बाबरी मस्जिद विवाद जो इतिहास में दर्ज एक नासूर की तरह हमेशा चुभता रहेगा। सरोज एन्टरटेनमेन्ट़ द्धारा निर्मित तथा अभिनेता सुनील सिंह द्धारा निर्देशित फिल्म ‘गेम ऑफ अयोध्या’ के तहत पच्चीस साल पुराने इस विषय को एक हद तक प्रभावशाली तरीके से दिखाने की कोशिश की गई है।
क्या हैं फिल्म कहानी ?
पत्रकार सुनील सिंह ने बीस साल पहले फैजाबाद में एक मुस्लिम युवती से शादी की थी इस शर्त के साथ कि वो अपनी पहली औलाद अपनी बीवी के दादी का दे देगें जिसका वो मुस्लिम ढंग से पालन पोषण करेंगी। उस दौरान उसकी और उसके मुस्लिम पत्रकार साथी की गलती से एक गलत खबर छप जाने के बाद कितने ही मुस्लिम मारे गये थे। जिसका प्राश्चित वो अपने पेपर में माफी नामा मांग कर करना चाहता हैं लेकिन उसका एडिटर मिलिंद गुणाजी उसे बाबरी मस्जिद पर सार्थक पत्रकारिता करने की सलाह देते हैं। सनील वापस फैजाबाद आता हैं और यहां उसे मुस्लिम लाइब्रेरियन हाजी जी यानि अरूण बक्शी मिलते हैं। उनकी वजह से इतिहासकार शात्री यानि मकरंद देशपांडे मिलते हैं जिनसे उसे बाबरी मस्जिद की वो सारी बातें बता चलती हैं जो असलियत में सच थी। बाद में वो उन सारी बातों को अपने लेखन द्धारा जनता के सामने लाता है।
फिल्म को बिना किसी कट के एफकैट ने पास किया
फिल्म अयोध्या की बाबरी मस्जिद विवाद का कच्चा चिट्ठा है जिसे काफी रिसर्च करने के बाद जमा किया गया। उस पर फिल्म शुरू होने वाली ही थी कि 2014 में होने वाले चुनाव के कारण रोक दी गई क्योंकि पता नहीं आने वाली सरकार का उनकी फिल्म के प्रति क्या रूख हो। खैर फिर फिल्म शुरू हुई और बनी लेकिन 2016 में सेंसर बोर्ड ने उस पर पहलाज पिहलानी प्रतिबंध लगा दिया लेकिन हाल ही में फिल्म को बिना किसी कट के एफकैट् ने पास कर ओके करार दे दिया गया। शायद इसे गुजरात में होने वाले चुनावों का प्रताप कहा जा सकता है।
अगर फिल्म की बात की जाये तो बाबरी मस्जिद इशू को लेकर बनाई गई इस फिल्म में दोनों पक्षों को लेकर समान बात की गई है। फिल्म में जो तथ्य पेश किये गये हैं तकरीबन सभी से दर्शक पहले से वाकिफ हैं। हां ये फिल्म उन लोगों के लिये महत्वपूर्ण हो सकती है जो उस वक्त पैदा होकर आज समझदार हो चुके हैं। बेशक फिल्म को इस सब्जेक्ट पर फिल्माई गई डाकूमेंट्री करार दिया जा सकता था अगर उसमें एक हिन्दू और मुसलमान युवती की लव स्टोरी न डाली होती। जो कहानी में स्वाभाविक लगने के अलावा दोनों समुदायों के खुलेपन का भी एहसास करवाती है।
सुनील सिंह ने निर्देशन के अलावा मुख्य किरदार भी निभाया है जिसमें वे एक हद तक स्वाभाविक लगे हैं। यंग पत्रकार की भूमिका में रोहन अच्छा लगता है तथा यंग मुस्लिम गर्ल पूजा तथा ओल्ड गर्ल की भूमिका अमनदीप ने भली भांती निभाने की कोशिश की है। इसके अलावा विशाल, मकरंद देशपांडे, अरूण बक्शी, एहसान खान तथा सविता बजाज आदि कलाकारों ने अपनी भूमिकओं के साथ न्याय किया है।