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रेटिंग***
पश्चिमी सभ्यता से कई चीजें यहां लोकप्रिय हुई हैं या हो रही हैं। उनमें लिव इन रिलेशनशिप भी तेजी से अपनाई जा रही है। लेकिन ये अभी शहरों तक ही है। छोटे शहरों और कस्बों में इसका तगड़ा विरोध है। इसी विषय को निर्देशक लक्ष्मण उतेकर ने कॉमेडी में घोलकर फिल्म ‘ लुकाछुपी’ बनाई हैं जो लिविंग के फेर में पड़े एक छोटे शहर के जोड़े की तकलीफों को हास्य के रंग में दर्शाती है।
कहानी
मधुरा जैसे छोटे शहर में घटने वाली इस कहानी का पात्र गुडडू यानि कार्तिक आर्यन वहां केबल चैनल का स्टार रिर्पोटर है और अब्बास यानि आपरशक्ति खुराना उसका साथी है। वहां एक नेता त्रिवेदी यानि विनय पाठक जो संस्कृति ग्रुप के सर्वेसर्वा हैं। जो लिव इन रिलेशन के सख्त खिलाफ हैं। उनकी इकलौती बेटी रश्मि यानि कृति सैनन जो दिल्ली से जर्नलिज्म का कोर्स करके आई है और वो इंटर्नशिप के लिये केबल चैनल को चुनती है। वहां उसे गुडडू से प्यार हो जाता है। कहानी उस वक्त दिलचस्प हो उठती है जब रश्मि कुछ दिन गुडडू के साथ लिव इन में रहते हुये उसे परखने के बाद शादी करना चाहती है जबकि रष्मि के पिता संस्कृति ग्रुप के तहत पहले तो अभिनेता नाजिम खान के लिव इन में रहने के खिलाफ शहर से उसकी फिल्में उतरवा देते हैं यहां तक उसकी फिल्मों पर भी बैन लग जाता है। यही नहीं उसके कार्यकर्ता प्रेमियों को पकड़ उनका मुंह काला कर देते हैं यानि उनका कहर मथुरा के कपल्स पर बरस रहा होता है। ऐसे में गुडडू का दोस्त अब्बास उन्हें एक तरकीब सुझाता है कि वे चैनल के लिये एक स्टोरी करने के लिये ग्वालियर जा रहे हैं लिहाजा बीस दिन के असाईनमेंट में दोनों ग्वालियर में लिव इन करके एक दूसरे को आजमा सकते हैं। ग्वालियर में दोनों एक किराये का घर लेकर पति पत्नि बन कर रहते हैं लेकिन गुडडू के भाई के साले यानि पंकज त्रिपाठी की बदौलत दोनों की पोल खुल जाती है । वो गुडडू के परिवार को ग्वालियर बुला लेता है। परिवार के लोग बडे भाई से पहले षादी करने के लिये गुडडू को कोसते हुये, उनका रिष्ता स्वीकार कर लेते हैं और उन्हें घर ले आते हैं। अब दोनों के सामने सबसे बड़ी समस्या है कि वे बिना शादी के कैसे रहे। बाद में वे बार बार शादी करने की कोशिश करते हैं लेकिन पकडे जाते हैं। क्या वे शादी करने में सफल हो पाते हैं। इसके लिये फिल्म देखनी होगी।
डायरेक्शन
निर्देशक ने लिव इन जैसे सामयिक विषय को बड़े दिलचस्प तरीके से उठाया है फिल्म हल्के फुल्के मुवमेंन्टस के साथ षुरू होती है, लेकिन दूसरे हिस्से में काफी दिलचस्प टर्न एंड ट्वीस्ट आते हैं जो लोगों को एक हद तक गुदगुदाते हैं। निर्देशक ने लिव इन और शादी के बहाने कई चीजों पर कटाक्ष किया है। फिल्म छोटे शहर की सोच को खूबसूरती से दिखाती है। फिल्म में कुछ चीजें हैं जो खटकती हैं जैसे लिव इन के दौरान गुडडू और रश्मि के घर वालों द्धारा उनकी सुध ने लेना तथा क्लाईमेक्स में त्रिपाठी जैसे नेता का एकाएक बदल जाना अखरता है। फिल्म का म्यूजिक कई संगीतकारों ने दिया है। फिल्म के दो गाने कोका कोला तथा पोस्टर लगवा दो टॉप पर चल रहे हैं।
अभिनय
कार्तिक आर्यन अपनी भूमिका में खूब जमे हैं। भूमिका को और ज्यादा विश्वसनीय बनाता है उसका मासूमियत भरा चेहरा। कृति सैनन एक बार फिर अपनी भूमिका में दमदार लगी है, उसने मॉड्रन युवती को विश्वसनीय ढंग से अभिव्यक्त किया है। विनय पाठक देर से चरित्र भूमिका में दिखाई दिये और काफी अच्छे लगे। पकंज त्रिपाठी के रोल में ज्यादा कुछ नहीं था बावजूद वे लोगों को हंसाने की भरकस कोशिश करते दिखाई देते हैं और एक हद तक सफल भी रहते हैं। इनके अलावा दोस्त की भूमिका में अपारशक्ति खुराना भी गुदगुदाने पर मजबूर करते हैं।
क्यों देखें
हल्की फुल्के हास्य के साथ एक नये विषय पर बनी ये फिल्म एक बार देखी जा सकती है।