रेटिंग **
फिल्म हंसी तो फंसी के बाद सिद्धार्थ मल्हौत्रा और परिणति चोपड़ा की जोड़ी का अच्छा खासा क्रेज रहा है, इसी क्रेज के तहत निर्देषक प्रशांत सिंह ने बिहार में प्रचलित जबरिया विवाह को फिल्म का विषय बनाया । लेकिन कहानी को वे बिखरने से नहीं रोक पाये और एक हद तक फिल्म की मेन कास्ट भी मिस फिट लगी ।
कहानी
पटना का प्यौर बिहारी बाहुबली अभय सिंह यानि सिद्धार्थ सिंह अपने पिता हुकुम सिंह यानि जावेद जाफरी के कहने पर वो अच्छे पढे लिखे, लेकिन दहेज के लोभी लड़कों को जबरन पकड़ ऐसी लड़कियों से विवाह करवाने में एक्सपर्ट है, जिनके घरवाले दहेज नहीं दे सकते । अभय के गैंग में अच्छे खासे गबरू जवान हैं जो हमेशा उसका साथ देने में आगे रहते हैं । दरअसल उसे लगता है कि जबरन शादी करवा कर वो कोई पुण्य कमा रहे है। बेशक सिद्धार्थ एक दबंग बाहुबली है लेकिन वो अपने पिता से बहुत डरता है और उनके सामने चाहकर भी कुछ नहीं कर पाता । बबली यानि परिणति चोपड़ा जो कभी सिद्धार्थ के बचपन का प्यार रही, लेकिन बाद में दोनों बिछुड़ गये । एक शादी में दोनों एक बार फिर मिलते हैं, हालांकि बबली भी सिद्धार्थ की तरह दबंग है, उसने प्यार में धोखा देने वाले को नैशनल टीवी पर खूब धोया है लिहाजा उस कांड के बाद वो पूरे पटना में मशहूर है, इसलिये उसके सीधे सादे अध्यापक पिता यानि संजय मिश्रा और उनके मित्र नीरज इसलिये परेशान हैं क्योंकि वो जेल याफ्ता है लिहाजा उससे कौन शादी करेगा, जबकि वो एक पढ़ी लिखी मॉड्रन लड़की है । लगातार मिलते रहने पर बबली का सिद्धार्थ के प्रति प्यार एक बार फिर जाग उठता है । बबली को उसका दोस्त अपारशक्ति खुराना भी मन ही मन प्यार करता है, जबकि अभय सिंह का फोकस प्यार से कहीं ज्यादा चुनाव जीतने पर है । क्या बबली बाद में सिद्धार्थ को अपने प्यार का एहसास करवा पाती है ? क्या अभय सिंह अपने पिता के विरूद्ध जा बबली से षादी कर पाता है ? ये सब फिल्म देखते हुये पता चलेगा ।
अवलोकन
बेशक फिल्म का पहला भाग काफी दिलचस्प और मुस्कराने पर मजबूर करता है, लेकिन दूसरे भाग में फिल्म पूरी तरह से बिखर जाती है और कई दिशाओं में भटकने लगती है । सिद्धार्थ और परिणिति की कॅमेस्ट्री दर्शक फिल्म हंसी और फंसी में देख चुके हैं लेकिन यहां सिद्धार्थ अपनी शहरी और क्लासी इमेज से बाहर नहीं निकल पाते इसीलिये उनका बिहारी बोली और कलरफुल कपड़े पहनना जाया हो जाता है। उसी प्रकार पटना जैसे छोटे शहर में बेहद आधुनिक लिबासों में विचरती परिणिति भी अपने किरदार में नहीं घुस पाती । क्लाईमेक्स बेशक लंबा है लेकिन इमोशनल है । फिल्म में कई म्युजिक कंपोजर के रहते भी म्युजिक औसत दर्जे का रहा ।
अभिनय
सिद्धार्थ मल्होत्रा जहां अपनी क्लासी इमेज के रहते चाहकर भी अपनी भूमिका में नहीं उतर पाते,वहीं परिणिति का अभिनय अपने आधुनिक और क्लासी परिधानों में दब कर रह जाता है । सहयोगी किरदारों में जावेद जा़फरी, संजय मिश्रा, नीरज, अपारशक्ति खुराना, चंदनराय सान्याल तथा कुछ अन्य अंजाने कलाकारों का काम सराहनीय रहा ।
क्यों देखें
सिद्धार्थ और परिणिति को एक बार फिर साथ देखने के लिये फिल्म देखी जा सकती है ।