मूवी रिव्यू: संवेदनशील दर्शकों के लिए 'हामिद'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: संवेदनशील दर्शकों के लिए 'हामिद'

रेटिंग: 3 स्टार

कहानी

कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में चर्चित रही हामिद को हम मसाला फिल्म नहीं कह सकते। यह पिफल्म बेहद संवेदनषील है। फिल्म में अल्लाह और कश्मीर के मुद्दों पर सात साल के मासूम बच्चे हामिद के सवाल आपको विचलित करते और दिल को पिछला देते हैं। कहानी सात साल के हामिद (ताल्हा अरशद रेहशी) की है। यह स्कूल में पढ़ने वाला मासूम बच्चा अपने माता इशरत (रसिका दुग्गल) और पिता रहमत (सुमीत कौल) का लाड़ला है। रहमत नाव बनाने का काम करता है और शौकिया शायरी भी कर लेता है। वह अपने बेटे को अल्लाह और दुनिया से जुड़ी अच्छी-अच्छी सीख देता है। एक रात बेटे हामिद की सेल लाने की जिद को पूरा करने के लिए रहमत घर से निकलता है और फिर वापस नहीं आता। उस हादसे के बाद हामिद की जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। इशरत बेटे और खुद को भूलकर शौहर की खोज में लग जाती है। हामिद को पता चलता है कि उसका अब्बू अल्लाह के पास है और अब वह अल्लाह से अपने पिता को वापस लाने की जुगत लगाने लगता है। तभी उसे ये भी बताया जाता है कि 786 अल्लाह का नंबर है। अब हामिद को अल्लाह मियां से बात करके अपने अब्बू को वापस लाने की बात करनी है। हामिद जब अपने दिमाग का इस्तेमाल करता है और किसी तरह उस नंबर को दस डिजिट में बदलकर अल्लाह को कॉन्टैक्ट करता है, तो वह नंबर सीआरपीएफ के जवान अभय (विकास कुमार) को लग जाता है। अपने परिवार से दूर कश्मीर में ड्यूटी पर तैनात अभय स्वयं अपने ऐसे कृत्य के अपराधबोध से दबा हुआ है, जहां अनजाने में उसके हाथों एक मासूम की जान जा चुकी है और वह उस बोझ को कम नहीं कर पा रहा। इन्हीं मुद्दों से जुड़े कई सवाल खड़े करती है फिल्म।

निर्देशन

निर्देशक एजाज खान ने इससे पहले दो फिल्में बनाई हैं। इस फिल्म में उन्होंने कष्मीर के उन मुद्दों को दर्षाया है, जो सभी जानते हैं। उन्होंने सेना और कश्मीरियों का टकराव, अलगाववादियों द्वारा मासूमों और किशोरों को आजादी और अल्लाह के नाम पर बरगलाना, कश्मीर के गुमशुदा लोगों का सुराग मिलना, घर के मर्दों का गायब हो जाने के बाद बीवियों और बच्चों का अकेले रह जाने का दर्द आदि कई मुद्दों को बहुत ही संवेदनशीलता से छुआ है। फिल्म की लंबाई ही इसकी सबसे बड़ी कमजोरी है। संपादन भी कसा हुआ नहीं है।

अभिनय

बाल कलाकार ताल्हा की मासूमियत और अभिनय दिल को छू जाता है। उन्होंने हामिद की भूमिका को सच्चाई से जिया है। अपने शौहर को खोजती महिला के किरदार को रासिका ने बहुत ही सक्षम अंदाज में निभाया है। सुमीत कौल को बहुत ज्यादा स्क्रीन स्पेस नहीं मिला, मगर वे अपनी भूमिका में जान डाल देते हैं। अभय के रूप में विकास वर्मा बहुत ही सहज रहे हैं। कुल मिलाकर यह फिल्म संवेदनशील दर्शकों के लिए है।

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