रेटिंग***
हमारे समाज में मोटी पतली काली लड़कियों को हेय दृष्टि से देखा जाता रहा है और ये पंरपरा आज की नहीं बल्कि सदियों से चली आ रही है । ये तो हुई महिलाओं की बात, अब अगर पुरूषों की बात की जाये तो वहां भी बाल रहित पुरूष समाज में हास्य के पात्र बनते रहे हैं। इस गंभीर बात को हास्य के रस में डुबो कर निर्देशक अमर कौशिक ने फिल्म ‘ बाला’ में प्रभावशाली ढंग से दिखाया है ।
कहानी
बचपन में बालमुकंद शुक्ला उर्फ बाला यानि आयुष्मान खुराना अपने चमकीले घने बालों को लेकर बहुत शेखी बधारा करता था। लेकिन पच्चीस साल की उम्र आते आते बालों ने उसका साथ छोड़ना शुरू कर दिया। उसे गंजा होता देख उसके बचपन की सहेली भी उसे छोड़ गई। हैरान परेशान बाला ने अपने बाल बचाने के लिये हर अच्छे बुरे नुख्से आजमाये लेकिन कोई भी नुख्सा उसे गंजा होने से नहीं रोक सका। बाद में उसका मोहल्ले में मजाक तो बनता ही है लेकिन नौकरी में भी उसका डिमोशन हो जाता है। वो एग्जिक्युटिव से फेयरनेस क्रीम बेचने वाला सेल्समैन बना दिया जाता है। उसकी लगातार शादियां टूट रही है। बावजूद इसके उसे अभी तक यकीन है कि उसके बाल दोबारा उग आयेगें, जबकि उसके बचपन की क्लासमेट लतिका यानि भूमि पेंडनेकर उसे बार बार बताती रहती है कि अब उसका चमन हरा भरा नहीं होने वाला। वह लतिका से भी चिढ़ता है। लतिका रंग से काली है लिहाजा उसे अपने गहरे रंग को लेकर बार बार अपमानित होना पड़ता है लेकिन पेशे से वकील लतिका एक हिम्मती लड़की है। एक बार बाला के पिता सौरभ शुक्ला उसे एक विग लाकर देते हैं जो उसकी लाइफ बदल देता है, उसकी जिन्दगी में फिर से बहार आने लगती है। इसी आत्मविश्वास के बल पर वो लखनऊ की टिक टॅाक स्टार परी यानि यामी गौतम को अपने प्यार में फंसा लेता है। बाद में उसे ये डर सताता रहता है कि कल अगर परी को उसके गंजेपन का पता चलेगा तो क्या होगा। शादी से पहले वो एसएमएस के जरिये परी को अपने बारे में बता देता हैं लेकिन वो एसएमएस किसी और के पास चला जाता है। परी को शादी के अगले दिन जब बाला के गंजेपन का पता चलता है तो वो उसे छोड़कर चली जाती है बाद में कहानी आगे बढ़ती हैं और अपने अंजाम तक पहुंचती है। क्या बाला को परी मिल पाती है ? खुद क्या बाला अपने गंजेपन को स्वीकार कर पाता है ? ये सब फिल्म देखते हुये पता चलने वाला है ।
अवलोकन
पिछले सप्ताह इसी सब्जेक्ट पर फिल्म उजड़ा चमन आ चुकी है लेकिन यहां निर्देशक की तारीफ करनी होगी क्योंकि उजड़ा चमन, बाला के आसपास भी नहीं है। दरअसल निर्देशक ने एक हास्य सब्जेक्ट को इस कदर गहराई से दर्शाया है कि फिल्म मनोरंजन के साथ साथ एक अच्छा खासा संदेष भी दे जाती है । निर्देशक ने कहानी में जगह, भाषा का खूब अच्छा इस्तेमाल किया है। कानपुर की इस कहानी के पात्र जब कानपुरिया एक्सेंट में संवाद बोलते हैं तो भरपूर हास्य पैदा होता है। पहला भाग काफी मजेदार और गतिवान है,लेकिन दूसरे भाग में भाषणबाजी कुछ ज्यादा ही पेल दी है। भूमि का काला मेकअप कुछ ज्यादा ही चमका दिया,उस पर ध्यान देना जरूरी था। संगीत की बात की जाये तो डांट बी शॉय जैसे गाने अच्छे बन पड़े हैं।
अभिनय
आयुष्मान खुराना अपनी फिल्मों के द्धारा बार बार एहसास करवाते रहे हैं कि वे एक हरफनमौला अदाकार हैं। इस तरह के रोल के लिये हिम्मत चाहिये जो आयुष्मान ने बिना किसी बात की परवाह किये बगैर दिखा दी और भूमिका को अपनी सुंदर अदाकारी से यादगार बना दिया। यामी गोतम ने लोकल मॉडल की भूमिका को खूबसूरती के साथ निभाया,वो काफी ग्लैमरस लगी है। भूमि लगातार विभिन भूमिकाओं के तहत अपने आपको एक परिपक्व अभिनेत्री साबित करने पर लगी है। सांड की आंख में एक साठ वर्षीय महिला के बाद इस फिल्म में उसने एक काली लड़की की भूमिका को बहुत ही शाइस्तगी से जीया है। इनके अलावा सौरभ शुक्ला, जावेद जाफरी, सीमा पाहवा, दिपिका चिखलिया तथा अभिषेक बनर्जी आदि सहयोगी कलाकार भी दर्शकों का भरपूर मनोरजंन करने में कामयाब रहे।
क्यों देखें
हास्य भरे मनोरंजन और बढ़िया संदेश वाली ये फिल्म देखते हुये दर्शक गदगद हो उठेगा।
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