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मूवी रिव्यू: हल्का फुल्का हास्य 'इक्कीस तारीख शुभ मुहूर्त'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: हल्का फुल्का हास्य 'इक्कीस तारीख शुभ मुहूर्त'

रेटिंग**

आज भी मिडिल क्लास परिवारों की समस्या लड़की की शादी में दहेज को लेकर है । निर्देशक पवन के चौहान ने ये समस्या अपनी फिल्म ‘इक्कीस तारीख शुभ मुहूर्त’ में हल्के फुल्के हास्य के तहत दर्शाई है।

नार्थ में मध्यम श्रेणी के परिवारों में देखा सकता है कि शादी के घर मे क्या कुछ होता है। मथुरा के रहने वाले पंडित गिरधर लाल शर्मा यानि संजय मिश्रा अपनी बेटी राधा यानि काजल जैन और आईएएस की तैयारी में लगे बेटे बनवारी यानि चन्द्रचूड़ राय के साथ रहते हैं। राधा पड़ोस में रहने वाले दुकानदार गोपाल यानि महेश शर्मा से प्यार करती है। बाद में गिरधर लाल को पता चलता हैं तो दोनों की शादी की मुहूर्त निकलवाते हैं जो उसी महीने की 21 तारीख का निकलता है। आगे गिरधर के सामने विकट समस्या पैसे की है। वहां उनका दोस्त बुलाकी यालि ब्रिजेंद काला उनकी मदद करते हुये सुझाता है कि वो पहले लड़के की शादी कर ले और बेटे की शादी में मिलने वाले दहेज से बेटी के हाथ पीले कर दे। इसके बाद गिरधर और बुलाकी दोनो मिलकर लड़की की तलाश करते हैं इसके बाद क्या कुछ होता है ये आगे की कहानी है।

निर्देशक ने मीडिल क्लास परिवार में शादी को प्वाइंट कर कहानी का ताना बाना बुना हैं जो हास्य पैदा करता है। फिल्म में कितनी ही सिचेवशन ऐसी हैं जो आपके आस पड़ोस के घरों में आपको अक्सर दिखाई दे जाती हैं। लेकिन गिरधर के घर में पूरे समय तक कॉमेडी उनके साथ नहीं चल पाती। बाप बेटे के बीच एक गाना है जो एक हद तक रूकावट पैदा करता है। पता नहीं क्यों निर्देशको को क्लाइमेक्स निपटाने की क्या जल्दी थी। अगर निर्देशक थोड़ा और ध्यान देता तो एक बेहतर फिल्म बन सकती थी।

गिरधर लाल की भूमिका में संजय मिश्रा लगता है पूरी तरह घुस जाते हैं उन्होंने रोल को पूरी तरह से जी कर दिखाया है। ब्रिजेन्द्र काला अपने चिरपरिचित अंदाज से दर्शकों का मनोरजंन करते हैं। जबकि उनका किरदार पूरी तरह से उभर कर नहीं आ पाया। इनके अलावा महेश शर्मा भी अपनी भूमिका में जमे हैं।

सब कुछ मिलाकर फिल्म एक औसत दर्जे की हास्य फिल्म साबित होती हैं। जिसे एक बार देखा जा सकता है।

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