मूवी रिव्यू: जबरदस्ती का कंफ्यूजन 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है'

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: जबरदस्ती का कंफ्यूजन 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है'

रेटिंग**

जैसा कि मैं पहले भी बता चुका हूं कि कुछ मेकर अपनी फिल्मों की कहानी में जबरदस्ती कुछ ऐसा कंफ्यूजन भर देते हैं कि दर्शक अपने दिमाग पर जौर देने के लिये मजबूर हो जाता है लेकिन ज्यादातर दर्शक खीजने लगते हैं। निर्देशक सौमित्र रनाडे की फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटों को गुस्सा क्यों आता है’ में भी ऐसा ही प्रयोग किया गया है। जबकि कहानी सीधी सादी है, लेकिन जानबूझ कर उसे कठिन बनाने की कोशिश की है।

 कहानी

अल्बर्ट पिंटो यानि मानव कौल एक ऐसे ईमानदार बाप का बेटा है जिसके पिता को भ्रष्टाचार के एवज में नोकरी से निकाल दिया जाता है। इसके बाद वो आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसी परिस्थिति में अल्बर्ट पूरी तरह फ्रस्ट्रेशन में चला जाता है। इसके अलावा उसकी प्रेमिका नंदिता दास भी उससे दूर हो जाती है। इसके बाद अल्बर्ट निकल पड़ता है अपने पिता की मौत के जिम्मेदार लोगों से बदला लेने के लिये। उसके इस सफर में एक सुपारी किलर सौरभ शुक्ला भी उसके साथ है। क्या वो अपने मिशन में कामयाब हो पाता है ?

डायरेक्शन

इससे पहले भी इसी नाम से एक फिल्म आ चुकी है जिसमें नसीरुद्दीन शाह और शबाना आजमी ने काम किया था। जंहा वो एक उम्दा फिल्म थी वहीं मौजूदा फिल्म में जबरदस्ती का कन्फ्यूजन घुसेड़ फिल्म से ढेर सारे दर्शकों को दूर कर दिया गया। फ्लैश बैक के सदके अलग अलग रूप धारण कर अल्बर्ट को उसकी प्रेमिका दिखाई देती रहती है पता नहीं क्यों। पूरी फिल्म में मुंबई से गोवा तक का सफर है जहां अलबर्ट को सौरभ के साथ मिलकर दो भ्रष्ट बिजनेसमैनों को उड़ाना है। कहने को फिल्म में एक आम आदमी की कुंठा को दर्षाया गया है लेकिन इस प्रकार से क्यों।

अभिनय

मानव कौल थियेटर के एक उम्दा कलाकार हैं। इससे पहले भी वे कई फिल्मों में अपना अभिनय दर्शा चुके हैं। यहां भी उसने एक कुंठित शख्स को बेहतर तरीके से जी कर दिखाया है। सौरभ शुक्ला अपने डील डोल और अभिनय से इस बार भी प्रभावित करने में सफल हैं। एक अरसे बाद नंदिता दास को देखना अच्छा लगा।

क्यों देखें

चूंकि निर्देशक ने फिल्म को एक खास तबके के लिये तब्दील कर दिया हैं लिहाजा आम दर्शक तो फिल्म से दूर रहना ही पंसद करेगा।

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