Advertisment

मूवी रिव्यू: बेअसर रही 'मणिकर्णिका'

author-image
By Shyam Sharma
मूवी रिव्यू: बेअसर रही 'मणिकर्णिका'
New Update

इस सप्ताह की बहुचर्चित फिल्म ‘ मणीकर्णिका- क्वीन ऑफ झांसी’ का दर्षकों के अलावा बॉलीवुड में भी खासा इंतजार था। कृष तथा कंगना रनौत द्धारा निर्देशित ये एक बिग बजट फिल्म है। जिसमें रानी झांसी की शौर्य गाथा दर्शाई गई है।

कहानी

पेशवा की मुहूं बोली बेटी मणी यानि मनु बचपन से ही अपनी चचंलता के साथ बहादुर प्रवृति की लड़की थी। जिसे देखते ही झांसी के मंत्री राजा गंगाधर के लिये पंसद कर लेते हैं। मणी शादी होने के बाद झांसी आ जाती है। यहां आने के बाद उसे पता चलता है गंगाधर पूरी तरह अंग्रेजों तले दबे हुये हैं। इसके अलावा उनका कजन मौहम्मद जीशान अय्यूब जिसकी नजर झांसी के सिंहासन पर है लिहाजा वो अंग्रेजो का पिटठू बना हुआ है। अंग्रेज भी झांसी पर नजरे गढाये हुये हैं, उन्हें बस मौके की तलाष है। रानी को बेटा पैदा होता है लेकिन उसकी मुत्यु हो जाती है। इसके बाद रानी अपने मंत्री का बेटा गोद ले लेती है। गंगाधर के मरते ही अंग्रेज झांसी पर कब्जा करने के लिये आतुर हो उठते हैं लेकिन यहां रानी उनके सामने दीवार की तरह खड़ी हो जाती है। इसके बाद वो अंग्रेजो के साथ युद्ध कर उन्हें अपने जीते जी झांसी में घुसने नहीं देती।

डायरेक्शन

फिल्म शुरूआत से ही विवादों में फंसी रही। इसे पहले केतन मेहता बनाने वाले थे लेकिन कंगना ने फिल्म की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके बाद केतन मेहता ने कंगना पर केस कर दिया था। बाद में फिल्म की बागडोर राधा कृश्णा जगरलमुडी के हाथ में आ गई। लेकिन फिल्म खत्म होते होते खुद कंगना ने फिल्म के निर्देशन का जिम्मा ले लिया। उसने फिल्म का कुछ पोर्षन रिषूट भी किया। फिल्म का पहला भाग किरदारों के स्थापित होने में ही जाया हो जाता है। फिल्म में इतने किरदार हैं कि उनका ठीक से परिचय तक नहीं दिया गया। यहां तक रानी झांसी के किरदार में स्वंय कंगना भी बिखरी बिखरी सी रहती है। दरअसल निर्देशक किसी भी किरदार को तरीके से प्रस्तुत ही नहीं कर पाता। दूसरे भाग में फिल्म थोड़ी बहुत पटरी पर आ जाती है। मुख्य किरदार स्थापित हो उभर कर सामने आने लगते हैं। फिल्म के सेट भव्य हैं। इसके अलावा युद्ध के दृश्य प्रभावशाली हैं। शकर एहसान लॉय के संगीत में विजय भव गीत दर्षनीय बन पड़ा है। प्रसुन जोशी द्धारा लिखे संवाद साधारण हैं। कंगना इस बात के लिये बधाई की पात्र हैं कि वे रानी लक्ष्मी बाई पर फिल्म बनाने में सफल रही, जबकि इससे पहले कितने ही लोग ये फिल्म बनाना चाहते थे लेकिन सफल नहीं हो पाये। पूरी फिल्म के दौरान शिद्दत से एक बात जहन में आती रही कि काश ये फिल्म संजय लीला भंसाली बनाते।

अभिनय

कंगना रनौत रानी के किरदार में घुसने एक हद तक ही सफल हो पाई। वे सिर्फ युद्ध के दृश्यों में अपना प्रभाव छौड़ती है। राजा गंगाधर के किरदार में जस्सू सेन गुप्ता ठीक रहे। झलकरी बाई की भूमिका में अंकिता लांखडे को ज्यादा स्पेस नहीं मिला लिहाजा उसका किरदार गौण होकर रह जाता है। उसी प्रकार गुलाम मौहम्म्द गोस के किरदार में डेनी भी बेअसर साबित होते हैं। इनके अलावा  सहकलाकारों की लंबी फहरिस्त है  जैसे सुरेष ऑबेराय, कुलभूषण खरबंदा, अतुल कुलकर्णी, मौहम्म्द जीशान अय्यूब आदि इनमें एक भी किरदार ऐसा नहीं जिसे असरदार कहा जा सके।

क्यों देखें

एतिहासिक फिल्मों के शौकीन दर्शक फिल्म देख सकते हैं।

#Kangana Ranaut #movie review #Manikarnika the queen of Jhansi
Here are a few more articles:
Read the Next Article
Subscribe