रेटिंग**
अमिताभ बच्चन और आमिर खान एक साथ किसी फिल्म में। दर्शकों का दोनों को एक साथ देखने का उत्साह चर्म पर। लेकिन फिल्म देखने के बाद हर दर्शक सिर खुजाता या उगंलिया मरोड़ता बाहर निकलता हुआ अपने आपको ठगा महसूस करता है। बात हो रही हैं यशराज बैनर और निर्देशक विजय कृश्ण आचार्य की फिल्म ‘ठग ऑफ हिन्दुस्तान’ की, जो सब्जबाग दिखाकर दर्शक को ठगने में पूरी तरह कामयाब रही।
कहानी करीब 1775 की है जब अंग्रेजो ने हिन्दुस्तान की तकरीबन सारी बड़ी छोटी रियासतों को अपना गुलाम बना लिया था। एक छोटी सी रियासत रौनक पुर पर अंग्रेज कमांडर जॉन क्लाइव (लॉयड ऑवेन) की नजर थी जहां मिर्जा सिकंदर बेग (रोनित रॉय) का राज था। क्लाइव धोखे से न सिर्फ राज्य पर कब्जा कर लेता है बल्कि मिर्जा और उसके परिवार को भी मार देता है, लेकिन राज्य का वफादार सिपाही खुदा बख्श आजाद मिर्जा की बेटी जफीरा (फातिमा सना शेख) को बचा लेता है। करीब दस साल बाद आजाद राज्य के वफादार सिपाहियों को जमा कर अंग्रेजो पर हमले करता रहता है। मिर्जा की बेटी की एक ही कामना है क्लाइव से अपने परिवार की मौत का बदला लेकर अपना राज्य वापस लेना। उधर क्लाइव आजाद से पेरशान हो किसी ऐसे आदमी की तलाश कर रहा है जो आजाद को पकड़वा सके। ऐसा एक ही आदमी है और वो है फिरंगी मल्लाह (आमिर खान) जो ठग और डाकुओं को पकड़वा कर अंग्रेजो से ईनाम हासिल करता रहता है। हालांकि वो अपने आपको अवध का रहने वाला बताता है, लेकिन वास्तव में तो उसी को पता है कि वो कहां का रहने वाला है। क्लाइव उसे आजाद को पकड़वाने का ठेका देता है। फिरंगी आजाद तक पहुंच जाता है और उसका विश्वास भी हासिल कर लेता है। इसी का फायदा उठा वो आजाद को पकड़वा देता है बावजूद इसके आजाद उसे जफीरा की जिम्मेदारी सौंप जाता है। मन बदलने के बाद फिरंगी चालकी से न सिर्फ अंग्रेजी सेना का सफाया करता है बल्कि जफीरा को भी अपनी कसम पूरी करने का अवसर प्रदान करता है।
बिग बजट फिल्म लेकिन कमजोर कहानी जिसे दर्शक कितनी ही बार देख चुके हैं। लिहाजा दर्शकफिल्म देखते हुये क्रांति, वीर या बाहुबली जैसी फिल्मों से फिल्म का मिलान करते हुये कुढ़ता रहता है। फिल्म पहले भाग तक तो ठीक ठाक है लेकिन दूसरे भाग में बोझिल होने लगती है। अमिताभ बच्चन की तुलना क्रांति के दिलीप कुमार से करने की कोशिश की जाती है। लेकिन आमिर खान का गैटअप और उनकी भूमिका शुरू से आखिर तक दर्शकों की हमदर्दी पैदा नहीं कर पाती। फिल्म का कुछ भाग जोधपुर के किले में फिल्माया गया है तथा पानी के जहाजों की रोमांचक लड़ाई माल्टा में फिल्माई गई है। कैमरामैन मानुश नंदन की गजब फोटाग्राफी का मुजायका दिखाई देता तथा उस दौर के भव्य सेट बनाये गये है इसीलिये फिल्म का बजट तीन सो करोड़ से ऊपर तक जा पंहुचा। फिर भी तीन घंटे से ज्यादा लंबाई अखरने लगती है। अजय अतुल का संगीत भी साधारण रहा फिल्म में कुल तीन गाने हैं जो फिल्म देखते हुये ही याद नहीं रहते लेकिन बेहतरीन कोरियोग्राफी के सदके कैटरीना कैफ ने पहले गाने में कमाल का डांस किया है, उसका दूसरा गाना भी नृत्य के हिसाब से बढिया रहा। कैटरीना की भूमिका बस इन्ही दो गानो और एक दो सीन तक ही सीमित रही।
अभिनय की बात की जाये तो अमिताभ वफादार सेनापति आजाद के तौर पर प्रभावशाली रहे, उनकी इस उम्र में भी खासकर जहाजों की छापामार लड़ाई्र कमाल की रही। इसके अलावा वे आज भी डांस में मौहित करते हैं। आमिर खान ने एक मसखरे चालाक ठग को अलग दिखाने के लिये नाक छिदवाई, कान छिदवाये, मूंछे रखी, लेकिन अच्छे अभिनय के बाद भी वे दर्शक को प्रभावित नहीं कर पाते। फातिमा सना शेख को दंगल के बाद एक और बड़ी फिल्म मिली वो भी लीड रोल में, जिसका उसने भरपूर फायदा उठाया। अभिनय से कहीं ज्यादा उसका एक्शन प्रभावशा रहा। कैटरीना कैफ के हिस्से में सिर्फ दो गाने और दो एक सीन ही आ पाये। इसके अलावा विदेशी एक्टर लॉयड ऑवेन की बढ़िया खलनायकी देखने को मिली।
कहना होगा कि हर तरह से इस कमजोर और क्रिटिक्स द्धारा आलोचना झेलने के बाद भी फिल्म ने पहले दिन बावन करोड़ से ज्यादा का कलेक्शन कर पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये। ये कमाल हुआ अमिताभ और आमिर को एक साथ किसी फिल्म में देखने के तहत। अमिताभ बच्चन और आमिर खान के प्रंशसकों के एक बार फिल्म देखने में कोई बुराई नहीं।