सिनेमा कितना बदल चुका है बावजूद इसके कुछे नये मेकर न जाने क्यों अस्सी के दशक में बनने वाली फिल्मों की छाया से अपने आपको अभी तक नहीं निकाल पाये हैं। इस सप्ताह श्यामल के मिश्रा निर्देशित फिल्म ‘ क्रिना’ (कृष्ण) रिलीज हुई है। कृष्ण और कंस से प्रेरित एक बेहद लचर फिल्म का सार कुछ इस तरह है।
फिल्म की कहानी
कहानी के अनुसार आदिवासी कबीले के सरदार शहबाज खान एक दुष्ट आदमी हैं जो अपने लोगों को हर प्रकार से सताता रहता है, यहां तक वो उनसे पानी तक वसूल करता है । एक बार उसे उसके कबीले की ओरत सुधा चंद्रन सरदार को पानी देने से मना कर देती है इस पर सरदार उसे कैद कर लेता है सुधा मरने से पहले उसे श्राप देती हैं कि कोई पैदा होगा जो उसके पतन का कारण बनेगा। इस पर सरदार कबीले के सभी प्रेग्नेंट ओरतों को कैद कर लेता है और उनके जन्मजाम बच्चों को मार देता है। लेकिन एक सैनिक की मदद से स्व. इन्दर कुमार और दीपशिखा का बच्चा क्रिना यानि पार्थ सिंह चौहान बच जाता है जो बाद में सरदार की मौंत का करण बनता है।
निर्देशक की अक्ल पर तरस आता है जो उसने एक ऐसी कहानी चुनी जिस पर अस्सी के दशक में फिल्में बना करती थी। कहानी तो ठीक लेकिन उससे कहीं अधकचरा उसका निर्देशन रहा, जिसमें न तो क्न्टीन्यूटी पर ध्यान दिया न ही भाषा पर और न ही वेषभूषा पर। कहने को तो आदिवासी कबीलों की कहानी है लेकिन वहां दूसरे कबीले का सरदार सुदेश बेरी जहां शुद्ध हिन्दी बोलता है वहीं कोई यूपी की हिन्दी बोलता है तो कोई भोजपुरी। अंत में क्रिना आराम से सरदार का खत्मा कर अपने मांबाप को जेल से छुड़ा आजाद कर देता है।
हालांकि सभी कलाकार अनुभवी हैं जैसे शाहबाज खान, सुधा चन्द्रन, सुदेश बेरी, इन्दर कुमार, दीपशिखा आदि। इन सभी ने बिना निर्देशन के अपने अनुभवों के तहत अपनी अपनी भूमिकायें निभाई हैं। क्रिना की भूमिका में फिल्म के प्रोड्यूसर हरविन्दर सिंह चौहान का बेटा पार्थ सिंह चौहान है जिसे अभिनय का कखग तक नहीं आता। हां तनिषा शर्मा अपनी खूबसूरती और अभिनय से ध्यान खींचती है।