान अपनी भूमिका को लेकर शुरू से अंत तक क्न्फयूज  नजर आता हैं, क्योंकि उसे पता ही नहीं कि उसे करना क्या है। ये सब कमजोर और कन्फयूज निर्देशन की बदौलत था। शायद इसलिये शहबाज खान, गणेश यादव, अमन वर्मा तथा मनोज पाहवा जैसे बढ़िया अदाकर भी वेस्ट किये नजर आते हैं।

अंत में दर्शकों को बताने की जरूरत नहीं कि वे इस तरह के क्न्फयूज निर्देशक की क्न्फयूज फिल्म से दूर ही रहेगें।

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