प्यार का नया एहसास 'ऑक्टोबर'

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By Shyam Sharma
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प्यार का नया एहसास 'ऑक्टोबर'

शूजीत सरकार अभी तक अपनी फिल्मो के लिये ऐसे विषय लेते रहे हैं जिन पर फिल्में बनाने की सिर्फ कल्पना की जा सकती है। इस बार उन्होंने फिल्म 'ऑक्टोबर' के जरिये प्यार का एहसास ही नहीं करवाया बल्कि ये भी बताया है कि एक अनकहे,  अनदेखे प्यार की खातिर भी इंसान कुछ भी करने के लिये तैयार हो सकता है।

फिल्म की कहानी

डैन यानि वरूण धवन होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिये एक फाइव स्टार होटल में इंटर्नशिप कर रहा है, वो तबियत से इतना चंचल है कि उसके अनुशासनहीन रवैये से वहां हर कोई परेशान है, लिहाजा उसे जॉब से निकाल देने की धमकियों का बार बार सामना करना पड़ता है। जबकि उसकी पार्टनर शिवली यानि बनिता संधू एक अनुशासन प्रिय और काफी मेहनती लड़की है। उन दोनों के बीच एक रिश्ता है जो सिर्फ महसूस किया जा सकता है। अचानक एक दिन शिवली एक हादसे का शिकार हो कोमा में चली जाती है जिस वक्त उसके साथ हादसा हुआ लोगो ने उसे डैन का नाम लेते हुये सुना। बाद में शिवली के कोमा में चले जाने का सबसे ज्यादा असर डैन पर हुआ, लिहाजा वो एक वक्त वो उसके लिये सब कुछ छोड़ देने के लिये अमादा हो जाता है।

हमेशा अलग विषयों पर फिल्में बनाने वाले शूजीत सरकार ने इस बार ऐसा विषय चुना जो प्यार के कुछ अलग मायने बताता है। फिल्म का पहला भाग डैन के लापरवाही और गैर अनुशासनात्मक रवैये भरी बातों में ही निकल जाता है, लेकिन दूसरा भाग जब शुरू होता है तो डैन का न समझ में आने वाला रवैया एक बार फिर शुरू हो जाता है लेकिन इस बार वो सब कुछ छोड़, शिवली के अस्पताल के चक्कर लगाता रहता है, कुछ इस तरह जैसे शिवली से वो जुड़ सा गया हो। इस बात का एहसास शिवली के परिवार को भी है। डैन अपने आसपास शिवली द्धारा कहे शब्दों के जवाब तलाश कर रहा है कि हादसे के वक्त शिवली ने उसे क्यों याद किया था। दर्शकों को डैन के प्यार का एहसास हो जाता है लिहाजा वे भी उसके साथ चलते रहते हैं। लेखिका जूही परमार ने जो लिखा है उसे शूजीत सरकार ने जिस सहजता और संवेदनशालता से फिल्माया है वो उन्हें एक बहुत समझदार और बड़ा निर्देशक साबित करता है। बाकी चीजें जैसे उम्दा फोटोग्राफी कहानी को और प्रभावशाली बनाती हैं।

वरुण-बनिता का शानदार अभिनय

अभी तक मसाला फिल्मों में अपनी बेफिक्र बिंदास धमाल एक्टिंग करने वाले वरूण धवन ने 'बदलापुर' जैसी फिल्म में लीक से हटकर अभिनय करते हुये लोगों को अपने बढ़िया अभिनेता होने का एहसास करवाया था, लेकिन यहां तो जैसे वो किरदार में पूरी तरह घुस कर बैठ गया, लिहाजा एक एक फ्रेम में उसकी सहजता, मानसिकता तथा कितनी जगह आंखे नम कर देने वाले भाव उसे एक परिपक्व अभिनेता के तौर पर सामने लाते हैं। कोमा का शिकार बनी बनिता संधू अपनी आंखों के हाव भाव से अपने एक अच्छी अभिनेत्री होने का सुबूत देती है। उसकी मां की भूमिका के तौर पर हिन्दी सिनेमा में गीताजंली राव नामक जबरदस्त अभिनेत्री का आगमन हुआ है।

प्यार का नया एहसास देने वाली ये फिल्म दर्शकों के लिये शूजीत सरकार की तरफ से एक तोहफे के तरह है, जिसे शायद ही कोई दर्शक मिस करेगा।

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