रेटिंग***
आज इस कदर फास्ट लाइफ हो चुकी हैं कि इसकी लपेट में हमारी परपंराये भी आ चुकी है, निर्देशक मनोज शर्मा की फिल्म ‘ लाइफ में टाइम नहीं है किसी को’ में कुछ ऐसे सवाल खड़े किये हैं , जो नये और पुराने का फर्क समझाते है, लेकिन हास्य के तहत।
कहानी
राजस्थान के एक गांव में एक परिवार जिसमें अंजन श्रीवास्तव उनके दो बेटे गोविंद नामदेव और शक्ति कपूर हैं। शक्ति कपूर के दो बेटे हैं रजनीश दुग्गल और कृष्णा अभिषेक। गोविंद नामदेव ने शादी नहीं की लिहाजा वो शक्ति के बच्चों को ही अपने बच्चे समझते हैं। उन्होंने रजनीश को पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाया लेकिन कृष्णा ज्यादा नहीं पढा लिहाजा वो परिवार के साथ ही गांव में रहता है। गोविंद नामदेव रजनीश की शादी तय कर देते हैं, लेकिन उसी दौरान उन्हें पता चलता है कि रजनीश ने शहर में अपनी साथी यूविका चौधरी से षादी कर ली है। ये खबर सुनते ही दादा अजंन स्वर्ग सिधार जाते हैं, लेकिन मरने से पहले कह जाते हैं कि उनका दाहसस्ंकार उनका बड़ा पोता रजनीश ही करेगा। रजनीश अपनी पत्नि यूविका के साथ गांव आता है जो गोविंद को अच्छा नहीं लगता, क्योंकि उन्होंने कहा था कि वो अपनी गुजराती बीवी को साथ न लाये, वरना उनका मारवाडी समाज सो तरह की बातें बनायेगा। बाद में रजनीश समय का हवाला देते हुये दादा का परंपरागत तरीके से दाह संस्कार न कर इलैक्ट्रिक शवदाह ग्रह को प्राथमिकता देता है यही नहीं बाद में वो दादा की तेरहवी भी तेरह दिन की जगह पांच दिन में संपन्न करने के लिये कहता है -दरअसल शहर में रजनीश को कितने ही मरीजों के ऑपरेशन करने हैं जो उसी के इंतजार में बैठे हैं- यहां गोविंद भड़क उठते हैं और रजनीश पर सदियों से चली आ रहीं परंपराओं के विरूद्ध जाने के लिये उसे लताड़ते हैं। उसी वक्त उन्हें दिल का दौरा पड़ता है तो उन्हें रजनीष और यूविका दोनों मिलकर उन्हें बचा लेते हैं। उसके बाद समय की कीमत उनकी समझ में आती है और वे रजनीश से सहमत हो उसे पांचवे दिन ही शहर रवाना कर देते हैं।
अवलोकन
मनोज इससे पहले कई फिल्म बना चुके है, किसी भी विशय को हास्य में दिखाने की उन्हें महारत हासिल है। इस बार भी उन्होंने एक संवदेनशील विषय को बहुत ही खूबसूरती से एक पैकेज के तौर पर दर्शाया है, जिसमें कॉमेडी, इमोशन आदि सभी कुछ मौजूद है। जबकि विशय में कामेडी का स्कोप न होते हुये भी उन्होंने राजपाल यादव, गोपी खन्ना, टिक्कू तलसानिया जैसे कामेडियसं को बहुत ही खूबसूरती से इस्तेमाल किया। फिल्म में जंहा दर्शक हर दो मीनिट बाद ठहाके लगाता रहता हैं ,वहीं उसे इमोशनल होने के मौंके भी दिये गये हैं। फिल्म की पटकथा कसी हुई तथा संवाद चुटीले हैं, लेकिन म्युजिक औसत रहा।
अभिनय
पहली बार रजनीश दुग्गल ने हास्य और इमोषन दोनों में ही अपने अभिनय से खुष कर दिया, वहीं कृष्णा अपने चिरपरिचित अंदाज में ही हैं। यूविका चौधरी एक अरसे बाद दिखाई दी, हनीमून को लेकर उसने अच्छी कामेडी की। अंजन श्रीवास्तव, शक्ति कपूर और गोविंदनामदेव अपने अनुभव का बेखूबी इस्तेमाल करते दिखाई दिये। टिक्कू तलसानिया, गोपी खन्ना, हिमानी षिवपुरी और मुष्ताक खान जहां मेहमान भूमिका में भी हंसाने में कामयाब रहे, वहीं षुरू से अंत तक राजपाल यादव और हेमंत पांडे अपने पूरे रंग में थे,उन्होंने दर्षकों से खूब ठहाके लगवाये।
क्यां देखें
नये पुराने विचारों को समझने और कामेडी के रंग में ठहाके लगाने वाले दर्शकों के लिये फिल्म में बहुत कुछ है।
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