धर्म और सामाजिक धारणाओं की पड़ताल करती 'मुल्क'

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By Shyam Sharma
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धर्म और सामाजिक धारणाओं की पड़ताल करती 'मुल्क'

तुम बिन, दस, कैश या गुलाब गैंग जैसी फिल्मों के रचियता लेखक निर्देशक अनुभव सिन्हा जब ‘मुल्क’ जैसी धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य पर करारा प्रहार करती फिल्म बनाते हैं तो लगता है कि अपनी पिछली फिल्मों से कहीं ज्यादा विश्वासनीय अनुभव सिन्हा इस फिल्म में लगे हैं या कह सकते हैं यही असली अनुभव सिन्हा हैं।

फिल्म की कहानी

बनारस के एक खुशहाल मोहल्ले में एक खुशहाल मुसलमान परिवार हिन्दूओं के बीच बरसों से पूरे भाईचारे के साथ रहता है। इस परिवार के मुखिया वकील मुराद अली मौहम्मद (रिषी कपूर) बीवी नीना गुप्ता, अपने छोटे भाई बिलाल (मनोज पाहवा) उसकी बीवी रिचा शाह बेटी और उसके बेटे शाहिद (प्रतीक बब्बर) के साथ खुशहाल जिन्दगी बसर कर रहे हैं। एक दिन लंदन से आकर उनकी बहू और वकील आरती मौहम्मद (तापसी पन्नू) उनकी खुशी दुगनी कर देती है। एक दिन अचानक पता चलता है कि बनारस में एक आतंकी हमले का जिम्मेदार इसी परिवार का लड़का शाहिद है तो पूरा परिवार सदमें में आ जाता है। शाहिद के पिता बिलाल को आतंकी साजिशकर्ता के तौर पर गिरफ्तार कर लिया जाता है। बरसों से घुलमिल कर रहने वाला ये परिवार एक पल में बरसों से रह रहे मौहल्ले वालों की शक्की नजरों का शिकार हो जाता है। हर कोई इस परिवार से दूर रहना पंसद करने लगता है। यहां तक मुराद अली के दोस्त भी उससे दूर हो जाते हैं। कोर्ट में बिलाल के अलावा जब मुराद अली तक को आरोपी बनाया जाने लगता है तो अपने परिवार को निर्दोष साबित करने के लिये लड़ने जा रहे मुराद अली इस केस की बागडोर अपनी बहू आरती को थमा देते हैं। इस परिवार को आतंकी साबित करने के लिये विपक्ष के वकील संतोष आनंद (आशूतोष राणा) औरं पुलिस अफसर दानिश जावेद (रजत कपूर) -जिसने शाहिद का इनकाउंटर किया था- कमर कस लेते हैं। इसके बाद इस मुस्लिम परिवार की हिन्दू बहू अपने परिवार की मान मर्यादा बचाने के लिये कोर्ट में काला चोगा पहन उठ खड़ी होती है। बाद में वो किस तरह अपने परिवार को बाई इज्जत बरी करवा पाती है, इसके लिये फिल्म देखना जरूरी है।

फिल्म का एक कोर्ट सीन, जिसमें वकील तापसी पन्नू कठघरे में खड़े मुराद अली बने रिषी कपूर से पूछती है कि आप कैसे साबित करेगें कि दाढ़ी रखे मुराद अली और उस दाढ़ी वाली आंतकी में क्या फर्क है। आप एक देश के प्रति ईमानदार मुसलमान है लेकिन अपनी देश भक्ति कैसे साबित करेगें?  ये संवाद सुनकर पूरे कोर्ट में सन्नाटा छा जाता है, यही सन्नाटा दर्शकों के बीच भी दिखाई देने लगता है। हर कोई सोचने पर मजबूर हो जाता है। यहां कहना होगा कि अनुभव सिन्हा की फिल्म मुल्क इस दौर में सबसे जरूरी फिल्म बन गई है। हम यानि हिन्दू और वो यानि मुसलमान के बीच के विभाजन की और ध्यान आकर्षित कर आज के धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य पर फिल्म कड़ा प्रहार करती है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि पूरी फिल्म और उसके किरदारों के बीच स्वंय अनुभव सिन्हा नायक बन उभर कर सामने आते हैं। कोर्ट में अगर कानून की बात की गई है तो साथ ही कुछ ऐसे प्रसंग भी हैं जिन पर समाज में आम चर्चा होती है जैसे मुसलमानों में एक से ज्यादा शादी ज्यादा बच्चें पैदा करने के लिये की जाती है, इसीलिये वहां शिक्षा का अभाव है। फिल्म के जरिये ऐसे मुद्दों और विषय पर प्रश्न किये हैं जो हमारे जहनों में बरसों से दबे पड़े हैं और हमारी सोच को कुंठित किये हुये थे। हम अक्सर जेहाद नाम आतंकवादियों के मुंहू से सुनते रहते हैं। फिल्म में इस शब्द का अर्थ आतंकवाद नहीं बल्कि स्ट्रगल बताया गया है। यही नहीं, फिल्म में विभाजन की राजनीति पर भी प्रकाश डाला गया है। किसी फिल्म में शायद पहली बार पूरी ईमानदारी से बताया गया है कि जब किसी मुस्लिम परिवार में से कोई आतंकी निकल आता है, बाद में वो भले ही पुलिस की गोलियों को शिकार हो अपने अंजाम तक पहुंच जाये, उसके बाद भी उसके बाद उस परिवार पर क्या बीतती है। फिल्म का सधा हुआ स्क्रीनप्ले और नुकीले संवाद दर्शक को भीतर तक झझकोर देते हैं। एक निश्चित गति से आगे बढ़ती फिल्म अपने दूसरे भाग में जब कोर्ट में पहुंचती हें उसके बाद से आखिर तक दर्शक अपनी जगह से हिलता तक नहीं। संगीत पक्ष की बात की जाये तो ठेंगे से तथा पिया सामने जैसे गाने प्रभावित करते हैं।

अभिनय पक्ष की बात की जाये तो रिषी कपूर ने मुराद अली मौहम्मद नामक किरदार के भीतर घुस कर इतना संजीदा अभिनय किया है कि पता ही नहीं चलता कि वे कब रिषी कपूर से मुराद अली में तब्दील हो जाते हैं। ये उनके कॅरियर की चुनिंदा भूमिकाओं में से एक है जिस पर वे हमेशा गर्व कर सकते हैं। इसी प्रकार मनोज पाहवा ने भी बिलाल की भूमिका में अपने कॅरियर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय कर लोगों की खूब हमदर्दी और वाहवाही बटोरी। तापसी पन्नू वकील के रोल किसी से कम नहीं रहीं। उसने आशूतोष राणा जैसे जंगी अभिनेता से लोहा लिया। दोनों ने बेहतरीन अदायगी का नजारा पेश किया। अपनी छोटी भूमिकाओं में रजत कपूर, प्रतीक बब्बर, कुमुद मिश्रा, नीना गुप्ता तथा रिचा शाह आदि कलाकारों का भी सराहनीय काम रहा।

अगर फिल्म के देखने या न देखने की बात की जाये तो धर्म जात और सामाजिक धारणाओं की निष्पक्ष जांच करने वाली इस फिल्म को देखना इसलिये भी जरूरी हैं क्योंकि ये बरसों से आपके भीतर पनपते प्रश्नों का उत्तर आसानी से पाती है।

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