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सपनों को जीने की लालसा 'तुम्हारी सुलु'

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By Shyam Sharma
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सपनों को जीने की लालसा 'तुम्हारी सुलु'

शादी के बाद भी कितनी ही महिलायें ऐसी हैं जो अपने अधूरे सपने पूरे करने के लिये लालियत रहती हैं। निर्देशक सुरेश त्रिवेणी की फिल्म ‘तुम्हारी सुलू’ की नायिका भी उन्हीं औरतों में शामिल है। जो छोटी-छोटी प्रत्योगिताओं में अपने सपने देखती हुई हिस्सा ले जीतने का सुख लेती रहती है। लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों का भी उसे एहसास है।

क्या फिल्म की कहानी

बिंदास स्वभाव की ग्रहणी सुलू यानि विद्या बालन मुबंई के एक उपनगर विरार में अपने पति मानव कौल तथा बच्चे अभिषेक शर्मा के साथ एक छोटे से फ्लैट में रहती है। सोसाईटी में होने वाली चम्मच दौड़, या विभिन्न प्रत्योंगिताओं में हिस्सा लेना और उनमें जीत हासिल करना उसका पंसदीदा शगल है। एक बार वो रेडियो की एक प्रत्योगिता में प्रैशर कूकर जीतती है। वहां उसे पता चलता है कि वहां पर रेडियो जॉकी बनने की प्रत्योगिता भी चल रही है।

इसके लिये पहले वो रेडियो जॉकी मलिश्का से मिलती है मलिश्का उसे रेडियो की सीईओ नेहा धूपिया से मिलवाती है। नेहा सुलु की जिंदादिली और सेक्सी आवाज से प्रभावित हो उसे रात का एक प्रोग्राम दे देती है और उसे नाम भी तम्हारी सुलु देती है। उस शो के रातों रात हिट हो जाने के बाद सुलु की जिन्दगी भी बदल जाती है। लेकिन उसकी रात की नौकरी से उसका पति और और उसकी शादी शुदा जुड़वा बहनें खुश नहीं है। लिहाजा वे उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाते हैं लेकिन सुलू किसी के सामने नहीं झुकती।

एक दिन उसे पता चलता है कि स्कूल में नाजायज हरकतों की वजह से उसके बेटे को स्कूल से निकाल दिया गया है बाद में उसके घर से भाग जाने के लिये वो अपने आपको जिम्मेदार मानने लगती है। इसके बाद उसके जीवन में क्या मोड़ आते हैं ये अगर फिल्म में देखा जायेगा तो बेहतर होगा।

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विद्या बालन के कंधो पर टिकी है फिल्म

निर्देशक सुरेश त्रिवेणी ने फिल्म की कहानी, उसके किरदारों तथा परिवेश को उन्हीं के अनुकूल रखने की सार्थक कोशिश की है लिहाजा सारे पात्र दर्शक को अपने आस पास के लगते हैं। एक मीडिल क्लास परिवार के जरिये पति पत्नि और उनके आसपास के रिश्ते नातेदारों को कहानी में कुशलता से पिरोया गया है। फिल्म का पहला भाग काफी दिलचस्प और चटपटा है लेकिन दूसरे भाग में भावनात्मक और लंबे लंबे दृश्य फिल्म को बोझिल बना देते हैं।

इसके अलावा कुछ ऐसे भी दृश्य हैं  जिनकी बदौलत फिल्म लंबी हो गई है, उनकी कोई जरूरत भी नहीं थी। पूरी फिल्म नायिका के कंधों पर टिकी है और वो भी उसे लेकर सफलता से अपना सफर पूरा करती है। फिल्म में प्रैशर कूकर जीतने और फिर सुलु द्धारा उसके बदले टीवी लेने तथा आरजे बनने के दृश्य काफी दिलचस्प बने हैं। जो फिल्म को मनोरंजक बनाते है।

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विद्या बालन उन अभिनेत्रियों में से एक है जो अपनी भूमिका में घुस कर काम करती हैं। सुलु की भूमिका को वो जिस प्रकार सरलता और सहजता से निभा ले जाती है वो हुनुर उसके एक अत्कृष्ठ अभिनेत्री होने का सुबूत है। मानव कौल अपनी भूमिका को कुशलता से निभाते हुये अपने अभिनय कौशल का बखूबी परिचय देते हैं। जहां नेहा धूपिया रेडियो सीईओ की भूमिका में खूब जमी हैं, वहीं विजय मौर्य रेडियो कवि और आरजे मलिश्का अपने अभिनय से प्रभावित करते हैं।

हल्के फुल्के हास्य वाली फिल्मों के शौकीन दर्शकों को फिल्म खूब लुभाने वाली है।

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