मंटो की जिंदगी का छोटा सा हिस्सा 'मंटो' By Shyam Sharma 21 Sep 2018 | एडिट 21 Sep 2018 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर फिल्मों के इतिहास को देखा जाए ग़ालिब को नजर अंदाज करते तो किसी राइटर पर फिल्म बनाने से फिल्ममेकर हमेशा बचते रहे हैं। यह हिम्मत अभिनेत्री डायरेक्टर नंदिता दास ने अपने दौर के विवादास्पद लेकिन साफगोहीं लेखक सहाअदत हसन मंटों पर फिल्म ‘मंटों’ जैसी बेहतरीन फिल्म बनाकर, फिल्मों के प्रति अपने समर्पण का अंदाज पेश किया है। फिल्म की कहानी ‘मंटों’ में 1946 के बॉम्बे का दर्शन है जब वहां मंटो एक लेखक के तौर पर काफी चर्चित थे। उस वक्त बॉम्बे टॉकीज में बागी लेखिका का अस्मत चुगताई (राजश्री देशपांडे) उस वक्त का उभरता सितारा श्याम चड्डा (ताहिर राज भसीन) तथा अभिनेता अशोक कुमार जैसी हस्तियां ‘मंटों’ के दोस्तों में शुमार हुआ करती थी। ‘मंटों’ नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी अपनी बीवी सफिया (रसिका दुग्गल) तथा एक बच्ची के साथ मस्त जीवन बिता रहे थे और सफिया जल्द मां बनने वाली थी। अचानक देश की आजादी के पाक बंटवारे की आग में लोगों को झुलसना पड़ता है। कभी अपने आप को चलता फिरता मुंबई कहने वाले मंटो को भी बंटवारे की तपिश पाकिस्तान जा पटकती है। मंटो मुंबई को नहीं भूल पाता क्योंकि वहां मां बाप और बेटा दफन है। तथा उसकी 10 का नोट, खोल दे, 100 वाट का बल्ब तथा टोबा टेक सिंह आधी कहानियां भी उसे विचलित करती रहती है। पाकिस्तान जाकर भी मंटो के लेखनी में साफगोहीं जिंदा रही लिहाजा उनकी कहानी ‘ठंडा गोश्त’ को अश्लील अफसाना करार दे उन पर केस चलाया गया तथा उन पर 507 जुर्माना जिसे ना भरने पर 3 महीने की जेल का फैसला सुनाया गया इन सब के बाद मुफलिसी की हालत में यहां तक उनकी छोटी बच्ची की बीमार हालत भी मंटों को तोड़ नहीं पाई, जो देखता हूं वही लिखता हूं। इससे पहले नंदिता दास एक फिल्म बना चुकी हैं लेकिन ‘मंटों’ जैसी उत्कृष्ट फिल्म बनाकर वह निर्देशकों का सिरमौर बन चुकी हैं क्योंकि अभी तक ‘मंटो’ जैसे विवादास्पद मंटों पर कोई भी फिल्म बनाने की हिम्मत नहीं कर पाया नंदिता ने ना सिर्फ यह फिल्म बनाने का बीड़ा उठाया बल्कि उसने मंटों की बेचैनी उसकी एकार्कपक तथा उसकी कहानियों से भी अपनी फिल्म में जैसे जिंदा करने में कामयाब रही है। इसके पीछे नंदिता की रिसर्च साफ दिखाई देती है फिल्म का सबसे उज्जवल पक्ष ही कास्टिंग उस दौर की लोकेशन के तौर पर गुजरात की लोकेशन कमाल की है। फिल्म में स्नेहा खानविलकर और कलर्स के संगीत में पर कंपोज नगरी नगरी, बोल के लब आज़ाद है तेरे तथा अब क्या बताऊं जैसे गीत कहानियों को और वाकई मजबूत बनाते हैं। फिल्म की यूएसपी है नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का लाजवाब अभिनय। उनके रंग रूप तथा शरीर की बनावट जैसे मंटों का रहा होगा। ऐसा दिखाई देना नवाब के उत्कृष्ट अभिनय का सबूत ही है। उनकी बीवी के रोल में रसिका दुग्गल के जैसे अपने आप को दोहरा दिया। उस दौर के उभरते सिंगर एक्टर श्याम चड्डा को ताहिर राज भसीन ने जैसे अपनी अदायगी से जिंदा कर दिखाया। इनके अलावा ऋषि कपूर, परेश रावल, जावेद अख्तर, गुरदास मान, रणवीर शौरी, चंदन दास, चंदन राय सन्याल, विनोद नागपाल तथा इला अरुण जैसे कलाकारों का सहयोग भी उल्लेखनीय है। सहादत हसन मंटों के जीवन के आखिरी 4 साल का मुजायका करना हो तो फिल्म मिस ना करें #Nawazuddin Siddiqui #movie review #Rasika Dugal #Manto हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article