रेटिंग****
कुछ फिल्मों की कहानी इस तरह की बन जाती है कि बाद में उसे कितना ही बढ़ाते रहिये। ऐसी फिल्मों की अब लिस्ट बनाई जा सकती है। उन फिल्मों में टाइगर भी शामिल हो चुकी है। इसका सुबूत इस सप्ताह यशराज बैनर द्धारा निर्मित,अली अब्बास ज़फर द्धारा निर्देशित ‘टाइगर जिन्दा है’ रिलीज हुई है। 'एक था टाइगर' जहां खत्म होती है, 'टाइगर जिन्दा है' वहां से शुरू होती है एक नये मिशन पर जाने के लिये।
कहानी
टाइगर यानि सलमान खान जो देश की खुफिया ऐजेंसी रॉ का ऐजेंट रहा है। पहली फिल्म में एक मिशन के तहत उसे पाकिस्तानी आई एस आई खुफिया ऐजेंसी की ऐजेन्ट जोया यानि कैटरीना कैफ से प्यार हो जाता है लिहाजा दोनों अपने अपने विभागों से बगावत कर एक नई जिन्दगी शुरू करने के लिये फरार हो जाते हैं। इन दिनों टाइगर अपनी पत्नि जोया और अपने बच्चे के साथ एक आइसलैंड पर एकांत में रहते हुये सुखी जीवन बिता रहे हैं। लेकिन एक बार फिर रॉ को टाइगर की जरूरत आन पड़ती है तो रॉ चीफ गिरीश कर्नाड टाइगर को तलाश करने का आदेश देते है।
दरअसल सीरिया में आतंकवादी संस्था आई एस सी का चीफ उस्मान वहां पच्चीस हिन्दुस्तानी नर्सो को उसी अस्पताल में बंदी बना लेता हैं जंहा वे नर्से काम करती हैं। टाइगर के मिलने पर रॉ चीफ उसे ऑपरेशन के बारे में बताता है तो जोया के कहने पर टाइगर एक बार फिर देश के लिये उस मिशन पर जाने के लिये तैयार हो जाता है। उस मिशन पर उसके कुछ साथी भी है जिनमें आर्मी मैन अंगद बेदी, कुमुद कुमार मिश्रा तथा दो अन्य साथी। मिशन के वक्त सीरिया में उसे जब जोया भी अपने कुछ साथियों के साथ दिखाई देती है तो पता चलता है वहां पंद्रह पाकिस्तानी नर्से भी बंदी हैं, जिन्हें छुड़ाने के लिये वो आई एस आई ऐजेंटों के साथ वहां मौजूद है। उसके बाद दोनों देशो के ऐजेन्टों के साथ मिलकर टाइगर इस मिशन को न सिर्फ कामयाब बनाता है बल्कि आईएस सी के चीफ उस्मान का भी खात्मा कर देता है।
निर्देशन
पहली फिल्म टाइगर जहां कबीर खान ने डायरेक्टर की थी वहीं इस फिल्म को अली अब्बास जफर ने डायरेक्ट किया है। जहां कबीर पश्चिम से प्रभावित रहे हैं वहीं अली हिन्दुस्तानियत पंसद करते हैं, ये सब उनकी फिल्मों में भी दिखाई देता है। इस फिल्म में उन्होंने देश के प्रति अपनी आस्था को कायम रखा है। इसके अलावा फिल्म की शुरूआत में ही अली एहसास करवा देते हैं कि दर्शकों को इस बार भी काफी कुछ रोचक दिखाई देने वाला है और जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है तो उसमें दिखाई देने वाले रोमांच और देश प्रेम वाली अभिव्यक्ति के बहाव में किरदारों के साथ दर्शक भी बहने लगते हैं।
सलमान एक्शन और अपनी बॉडी लैग्वेंज के तहत कभी रेंबो दिखाई देते है तो कभी हीमैन। निर्देशक ने उन्हें बहुत डेशिंग और जांबाज रूप में तो पेश किया ही है साथ उनके साथी भी काफी डेशिंग दिखायें गये हैं। फिल्म की कथा पटकथा, संवाद तथा फोटोग्राफी और लोकेशन सभी कुछ लुभावनी हैं। आप कह सकते हैं कि फिल्म अपने पहले भाग टाइगर से कहीं भी कम नहीं है।
अभिनय
सलमान अपनी इमेज के तहत पूरे शबाब पर हैं इस बार उनके अलावा उनकी बॉडी लैंग्वेज भी प्रभावित करती है। अंत में उनका सोष्ठव बदन भी आकर्षक तरह से रोमांचित करता है। उनके साथ कैटरीना कैफ ने भी अपनी भूमिका के साथ पूरा पूरा न्याय किया है खास कर एक्शन दृश्यों सलमान की तरह वो भी प्रभावित करती है। सलमान के साथियों के तौर पर अंगद बेदी और कुमुद कुमार मिश्रा तथा कुछ देशी विदेशी कलाकारों ने भी बढ़िया काम किया है। एक अरसे बाद पर्दे पर परेश रावल को देखने के बाद लगा था उनके द्धारा अलग से मनोरजंन देखने को मिलेगा, लेकिन वे अपनी भूमिका में ऐसा कुछ भी नहीं कर पाये जो पहले से न देखा हो।