/mayapuri/media/post_banners/fcc9ba8df856aaeaf584d3e46f7a7861cc2aad133b0f777e4ae98f6b3024fe35.jpg)
उत्तर प्रदेश के बाहुबलीयों, राजनेताओं को फिल्मों में कितनी बार महामंडित किया जा चुका है। लेकिन इस बार आंनद एल राय, अनुराग कश्यप, मधुमंटेना तथा विक्रम मोटवानी द्धारा निर्मित और अनुराग कश्यप द्धारा निर्देशित फिल्म ‘मुक्काबाज़’ में वहां के बाहुबलियों तथा आईएएस आफिसरों द्धारा बॉक्सिंग के खिलाड़ियों के शोषण को एक हद तक प्रभावशाली ढंग से दिखाने की कोशिश की गई है।
फिल्म की कहानी
बरेली के पूर्व बॉक्सर कोच और बाहुबली जिमी शेरगिल यानि भगवान दास मिश्रा का खेल लॉबी और शहर में काफी दबदबा है। वो नये बॉक्सरों से अपने घर के काम करवाता है। इसके अलावा वो इतना क्रूर है कि अपने बड़े भाई और भाभी साधना सिंह तथा उनकी गूंगी बेटी जोया हुसैन यानि सुनैना तक पर उसकी दहशत है। उसके शिष्यों में वीनीत कुमार सिंह यानि श्रवन कुमार एक योग्य बॉक्सर है जिसे कोच का खिलाड़ियों से अपने और घर के काम करना अच्छा नहीं लगता। जब वो एक दिन इस बात का विरोध करता है तो कोच उसे अपने यहां से निकाल बाहर करने के अलावा चैलेंज देता है कि अब उसे वो कहीं भी बॉक्सिंग नहीं करने देगा। श्रवन, कोच की गूंगी भतीजी सुनैना से प्यार करता है सुनैना भी उसे चाहती है। इसके बाद श्रवन एक अन्य कोच रवि किशन जो भगवान दास के दबदबे से बाहर है के जरिये जिला स्तर पर बॉक्सिंग प्रतिस्पर्धा जीतने में कामयाब हो जाता है। उसका अगला पड़ाव है नेशनल स्तर पर खेलना। इस बीच भगवान दास के भाई उसके विरोध के बाद भी अपनी बेटी सुनैना की शादी दूसरी जाति के श्रवण से कर देते हैं। इसके बाद भगवान दास का कहर अपने भाई के परिवार समेत कोच रवि किशन पर भी टूटता है। वो रविकिशन को अपने पंटरों द्धारा बुरी तरह पिटवाकर आईसीयू केस बना देता है। इसके बाद सुनैना को किडनेप कर पहले तो वो श्रवण को ब्लैकमेल करने की कोशिश करता है, लेकिन श्रवण उसके आगे नहीं झुकता। बाद में सुनैना की शादी जबरदस्ती किसी और से करने की कोशिश करता है। इस बीच श्रवण, नेशनल की तैयारियों के बीच सुनैना को भी ढूंढ निकालता है और जब भगवान दास उसके रास्ते में आता है तो वो उसे और उसके साथियों को घायल कर देता है, बावजूद इसके जब भगवान दास उसे सुनैना से फिर अलग करने की धमकी देता है तो वो भगवान दास द्धारा लगाई गई शर्त के मुताबिक बॉक्सिंग से रिटायर हो जाता है।
/mayapuri/media/post_attachments/1c63862116bb0ddc2a51572394496923a33e4cce30c36aa0716ddf1aaba491b9.jpg)
रियलस्टिक लगती हैं फिल्म
अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी कोई भी फिल्म देख लीजीये उनमें रियलिटी के अलावा और भी कई खूबियां होगीं, लेकिन एक वक्त पर वे फिल्म में कुछ अलग दिखाने के चक्कर में फिल्म के साथ पटरी से उतर जाते हैं। मौजूदा फिल्म की शुरूआत भी बेहतरीन ढंग से होती है जो मध्यातंर तक चलती है, लेकिन उसके बाद की फिल्म शिथिल होती हुई अपने विषय से भटक जाती है। ये सिलसिला फिल्म के क्लाइ्मेक्स तक चलता है। फिल्म की अच्छाई की बात की जाये तो कहानी का माहौल, भाषा और किरदार सभी कुछ रियलस्टिक है यानि कहानी के माहौल से दर्शक पहले से परिचित हैं फिर भी कहानी मध्यातंर के बाद अपने विषय से भटक जाती है। फिल्म के हर सीन में सीन का परिचय देते हुये गाने खीज पैदा करते हैं इसके अलावा क्लामेक्स में हीरो को जीतते हुये दिखाने के बाद विलन की जीत दर्शक के गले नहीं उतरती। फिल्म का म्यूजिक उबाऊ लेकिन संवाद अच्छे हैं।
/mayapuri/media/post_attachments/1c4c3bf60cdcdd62d33d2e84774900df4afd39c55b714600bf563315794690db.jpg)
दमदार अभिनय
अभिनय की बात की जाये तो नये अभिनेता विनीत कुमार सिंह एक जिद्दी और होनहार बॉक्सर की भूमिका को पूरी तरह साकार करता है। इसी प्रकार नई नायिका जोया हुसैन ने भी एक गूंगी लेकिन आज की लड़की को बढ़िया अभिव्यक्ति दी है। एक अरसे बाद साधना सिंह को देख अच्छा लगता है। छोटी सी भूमिका में रवि किशन अच्छे अभिनेता के तौर पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं। जिमी शेरगिल एक बार फिर नगेटिव किरदार में सभी पर भारी दिखाई देते हैं, बेशक वो एक उच्चकोटि के अभिनेता हैं। उनके अलावा श्रीधर दूबे, राजेश तेलंग आदि ने भी बढ़िया काम किया, लेकिन छोटी सी भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी दर्शकों को गुदगुदा जाते हैं।
Follow Us
/mayapuri/media/media_files/2025/10/31/cover-2665-2025-10-31-20-07-58.png)