रेटिंग 3 स्टार
कहानी
कहानी सूर्या, सूप्री, सूर्या के नाना और उनके कर्राटे मास्टर की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। सूर्या को एक दुर्लभ सुपरहीरो की बीमारी है, जिसकी वजह से उसे दर्द का भी एहसास नहीं होता। इस बीमारी की वजह से उसे सोसाइटी में कहीं भी फिट नहीं माना जाता। वह यह सोचकर बड़ा होता है कि वह एक कराटेमैन है और उसे समाज के गलत लड़कों को सबक सिखाना है। सुपरी सूरज का बचपन का प्यार है और हर दुख-दर्द में वही सूरज की दवा है। महेश मांजरेकर सूरज के दादा बने हैं, जो हमेशा ही इस बात की कोशिश में रहते हैं कि वह समाज में फिट होने के प्रेशर में खुद को खो न दे और उसी का शिकार न बन जाए।
निर्देशन
ओरिजनल, एक्शन, ड्रामा, कॉमेडी, एंटरटेनर. पांच शब्दों में कहें तो डायरेक्टर वासन बाला की डेब्यू फिल्म मर्द को दर्द नहीं होता इन पांच कैटेगिरीज़ का मिक्चर है। वासन बाला ने अनुराग कश्यप स्कूल में सिनेमा पढ़ा है। इस स्कूल में अभिनेता हो या तकनीशियन घिसाई इतनी होती है इंसान हीरा जैसा दमक कर निकलता है। निर्माता रॉनी स्क्रूवाला की यह इस फिल्म में निर्देशक वासन बाला ने कई एक्सपैरिमेंट किए हैं। कोई मैसेज न देते हुए भी यह फिल्म बोर नहीं करती। कहना गलत न होगा कि यह फिल्म निर्देशक का ओरिजनल प्रयोग है। फिल्म के कलाकारों और फिल्म के ट्रीटमेंट के साथ पूरी ईमानदारी बरती गयी है। वासन ने फिल्म की कहानी वाचन का तरीका नैरेटिव रखा है।
अभिनय
इस फिल्म से नायक अभिमन्यु दसानी की भी बॉलीवुड में एंट्री हो रही है जबकि फिल्म की अभिनेत्री राधिका एक फिल्म पुरानी हीरोइन हैं। शायद यह वजह भी है कि फिल्म में वह ऊर्जा और नयापन नजर आता है, जो कि फिल्म को और अधिक दिलचस्प बना रहा है। जहां सूर्या (अभिमन्यु दसानी) पूरी कहानी अपने नजरिये से प्रस्तुत करते हैं। अभिमन्यु दसानी ने करियर की पहली फिल्म से जता दिया कि स्टार किड होना उनके लिए कोई तश्तरी में मिला प्रसाद नहीं है। अपना जन्म वह चुन नहीं सकते थे। लेकिन अपना कर्म उन्होंने बखूबी चुना है।
फिल्म का खास पहलू:
फिल्म सच्चाई से परे भागने की कोशिश नहीं करती। जो है वही दिखाती है। कहीं भी कल्पनाशीलता की जगह नहीं है। फिल्म में कहीं भी कोई जबरदस्ती का कॉमिक या ऐक्शन सीन नहीं है।