रेटिंग 1/2
अस्सी और नब्बे के दशक का सिनेमा आज भी दर्शक को खूब भाता है इसका सबसे बड़ा सुबूत है विभिन्न चैनलों पर साउथ की हिन्दी में डब फिल्में। शायद इसी बात से प्रेरित हो लेखक निर्देशक मिलाप जवेरी ने फिल्म ‘मरजांवा’ बनाई। लेकिन इस बार फिल्म में उनके द्धारा डाले गये मसाले कुछ ज्यादा ही ओवरडोज हो गये लिहाजा फिल्म में सभी हिट मसालों के बाद भी वे उन्हें दमदार नहीं बना पाये।
कहानी
रघु यानि सिद्धार्थ मल्होत्रा एक ऐसा अनाथ है जिसे वाटर माफिया डॉन अन्ना यानि नासर ने गटर के पास से उठाकर पाला और बड़ा किया, लिहाजा रघु के लिये अन्ना का हुक्म पत्थर की लकीर है। वो अन्ना के लिये मार काट खून खराबा सब कुछ करता है। अन्ना का बेटा विष्णु यानि रितेश देशमुख है जो रघू से जलता है। दरअसल विष्णु सिर्फ तीन फुट का बौना है लिहाजा वो अपने पिता की उम्मीदों पर उतना खरा नहीं उतर पाया, जितना कि रघू। इसलिये वो रघू को जलील करने का एक भी मौका नहीं छौड़ता। उस बस्ती में कश्मीर से एक गूंगी लड़की जोया यानि तारा सुतारिया आती है जो एक संगीतज्ञ है और वो बच्चों को म्यूजिक सिखाती है। जोया रघु के संपर्क में आती है जबकि रघु को एक बार डांसर आरजू यानि रकुल प्रीत भी प्यार करती है। धीरे धीरे रघु जोया को प्यार करने लगता है। लेकिन विष्णु रघू को जोया को मारने के लिये विवष कर देता है। दरअसल तारा विष्णु को खून करते देख लेती है लिहाजा उसके कहने पर अन्ना रघु को हुक्म देता हैं कि वो जोया को खत्म कर दे। जोया को मारने के बाद रघु पूरी तरह टूट जाता है, लेकिन विष्णु उससे इस कदर डरा हुआ है कि वो घर से बाहर ही नही निकलता बल्कि उसने रघु को जेल में मारवाने के कोशिश की। बाद में रघु सुबूत न होने पर जेल से बाहर आता है और अपने स्टाइल से विष्णु का खात्मा करता है।
अवलोकन
मरजांवा की सबसे कमजोर कड़ी उसकी कहानी है। इसके अलावा मिलाप ने एक्शन, इमोशन, प्यार मौहब्बत और दोस्ती आदि सारे मसाले इतनी बुरी तरह से फिल्म में यूज किये, जो पूरी तरह से बनावटी या नकली लगते हैं। यहां तक फिल्म में बस्ती का सेट जिसके एक ही दायरे में सभी रहते हैं। अन्ना एक बनती हुई बिल्डिंग की बीसवी मंजिल पर रहता है यानि सब कुछ इतना ओवरडोज है कि दर्शक फिल्म से जुड़ ही नही पाता। फिल्म में संवादों की अदाईगी जैसे मैं मारूंगां तो मर जायेगा, अगला जन्म लेने से डर जायेगा या जुम्मे की रात है बदले की बात है अल्ला बचाये इसे मेरे वार से आदि बहुत ही सस्ती लगती हैं। यही नहीं फिल्म में जितने भी इमोशनल सीन हैं वे भी मेलोड्रामा लगते हैं। हां मरजांवा फिल्म का एक्शन बहुत ही दमदार है।
अभिनय
सिद्धार्थ की किस्मत उसका साथ नहीं दे पाती क्योंकि पिछली कुछ फिल्मों में वो खूब मेहनत करते दिखाई देते हैं लेकिन या तो वो रोल में अनफिट होते हैं या फिल्म नहीं चल पाती। इस बार उसने अपने किरदार को पूरी मेहनत और ईमानदारी से निभाया लेकिन उनके रोल के डेब्थ में कमी रह गई। तारा सुतारिया बेशक खूबसूरत लगी है उसने काम भी अच्छा किया, लेकिन सिद्धार्थ और उसकी कैमेस्ट्री आखिर तक नहीं जम पाती। रकुल प्रीत और रवि किशन को पूरी तरह वेस्ट किया गया। रितेश देशमुख बढ़िया काम कर गये,वहीं दक्षिण के अभिनेता नासर डॉन के तौर पर प्रभावी लगे। बाकी सहयोगी कलाकार भी ठीक रहे।
क्यों देखें
मसालेदार एक्शन प्रेमियों को मरजांवा फिल्म निराश नहीं करेगी।
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