रेटिंग****
अशोक नंदा जैसे डायरेक्टर हमेशा लीक से हट कर विषयों पर फिल्में बनाने के लिये जाने जाते हैं। लिहाजा जहां उन्होंने अंग्रेजी में‘ फायर डस्टर’ जैसी फिल्म बनाई, वहीं हिन्दी में ‘हम तुम और मॉम’ तथा ‘रिवाज’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। इसी सप्ताह उनके निर्देशन में फिल्म ‘ वन डे-जस्टिस डिलीवर्ड’ रिलीज हुई है जो हमारी न्याय प्रणाली पर खुलकर बात करती है।
कहानी
रिटायर्ड जज त्यागी यानि अनुपम खेर ऐसे लोगों को न्याय दिलाने का सकंल्प लेते हैं जो उन्हीं की अदालत में न्याय पाने से वंचित रह गये थे। वे उन्हें न्याय दिलाने के लिये कुछ अलग तरीके अपनाते हैं। दरअसल अपने बेटे को न्याय न मिलने पर एक मां जरीना वहाब आक्रोशित हो जज त्यागी को थप्पड़ जड़ देती है। रिटायर्ड होने के बाद भी वो थप्पड़ त्यागी को सालता रहता है लिहाजा वे कानून से बाहर जाकर, अपने तरीके से उन लोगों को कानून के सामने लाते हैं जो अपराधी होते हुये भी सबूतों के अभाव में कानून की पकड़ से बाहर थे। इन में एक डॉक्टर दंपति मुरली शर्मा, दीपशिखा, होटल मालिक राजेश शर्मा, मैकेनिक तथा एक राजनेता जाकिर हुसैन औश्र उसका पट्ठा हैं। पुलिस ऑफिसर कुमुद मिश्रा को इन सभी गायब हुये लोगों का सुराग नहीं मिलता तो एक स्पेशल क्राइम आफिसर लक्ष्मी राठी यानि ईशा गुप्ता को बुलाया जाता है। बाद में लक्ष्मी केस की तह तक पुहंचती है। लेकिन क्या वो इस केस से संबधित लोगों को पकड़ पाती है ? ये सब दर्शक फिल्म में देखेगें तो उन्हें ज्यादा मजा आयेगा।
अवलोकन
बेशक ये एक अच्छे और प्रेरणादायक सब्जेक्ट पर बनी लीक से हटकर फिल्म है। शायद किसी हिन्दी फिल्म में पहली बार किसी जज को फरयादी द्धारा जड़ा थप्पड़ स्तब्ध करने वाला सीन है। फिल्म की कथा,पटकथा तथा संवाद सभी प्रभावी हैं। डायरेक्टर ने शुरू से फिल्म पर अपनी मजबूत पकड़ बनाये रखी। फिल्म की कास्टिंग कमाल की है। लेकिन थ्रिलर फिल्म होने के बाद रोमांच थोड़ा कम लगा, अनुपम द्धारा अपराधियों के साथ ट्रीटमेंट में थ्रिल ज्यादा प्रभावी हो सकता था। फिल्म में तीन आइटम सांग हैं जो न भी होते तो फिल्म की कहानी पर कोई असर नहीं होता, दूसरे इशा गुप्ता अगर हरियाणवी न बोलती तो ज्यादा प्रभावशाली लगती। म्यूजिक की बात की जाये तो टूं हिला लो गीत काफी अट्रेक्टिव रहा। लोकेशंस और फोटोग्राफी फिल्म को और बड़ा बनाती हैं।
अभिनय
अनुपम खेर ने रिटायर्डमेंट से पहले अपने द्धारा कुछ दिये गये गलत फैसलों के बाद पश्चाताप से भरे जज की भूमिका को शानदार अभिव्यक्ति देते एहसास करवाया कि वे हमेशा से ही कितने बेहतरीन अभिनेता रहे हैं। इशा गुप्ता एक कुशाग्र दिमाग पुलिस ऑफिसर के तौर अपने तौर तरीको से दर्शकों का खूब मनोरंजन करती है, उसके ओर कुमुद के बीच एक संवाद जिसमें इशा कहती हैं कि चचा आप तो आपने तो अक्षय कुमार की तरह अपराधी को पकड़ा इस पर कुमुद कहते हैं कि आप भी तो किरण बेदी लग रही हैं। हां अगर वे हरियाणवी भाषा पर थोड़ा और मेहनत करती तो उनकी भूमिका में और ज्यादा रंग आ जाता। कुमुद मिश्रा इस कदर बढ़िया अभिनेता है कि वो किसी भी भूमिका में अपने आपको आसानी से ढाल लेते हैं। यहां भी वे एक नरम दिल पुलिस ऑफिसर के तौर पर अपना प्रभाव छौड़ जाते हैं। फिल्म की अन्य छोटी छोटी भूमिकाओं में मुरली शर्मा, राजेश शर्मा, जरीना वहाब, जाकिर हुसैन, कश्यप, मोनिका रावण तथा हेमा शर्मा आदि सारे कलाकारों का सहयोग बेहतरीन रहा।
क्यों देखें
लीक से हट कर बनी थ्रिलिंग फिल्मों के दीवाने दर्शकों के लिये फिल्म में काफी कुछ है लिहाजा वे इसे मिस न करें।