रेटिंग**
बेशक आज साउथ इंडियन डब फिल्में इसलिये पंसद की जाती हैं क्योंकि उनमें हमारी अस्सी के दशक की फिल्मों का फ्लेवर मिलता है । इसी तर्ज पर निर्देशक संजीव जायसवाल की फिल्म ‘ प्रणाम’ भी है । लेकिन वे अस्सी की दशक की कहानी तो ले आये लेकिन उसे दिलचस्प नहीं बना पाये ।
कहानी
लखनऊ का रहने वाला लड़का अभय सिंह यानि राजीव खंडेलवाल आईएएस बनने की तैयारी में लगा हुआ है। उसका साथ देने के लिये उसके चपरासी पिता एस एम जहीर पार्ट टाइम वेटर गिरी तक कर रहे हैं । उसी के साथ आईएएस की तैयारी कर रही अमीरजादी मंजरी शुक्ला यानि समीक्षा उसे प्यार करती है । उधर राजनेताओं का पिटठू गुंडा गनु भैया यानि अभिमन्यु सिंह कालेज में पेपर लीक कर खूब पैसा पीट रहा है, लेकिन उसके आड़े कालेज के ईमानदार प्रिंसिपल तेजप्रताप सिंह यानि विक्रम गोखले आ जाते हैं । लेकिन गनु किसी प्रकार तेजप्रताप को पेपर लीक कांड में फंसा देता है । बाद में ऐसा कुछ होता है कि तेजप्रताप की बेटी को बचाने के चक्कर में अभय के हाथां गनु भैया का कत्ल हो जाता है । बाद में एक करप्ट पुलिस ऑफिसर अतुल कुलकर्णी अभय को कत्ल के अलावा पेपर लीक स्कैम के सरगना के तौर पर पेश करता है, लिहाजा बाद में मजबूर हो अभय हथियार उठाने पर मजबूर हो जाता है ।
अवलोकन
इसमें कोई शक नहीं कि निर्देशक ने अस्सी के दशक की फिल्मों का बारीकी से अवलोकन कर उस दौर की फिल्मों के सभी मसाले फिल्म में यूज करने की कोशिश की है लेकिन अफसोस वे फिल्म को दर्शकों से जोड़ नहीं पाते। हद से ज्यदा मैलोड्रामा लगती है । सबसे बड़ी बात कि उस दौर में हीरो विलन के पच्चीस पचास लोगों से एक साथ लड़ता था,जबकि यहां बेचारा हीरो शुरू से अंत तक विलन से मार खाता रहता है जो बिलकुल हजम होने वाली बात नहीं । लास्ट में अचानक सब कुछ हीरो के पक्ष में हो जाता है ।
अभिनय
राजीव खंडेलवाल बेशक एक प्रतिभाशाली अभिनेता है लेकिन यहां वो कालेज ब्वॉय नहीं लगता । फिर भी उसने भूमिका के लिये मेहनत की है । समीक्षा बस ठीक ठाक रही । अभिमन्यु सिंह, अतुल कुलकर्णी तथा विक्रम गोखले जैसे फनकार चाहकर भी फिल्म को सहारा नहीं दे पाते ।
क्यों देखें
अगर आपको अस्सी के दशक की फिल्में याद आ रही हैं तो एक बार ये फिल्म देखते हुये याद ताजा कर सकते हैं लेकिन पंसद आने की गारंटी नहीं ।