मूवी रिव्यू: भव्य किरदारों और माहौल से सजी 'कलंक' By Shyam Sharma 18 Apr 2019 | एडिट 18 Apr 2019 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर रेटिंग*** करण जोहर की फिल्में हमेशा बेहतर कहानी और म्यूजिक से लबरेज होती हैं। अभिषेक बर्मन द्धारा निर्देशित फिल्म ‘ कलंक’ उनकी ताजा अलौकिक कृति रिलीज हुई है। छुट्टियों की वजह से फिल्म दो दिन पहले ही रिलीज कर दी गई। आजादी से पहले कहानी में हिन्दू मुस्लिम और बंटवारे को लेकर कहानी कुछ यूं बुनी गई है। कहानी कहानी 1942 के लाहौर के पास स्थित हुसैनाबाद की है। जहां मुस्लिम बहुल आबादी में ज्यादातर लोग लोहार का काम करते हैं। कहा जाता हैं लोहारों की वजह से ही कभी लाहोर का नाम लोहारत था। वहां बलराज चौधरी यानि संजय दत्त नामक अमीर आदमी के परिवार में उनका बेटा देव चौधरी यानि आदित्य राय कपूर और उसकी पत्नि सोना़क्षी सिन्हा रहती है। केंसर की वजह से मरने से पहले सोनाक्षी अपने पति का दूसरा विवाह करवाना चाहती है। देव वहां एक अखबार निकालता है। रूप यानि आलिया भट्ट अपनी बहनों के भविष्य की खातिर मजबूरी वश देव से शादी कर लेती है। लेकिन यहां देव रूप से साफ कह देता है कि वो अपनी बीवी से बहुत प्यार करता है लिहाजा बतौर पत्नि उसे इज्जत मिलती रहेगी और हो सके तो वो उसे माफ भी करती रहेगी, लेकिन उसे उसका प्यार कभी नहीं मिलेगा। अकेली बौर होती रूप पास में हीरा मंडी बदनाम इलाके में रहती एक तवायफ बहार बेगम यानि माधुरी दीक्षित से गाना सीखना चाहती है। जिसके लिये सोनाक्षी रूप के दबाव में आते हुये अपने घरवालों को तैयार कर लेती है। हीरा मंडी में रूप की मुलाकात एक लोहार जफर यानि वरूण धवन से होती है। जफर एक ऐसा युवक है जिसे बाप का नाम नहीं मिला लिहाजा जो बचपन से ही एक नाजायज औलाद के तौर पर लोगों की तिस्कृत निगाहों का वायस बनता आया है। लिहाजा उसमें एक इंतकाम की आग है। जब उसे पता चलता है कि वो बहार बेगम और बलराज चौधरी की नाजायज औलाद है तो वो रूप को अपने प्यार के जाल में फंसाकर बलराज के खानदान से बदला लेना चाहता है। प्यार को तरसी रूप भी उसे दिल से प्यार करने लगती है। उधर अब्दुल यानि कुणाल खेमू जो मुसलिम लीग का नेता है वो हमेशा मुसलमानों को वहां रहते हिन्दुओं के खिलाफ भड़काता रहता है उसका कहना है कि अंग्रेज मशीने लाकर वहां सदियां से लोहार का काम कर रहे मुस्लिम लोगों से उनका रोजगार छीनना चाहते हैं। उस काम उनका साथ देव चौधरी अपने अखबार के जरिये दे रहा है। लिहाजा वो जफर को देव के खिलाफ भड़काता रहता है। अचानक दंगे भड़के उठते हैं। जफर को पता चलता हैं कि देव उसका भाई है तो यहां इंतकाम भूल कर वो अपने सोतेले भाई देव और रूप को बचाते हुये दंगो का शिकार हा जाता है। डायरेक्शन इस बार करण जोहर ने अभिषेक बर्मन पर कुछ ज्यादा ही भरोसा करते हुये एक भारी भरकम बजट की फिल्म बना डाली जिसके निर्देशन को लेकर अभिषेक एक हद तक ही सफल साबित हो पाये हैं। दो घंटे पचास मिनिट जितनी लंबी फिल्म में चकाचौंध है, लैविश सेट्स और लाजवाब कास्टयूम हैं बढ़िया संगीत है तथा बेहतरीन अदाकारी है लेकिन बेदम कहानी और कमजोर पटकथा और पहले भाग की धीमी गति के चलते कितनी ही जगह फिल्म बोझिल होने लगती है, लेकिन शानदार फोटोग्राफी और अलोकिक दृश्य दर्शक को बांधे रखते हैं। हुसैनाबाद का सेट बहुत ही शानदार है। इसके अलावा फिल्म का हर फ्रेम लुभावना है जो दर्शक को सम्मोहित करता है। बीच बीच में कहानी की लंबाई अखरती है। अभिनय बेसिकली पूरी फिल्म वरूण धवन और आलिया के कंधों पर टिकी हुई है। जहां वरूण ने एक ऐसे नाजायज आक्रोषित युवक की भूमिका को जिस कुशलता भरी अदायगी से निभाया है,वो उसे पूर्ण अभिनेता का दर्जा दिलवाती है। आलिया तो कितनी ही बार साबित कर चुकी हैं कि वो कितनी उम्दा अदाकारा है। यहां उसने बागी प्रेमिका की भूमिका को कमाल की अदायगी दी है। आदित्य राय कपूर गंभीर भूमिका में प्रभावित करने में पूरी तरह सफल हैं। माधुरी दीक्षित एक कुशल नृत्यंगना के तौर पर प्रभावी है। उनके चेहरे पर अब उम्र का दबाव दिखाई देता है, लेकिन उनकी भूमिका उनकी उम्र को सैटल करती है। संजय दत्त और सोनाक्षी सिन्हा की क्रमश छोटी भूमिकायें रही जिसमें कुछ खास करने के लिये नहीं था। उसी प्रकार कियारा अडवाणी भी संक्षिप्त सी भूमिका में दिखाई दी, लेकिन ग्रे रोल में कुणाल खेमू अभिनय में किसी से कम नहीं दिखाई दिये, उसने अब्दुल नामक खल भूमिका को बेहतर अदायगी दी। क्यों देखें एक काल्पनिक लेकिन भव्य सेट्स और बढ़िया गीत संगीत को लेकर बनी इस फिल्म को मिस करना भारी भूल होगी। #karan johar #alia bhatt #bollywood #Aditya Roy Kapoor #sanjay dutt #movie review #Kalank हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article