मूवी रिव्यू: मौलाना आजाद का जीवन दर्शन वो जो था एक मसीहा- 'मौलाना अबुल कलाम आजाद' By Shyam Sharma 18 Jan 2019 | एडिट 18 Jan 2019 23:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर रेटिंग*** इन दिनों दर्शक हर प्रकार की बायोपिक पंसद कर रहे हैं लिहाजा फिल्म मेकर्स भी उनके समक्ष खेल, अपराध तथा राजनीति जगत की हस्तियों को लेकर उनकी जीवनी पर फिल्मों का निर्माण कर रहे है । पिछले सप्ताह पूर्व प्रधानमंत्री ममोहन सिंह को लेकर बनी फिल्म रिलीज हुई थी। मशहूर देश भक्त राजनेता तथा प्रथम शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद पर आधारित इस सप्ताह लेखक, निर्देशक एक्टर डा. राजेन्द्र संजय व संजय सिंह नेगी द्धारा निर्देशित फिल्म‘ वो जो एक था मसीहा- मौलाना अबुल कलाम आजाद- नामक फिल्म रिलीज हुई है। फिल्म में मौलाना आजाद की पूरी जीवनी का चित्रण करने की कोशिश की गई है। कहानी कहानी पूरी तरह मौलाना आजाद को लेकर बनी गई है। मौलाना आजाद उन देष भक्तों में से एक थे जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी लड़ाई और हिन्दू मुस्लिम एकता को समर्पित कर दी थी। उनका कहना था मैं स्वराज को त्याग सकता हूं , हिन्दू मुस्लिम एकता को नहीं। फिल्म में मौलाना का देश प्रेम बचपन में ही जाग्रत हो गया था जब वे अपने बहन भाईयों के सामने भाशण देने की प्रेक्टिस किया करते थे। उनकी मां को तभी एहसास हो गया था कि उनका बेटा मौलाना एक दिन बड़ा देश भक्त बनेगा। पढने लिखने के शौकीन मौलाना ने अपना कॅरियर बतौर पत्रकार शुरू किया था। उसी दौरान वे क्रांतीकारी अरबिंदो घोश के संपर्क में आये तो उन्होंने भी घोश के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आजादी का बिगुल फूंक दिया। बाद में उन्हें कलकत्ता से तड़पार करांची भेज दिया और वहां उन्हें नजर बंद रखा। उसी दौरान वे गांधी और नेहरू के संपर्क में आये। धीरे धीरे मौलाना गांधी जी के राइट हैंड बन गये। गांधी उनकी सलाह के बिना कोई काम नहीं करते थे। वे जेल में ही थे जब उनके पिता भाई और पत्नि अकाल मृत्यु को पार्यप्त हुये। देश आजाद हुआ लेकिन बाद में बंटवारे और गांधी जी की हत्या ने उन्हें तौड़कर दिया लिहाजा एक दिन वे भी खुदा के घर की तरफ चल दिये। डायरेक्शन बेशक फिल्म में मौलाना की लाइफ का रिसर्च दिखाई देता है लेकिन कमजोर पटकथा और निर्देशन फिल्म को बहुत हल्का बना देता है। सुनने में आया कि फिल्म तीन धंटे से ज्यादा लंबी बन गई थी लिहाजा उसे दो घंटे में बदलने के बाद पूरी फिल्म का कायापलट हो गया क्योंकि सिवाय मौलाना अबुल आजाद के फिल्म में कहीं भी किसी भी किरदार का परिचय नहीं दिया गया। बाद में कुछ किरदार नाम से पहचाने गये वरना अंत तक दर्शक सिर धुन कर रह जाता है लेकिन किरदारों की पहचान नहीं कर पाता। फिल्म की लंबी काटपीट से कितने ही अच्छे अदाकारों की पहचान और उनका अभिनय सिमट कर रह गया। दूसरे रिसर्च में लेखक को पता नहीं कैसे ये हल्हाम हो गया कि गांधी जी की मूछें नहीं थी लिहाजा फिल्म में आपको पहली बार ऐसे गांधी नजर आने वाले हैं जिनके मूंछे नहीं हैं। इस बारे में मेरा लेखक से कहना हैं कि हमेषा रिसर्च से कहीं ज्यादा प्रचलन पर जौर दिया जाता है। अगर गांधी जी की पहचान मूंछों से है तो उनकी पहचान के साथ प्रयोग न किया जाये। फिल्म के सीन देख कर शिद्दत से एहसास होता है कि ये एक बेहद कम बजट की ऐसी फिल्म है जिसमें सिर्फ मौलाना आजाद की जीवनी पर ईमानदारी से मेहनत की है। अभिनय मौलाना अबुल कलाम आजाद की भूमिका निभाने वाला अदाकार लिनेष फणसे थियेटर से है लिहाजा वो एक हद तक अपनी भूमिका को पर्दे पर साकार करने में कामयाब रहा। गांधी के रोल में खुद राजेन्द्र संजय हैं जिन्होंने उसे जाया किया है। उनके अलावा सिराली,सुधीर जोगलेकर, आरती गुप्ते,अरविंद वेकरिया,षरद षाह,केटी मंघानी, चेतन ठक्कर,सुनील बलवंत, माही सिंह,संतोश साहू चॉद अंसारी तथा वीरेन्द्र मिश्रा जैसे अदाकार अपनी अदाकारी से कुछ कहना चाहते हैं लेकिन आखिर तक सफल नहीं हो पाते। क्यों देखें मौलाना अबुल कलाम आजाद जैसी शख्सियत को जानने के लिये फिल्म देखी जा सकती है। #movie review #Woh Jo Tha Ek Messiah हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article