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मूवी रिव्यू: बोरियत की पराकाश्ठा 'ये है इंडिया'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: बोरियत की पराकाश्ठा 'ये है इंडिया'

रेटिंग*

अपने देश में रहने वाले अपने देश की इतनी परवाह नहीं करते जितना विदेश में रहने वाले भारतीय अपने देश के मूल्यों की परवाह करते हैं। निर्देशक लोमहर्ष ने फिल्म ‘ ये है इंडिया’ के तहत एक ऐसे भारतीय मूल के नोजवान को दर्शाया है जो लंदन से इंडिया आकर यहां के लोगों को देश में भ्रष्टाचार तथा अनैतिक बातों से आगाह करता है।

कहानी

गेवी चहल के पिता उसके पैदा होने से पहले ही किसी बात पर नाराज हो लंदन जाकर बस गये थे। उसके बाद वो कभी इंडिया नहीं आये। गेवी का जन्म भी लंदन में हुआ। लंदन में ही उसकी दोस्ती एक भारतीय नोजवान आशुतोश कौशिक से हो जाती है। गेवी एक हादसे में उसकी जान बचाता है। उसी की वजह से गेवी को इंडिया के प्रति चाहत पैदा होती है और एक दिन वो अपनी प्रेमिका को छौड़ इंडिया आ जाता है। यहां वो देखता है कि यहां के लोग न तो डिसिप्लींड हैं, न ही ईमानदार। कदम कदम पर या चोरी और बेइमान का बाजार गर्म है। ये सब देख वो अपने दोस्त के साथ देश को जाग्रत करने का बीड़ा उठा लेता है। जिसकी वजह से राज्य का बेईमान मंत्री मोहन जोशी उसका दुश्मन बन जाता है लेकिन गैवी पीछे नहीं हटता। क्या बाद में गेवी अपने मकसद में कामयाब हो पाता है ?

डायरेक्शन, अभिनय

ये एक अति साधारण सी कहानी पर साधारण सी फिल्म है। जिसकी कथा पटकथा, सवांद  तथा संगीत और अभिनय सभी कुछ अति साधारण है। फिल्म में गैवी चहल और आशुतोष कौशिक के अलावा  मोहन आगाशे, मोहन जोशी तथा सुरेन्द्र पाल जैसे दिग्गज अभिनेता हैं लेकिन डायरेक्टर ने उन सभी को बुरी तरह जाया किया। लिहाजा फिल्म को दर्शक दस मिनट भी नही बर्दाश्त कर पाता,  लिहाजा फिल्म को लेकर कहा ला सकता है कि बोरियत की पराकाश्ठा।

क्यों देखें

फिल्म का देखना तो दूर की बात। फिल्म जिस सिनेमा पर लगी होगी वो उसके पास तक से नहीं गुजरेगा।

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