औसत दर्जे की फिल्म 'खजूर में अटके' By Shyam Sharma 18 May 2018 | एडिट 18 May 2018 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर अभिनेता हर्ष छाया ने ब्लैक कॉमेडी फिल्म ‘ खजूर में अटके’ से बतौर निर्देशक शुरूआत की है। जो प्रियंका चौपड़ा निर्मित मराठी फिल्म ‘ वेंटीलेटर’ का लगभग रीमक है। फिल्म की कहानी फिल्म में ऐसे तीन भाईयों की कहानी है जो अलग अलग शहरों में रहते हैं। बीच का भाई जो मुबंई में अपने बेटे और पत्नि के साथ रहता है अचानक अस्पताल पहुंच जाता है। मौत के करीब पहुंचे भाई को देखने के लिये दूसरे शहरों से बड़ा भाई मनोज पाहवा और छोटा विनय पाठक अपने परिवार के साथ मुबंई आते हैं। मरते भाई के पास बने रहने के पीछे भी इन दोनों भाईयों का स्वार्थ है। जो शुरूआत से ही क्लीयर है। अंत में क्या दोनों भाईयों का स्वार्थ उजागर हो पाता है ? अपनी पहली फिल्म के हर्ष न सिर्फ निर्देशन बल्कि लेखक तथा गीतकार भी हैं। उन्होंने मध्यम परिवार में प्रॉपर्टी को लेकर भाईयों और उनके परिवारों के बीच जो कुछ भी दिखाने की कोशिश की हैं वो एक हद तक सच है लेकिन न जाने क्यों वो नकली सा लगता है। जबकि मराठी फिल्म वेंटीलेटर में भावनात्मक दृश्य काफी रीयल थे लेकिन मौजूदा फिल्म में ऐसे दृश्यों का अभाव है। कॉमेडी के नाम पर जो दिखाने की कोशिश की गई वो सब कहीं न कहीं खटकता है। अभिनय के तहत मनोज पाहवा, सीमा पाहवा, विनय पाठक, सना कपूर, सारा कपूर, विनय पाठक तथा डॉली आहलूवालिया आदि कलाकारों ने अपनी अपनी क्षमता से बढ़कर अभिनय किया। अंत में फिल्म को लेकर यही कहना है, कि 'खूजर में अटके' एक औसत दर्जे की फिल्म साबित होती है। जिसे एक बार देखा जा सकता है। #Khajoor Pe Atke #movie review #Manoj Pahwa हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article