मूवी रिव्यू: मोदी का जीवन दर्शन 'पीएम नरेन्द्र मोदी'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: मोदी का जीवन दर्शन 'पीएम नरेन्द्र मोदी'

रेटिंग***

इसे इत्तफाक कहा जाये कि एक दिन पहले हमारे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी प्रचंड तरीके से देश के सभी बड़े छोटे या महागठबंधन विपक्षी दलों को धूल चटाते हुये अपने दम पर बहुमत हासिल कर एक बार फिर पीएम की कुर्सी पर आसीन होने का दम भरते हैं और उसके अगले दिन ही निर्देशक ओमंग कुमार द्धारा निर्देशित उनकी बायोपिक फिल्म ‘ पीएम नरेन्द्र मोदी रिलीज होती है, और पहले दिन ही खूब सराही जाती है।

कहानी

मोदी जी के बचपन से उनके पी एम बनने तक की कहानी से शुरूआत होती है। उसके बाद कहानी फ्लैश बैक में चली जाती है  जहां छोटे मोदी  स्कूल से आने के बाद अपने पिता के साथ रेलवे स्टेशन पर चाय बेचते हैं और उनकी मां घरों में बर्तन मांजने का काम करती हैं। बड़ा होने पर मोदी यानि विवेक ऑबेराय अपने धरवालों से सन्यासी बनने की इच्छा जाहिर करते हुये घर छोड़ देते हैं , जबकि उनके घरवाले उन्हें विवाह बंधन में बांध देना चाहते हैं। इसके बाद वे कितनी ही दिनों तक हिमाचल के गोद में अपने आपको तलाश करने का प्रयास करते है। बाद में वे वापस आकर आरएसएस के वर्कर के तौर अपना जीवन गुजारने का प्रण करते हैं। बाद में वे सीढी दर सीढी ऊपर चढते चले गये, उन्होंने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। फिल्म बताती  है कि किस प्रकार एक चाय बेचने वाला लड़का अपनी दृड़ इच्छा के चलते देश का पीएम बनकर दिखाता है। इस सफर में मोदी के साथ क्या कुछ गुजरता है, ये सब आपको फिल्म देखकर पता चलेगा।

 डायरेक्शन

किसी ने क्या खूब कहा है कि जीतने का मजा उस वक्त आता है जब सब आपकी हार की उम्मीद करते हैं। मोदी के साथ बिलकुल ऐसा ही हुआ है। फिल्म में उनके गुजरात का सीएम बनने से लेकर गुजरात दंगों से गुजरती हुई उनकी जिन्दगी में बीते हादसों को दिखाया गया है। फिल्म मोदी के कितने ही अनछुये पहलुओं को भी उजागर करती है और कुछ तथ्यों को नजरअंदाज भी किया गया हैं जैसे उनकी शादी और पत्नि  का जिक्र। मोदी ने आर एस एस का काम करते हुये पहले पत्राचार से ग्रेजुएशन की, इसके बाद गुजरात युनिवर्सिटी से एमए तक की पढ़ाई की। फिल्म की कहानी संदीप सिंह ने लिखी है जो फिल्म के क्रियेटिव प्रोड्यूसर हैं। इसके अलावा फिल्म की पटकथा और संवादों के लिये विवेक ऑबेराय को भी क्रेडिट दिया गया है। कहानी का पहला भाग गुजरात में मोदी के क्रिया कलापों तथा दंगों के बीच गुजरता है। दूसरे भाग में उनके पीएम बनने तक का सफर है। फिल्म के कुछ हिस्से को नजरअंदाज कर दिया जाये तो पूरे समय दर्शक फिल्म से जुड़ा रहता है।  मैरीकॉम और सरबजीत जैसी बायोपिक फिल्म के निर्देषक ओमंग कुमार ने इस बार भी एक बेहतरीन बायोपिक बनाई है। महज सवा दो घंटे में फिल्म मोदी का जीवन दर्षन करवाने में पूरी तरह सफल है।

अभिनय

विवेक ऑबेराय ने नरेन्द्र मोदी के पात्र को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से जीया है। घंटो मेकअप के दौरान बैठै रहने और एक हद तक मोदी की बॉडी लैंगवेज और आवाज को भी विवेक ने अपने अभिनय में ढालने की सफल कोशिश की है। अमित शाह की भूमिका में मनोज जोशी भी खूब जमे है। जहां राजेन्द्र गुप्ता मोदी के पिता की भूमिका साकार करते नजर आते हैं वहीं जरीना वहाब उनकी मां के रोल में अच्छी लगी हैं। इमरान हस्नी दंगा पीड़ित किरदार में जमे हैं। टीवी एंकर की छोटी सी भूमिका से भावना मुंजाल भी अभिनय की शुरूआत करती दिखाई दी।

क्यों देखें

नरेन्द्र मोदी के प्रशसक फिल्म को जरा भी मिस न करें।

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