कपिल शर्मा को शायद अपनी फिल्म के कमजोर होने का पहले से एहसास हो गया था लिहाजा उन्होंने प्रैस शो रखने में अंत तक आनाकानी दिखाई। वो तो फिल्म का पीआरओ अच्छा था जिसकी बदौलत मुझे अलग से फिल्म देखने को मिली। खैर ! फिल्म ‘फिरंगी’ की बात की जाये तो राजीव ढींगरा निर्देशित ये 1920 के समय की लव स्टोरी है जब हम अंग्रेजो के आधीन थे। लेकिन कॉमेडी में मास्टर डिग्री हासिल कर चुके कपिल इस बार रोमांस में फेल हो गये।
क्या है फिल्म की कहानी ?
मंगतराम उर्फ मंगा यानि कपिल शर्मा पंजाब के बहरामपुर गांव का मस्तमौला किस्म का ऐसा युवक है जो सब के काम आता है लेकिन वो बेराजगार है। एक दिन पास के गांव में उसे अपने दोस्त इनामुलहक की शादी में जाने का मौका मिलता है, वहां उसकी सरगी यानि इशिता दत्ता से आंखें चार हो जाती हैं जो राजेश शर्मा की बेटी और क्रांतिकारी लाला यानि अंजन श्रीवास्तव की पोती है। मंगा क्योंकि उल्टा पैदा हुआ था इसलिये उसे शफा है कि वो लात मार कर कमर की मोच ठीक कर देता है। उसकी इसी खूबी के तहत उसे ब्रिटिश अफसर एडवर्ड यानि डेनियल के पास अर्दली की नौकरी मिल जाती है। जब मंगा की दादी उसके लिये इशिता के घर रिश्ता मांगने जाती है तो उसका दादा यानि लाला किसी ऐसे लड़के को दामाद बनाने से मना कर देते हैं जो अंग्रेजो की नौकरी करता हो।
उस इलाके का राजा इन्द्रवीर सिंह यानि कुमुद मिश्रा एक अय्याश किस्म का इंसान है। जिसके साथ मार्क डेनियल यानि एडवर्ड पार्टनरशिप में शराब की फैक्ट्री खोलने के प्लान बनाता है और जो जमीन वे चुनते है उसके भीतर लाला का गांव आ जाता हैं जिसे खाली करने का शाही फरमान आ जाता है तो मंगा इशिता के घरवालों को प्रभाव में लाने के लिये कह देता है कि वो साहब से बात कर राजा का फरमान केंसिल करवा देगा, लेकिन राजा पूरे गांव को बेवकूफ बनाकर उनकी जमीन अपने नाम करवा लेता है।
इसका इल्जाम आता है मंगा के सिर। इस पर मंगा वादा करता है कि किसी भी तरह वो उनका गांव उन्हें वापस दिलवा कर रहेगा। बाद में मंगा राजा की लड़की प्रिसेंस शामली देवी यानि मोनिका गिल के साथ राजा की तिजोरी से गांव के कागजात चुराने का प्लान बनाता है। दरअसल मोनिका अपने पिता से इसलिये बागी हो जाती है क्योंकि राजा अपने फायदे के लिये उसकी शादी डेनियल के साथ तय कर देता है। बाद में क्या मंगा गांव वालों के कागजात वापिस ला गांव बचा पाता है ?
डायरेक्टर उनसे अभिनय नहीं करवा पाया
निर्देशक राजीव ढींगरा ने कहानी अच्छी चुनी, लेकिन पटकथा,कमजोर संवाद और फिल्म की धीमी रफ्तार तथा बचकाने क्लाईमेक्स की बदौलत कहानी एक कमजोर फिल्म में बदल जाती है, हालांकि फिल्म का प्रोडक्शन डिजाइन बेहद उम्दा रहा, उस दौर का माहौल और लुक प्रभावशाली है, इसके कैमरावर्क भी बढ़िया रहा, लेकिन किरदारों के कपड़ों वगैरह पर तो ध्यान दिया लेकिन उनकी हेयर स्टाइल आज की है लिहाजा कपिल, इशिता और मोनिका अपनी भूमिकाओं में नहीं घुस पाते।
फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी कपिल शर्मा साबित होते हैं, डायरेक्टर उनसे अभिनय नहीं करवा पाया, फिल्म का म्यूजिक भी साधारण रहा क्योंकि बाहर निकलने के बाद एक भी गीत याद नहीं रह पाता। सबसे अहम बात कि जिस कपिल को दर्शक जानते है वो फिल्म में शुरू से ही नदारद है। इसलिये दर्शक फिल्म से अंत तक नहीं जुड़ पाता।
प्रभावित नहीं कर पाये कपिल
जैसा कि बताया गया है कि इस बार कपिल अपनी इमेज बदलने के चक्कर में अपनी भूमिका में जरा भी प्रभावित नहीं कर पाते। इशिता दत्ता अपनी भूमिका में अच्छी लगती हैं इसी प्रकार राजा की पढ़ी लिखी लड़की के रोल में मोनिका गिल ने भी इमानदारी से अपनी भूमिका को अंजाम तक पहुंचाया।