रेटिंग**
हमारी फिल्मों में हीरो कितनी भी जटिल समस्याओं से घिरा हो, लेकिन आखिर में जीत उसी की होती है। लेखक निर्देशक दीक्षित कौल की फिल्म ‘ खमियाजा’ में ऐसा नहीं है बल्कि यहां तो कुछ भ्रष्ट लोगों की करतूत का खमियाजा एक निर्दोश आदमी को अपनी जान देकर चुकाना पड़ता है।
कहानी
लखनऊ का अनाथ नोजवान लेकिन पढ़ा लिखा अभिमन्यु यानि आलोक चतुर्वेदी एक कंपनी में सहायक मैनेजर के जॉब पर है। वो बड़ोदा की लड़की प्याली मुन्सी से प्यार करता है। प्याली के कहने पर वो बड़ोदा उसके पिता एहसान खान से मिलने आता है, लेकिन उसके पिता को उसके अनाथ होने पर भारी एतराज है। लिहाजा वे दोनों की शादी से इंन्कार कर देते हैं। रास्ते मैं अभिमन्यु एक पिटते हुये शख्स को बदमाशों से बचाता है। पता चलता है कि वो एक सोशल वर्कर है जो शहर के मंत्री के खिलाफ कुछ करने जा रहा था लिहाजा मंत्री के कहने पर उसके बदमाश उसे मारने आये थे। बाद में मंत्री उस सोशल वर्कर को मारने का ठेका एक भ्रष्ट पुलिस ऑफिसर को दे देता है। वो पुलिस वाला सोशल वर्कर के साथ अभिमन्यु को भी शूट कर देता है, लेकिन अभिमन्यु मरता नहीं बल्कि उसकी पकड़ से भाग जाता है। बाद में जो भी अभिमन्यु की मदद करता हैं वो पुलिस वाले का शिकार बन जाता है। एक दिन ऐसा भी आता हैं जब मजबूर होकर अभिनयु आत्म सर्मपण कर देता है, इसके बाद वो पुलिस वाला भरी सड़क पर अभिमन्यु का एनकाउंटर कर देता है। इस प्रकार भ्रष्ट लोगों के चक्कर में एक निर्दोष शख्स मारा जाता है।
डायरेक्शन
निर्देशक ने लीक से हट कर ऐसी फिल्म बनाने की कोशिश की है जो नायक को भी धरातल पर रखते हुये उसे आम आदमी की तरह ही ट्रीट करती है और अंत में वो हालातो का शिकार हो जाता है। फिल्म का ट्रीटमेंन्ट तथा कन्टेंट अच्छा है, पटकथा भी ठीक रही। फिल्म की कहानी के अनुसार ही फिल्म का संगीत है।
अभिनय
अभिनय की बात की जाये तो तकरीबन सभी कलाकार नये हैं। हालांकि मंत्री का किरदार और पिता की भूमिका में जाने पहचाने चेहरे हैं लेकिन बाकी सभी नये है। अभिमन्यु के किरदार में आर्टिस्ट बिलकुल फिट बैठता है। नायिका के किरदार भिने वाली अदाकरा भी ठीक रही। बाकी सहयोगी कलाकरों का सहयोग उल्लेखनीय रहा।
क्यों देखें
लीक से हटकर कुछ नया देखने वाले दर्शकों को फिल्म निराश नहीं करेगी।