रेटिंग*
अस्सी और नब्बे के बीच ऐसी फिल्में बना करती थी जिनमें रोमांस या लव स्टोरी के तहत हीरो हीरोइन का प्यार, इसके बाद लड़के या लड़की के पेरेन्ट्स की तरफ आई कोई ऐसी अड़चन जो दोनों को अलग कर देती है। इसके बाद कहानी में शामिल होता है एक तीसरा पात्र, जो दोनों की दुष्वारियों का फायदा उठाने की कोशिश करता है। बावजूद इसके अंत में हीरोइन हीरो को ही मिलती है । पार्थो घोष निर्देशित फिल्म‘ मौसम इकरार के दो पल प्यार के’ ऐसे ही सब्जेक्ट पर बनाई गई एक बेहद कमजोर फिल्म है।
मुकेश भारती पेरिस से मुरादाबाद पढ़ने के लिये आता है। दरअसल पच्चीस साल पहले उसके मरहूम पिता भी इसी कॉलेज में पढे थे। अचानक वो मदालसा शर्मा की कार से टकरा जाता है। इसके बाद दोनों के बीच प्यार हो जाता है। उस प्यार को मदाल्सा के माता पिता नीलू कोहली अविनाश वाधवन स्वीकार कर लेते हैं। लेकिन पेंच उस वक्त फंसता है जब अविनाश को पता चलता है कि मुकेश के पिता वही शख्स हैं जिसकी वजह से उसकी बहन ने आत्महत्या कर ली थी क्योंकि वो शादी की बात कह कर वापस नहीं आया था। इसके बाद अविनाश मुकेश से रिश्ता तोड़ अपने दोस्त एहसान खान के बेटे से मदाल्सा की शादी तय कर देता है। इसके बाद मदाल्सा अपनी मां के सहयोग से मुकेश के साथ घर से भाग जाती है। लेकिन अविनाश उन्हें ढूंढ निकालता है। अंत में क्या दोनां मिल पाते हैं ?
पार्थो घोष ने एक ऐसी आउट डेटिड स्टोरी पर फिल्म बनाई है, जिसका आज कल कोई क्रेज नहीं। इसके अलावा पटकथा और संवाद फिल्म को और कमजोर बनाते हैं। अभिनय और तकनीकी तौर पर फिल्म में कितनी ही खामियां है। जैस पेरिस से हीरो स्पाईस एयर से आता है, पढ़ने के लिये कहां, मुरादाबाद। उसके बाद हीरो हीरोइन का प्यार फिर प्रॉब्लमस, ये सब अभी तक न जाने कितनी फिल्मों में दिखाया जा चुका है। फिल्म में भप्पी लहरी का म्यूजिक है जो अच्छा है।
अभिनय की बात की जाये तो मुकेश भारती की ये दूसरी फिल्म है बावजूद इसके वो आज भी अभिनय में जीरो है। मदाल्सा शर्मा ने भी रूटिन काम किया है। बाकी अविनाष वधावन, नीलू कोहली तथा एहसान खान आदि कलाकारों की भूमिकायों में भी कुछ करने के लिये था ही नहीं लिहाजा उन्होंने भी बस खानापूरी की है।
अंत में फिल्म को लेकर यही कहा जा सकता है कि फिल्म में ऐसा कुछ भी नही जो दर्शक की पंसद पर खरा साबित हो पाये।