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संजय लीला भंसाली द्धारा रचित फिल्म ‘पद्मावत’ के साथ बेशक महिनों से कितने ही राजपूत और हिन्दू संगठनों का विवाद चल रहा हो लेकिन फिल्म देखने के बाद वो सब बेमानी लगने लगता है। जिसने भी फिल्म देखी उसे सबसे ज्यादा उत्सुकता वे सीन देखने की थी जिन्हें लेकर ये संगठन विवाद कर रहे हैं लेकिन वहां उसे उस अति भव्य फिल्म में दिखाई देता है राजपूतों की वीरता भरा शौर्य, अपने उसूलों पर गर्व, इसके अलावा राजपूत राजा रानीयों की आन बान शान से पूरी तरह लबरेज है ये 'पद्मावत', जिसका हर फ्रेम देखते बनता है।
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फिल्म की कहानी
दिल्ली के तख्त पर जालालूद्दीन खिलजी(राज़ा मुराद) का कब्जा है लेकिन उस पर उसी के सिपहसालार अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) की नजर है। उलाउद्दीन एक सनकी, विलासी, व्यभिचारी तथा कुंठित मानसिकता वाला एक जबरदस्त लड़ाका है, उसकी जिस नायाब चीज पर नजर पड़ जाती है उस पर वो अपना अधिकार समझने लगता है। खिलजी साम्रराज्य जब दिल्ली तक पुहंच जाता है तो अलाउद्दीन, जलालुद्दीन को मार उसकी कुर्सी पर काबिज हो जाता है। इससे पहले वो उसकी बेटी आदिति राव हैदरी से शादी कर लेता है। दूसरी तरफ मेवाड़ के राजा रावल रतन सिंह (शाहिद कपूर) की पत्नि पद्मावती बेहद खूबसूरत होने के अलावा बुद्धिमान, साहसी और धनुष विद्या में प्रवीण ऐसी महारानी है जो बहुत जल्द चित्तौड़ राज्य के लोगों का दिल जीत लेती है। रतन सिंह और पद्मावती द्धारा अपमानित हो राज्य का राजगुरू दिल्ली जाकर अलाउद्दीन के सामने पद्मावती की खूबसूरती का इस तरह बखान करता है कि विलासी खिलजी पद्मावती को पाने के लिये मचल उठता है। वो पहले तो रतनसिंह के पास अपना संदेश भेजता है जिसे रतनसिंह ठुकरा देते हैं, इसके बाद वो अपनी विशाल सेना के साथ मेवाड़ जा पहुंचता है, लेकिन छह महीने तक पड़ाव डाले रहने के बावजूद उसकी एक नहीं चलती तो एक चाल चल वो राजा रतन सिंह को कैद कर लेता है। इसके बाद पद्मावती अपनी सूझबूझ और शौर्य से दिल्ली में कैद रतनसिंह को आजाद करवाने में कामयाब हो जाती है, लेकिन इसमें उनके वफादार गोरा और बादल जैसे वीर शहीद हो जाते हैं ।
रतनसिंह के आजाद होने से बौखलाया अलाउद्दीन इस बार दुगनी सेना के साथ मेवाड़ के किले पर धावा बोल देता है। इस युद्ध में रतनसिंह अलाउद्दीन को निहत्था कर देते हैं, लेकिन इस बीच खिलजी का गुलाम मलिक काफुर रतनसिंह की पीठ पीछे से तीरो से छलनी कर देता है । इसके बाद पद्मावती को पाने के लिये उतावला हो खिलजी किले में पहुंचता है उससे पहले ये खबर किले में पहुंच जाती है। इसके बाद पद्मावती अपनी बीस हजार दासियों के साथ जोहर के निकल पड़ती है । इस तरह वह खिलजी की ख्वाईशों को ध्वस्त कर देती है ।
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काव्य पर आधारित है पद्मावत
फिल्म की कहानी मौहम्मद जायसी के 1540 इस्वी में लिखें काव्य पद्मावत पर आधारित है। जो राजपूत महारानी पद्मावती के शौर्य, उसकी वीरता और साहस की गाथा कहती है। 1303 में अलाउद्दीन खिलजी पद्मावती के सौंद्रय और उसकी इन्हीं खूबियों पर रीझ कर उसे पाने के लिये लालियत हो उठा था। उसकी यह ख्वाईश पद्मावती अपनी सूझबूझ और कूटनीति के तहत अधूरी बना देने में कामयाब होती है । संजय लीला भंसाली ने ये गाथा बेहद भव्य और शानदार ढंग से दर्शाई है। भव्यता के तहत आंखों को चकाचौंध कर देने वाली इस फिल्म के किरदार, माहौल, राजा महाराजाओं की शान ओ शोक़त, तथा खिलजी सामराज्य में पहले जलालुद्दीन खिलजी की विलासता उसके बाद अलाउद्दीन खिलजी की कू्ररता, उसका सनकीपन, उसकी व्यभिचारिता उसकी कुंठित मानसिकता रौंगटे खड़े कर देती है। भव्यता की चरम सीमा पार करते सेट, हर तरफ वैभवता। महारानी पद्मावती के वेश में सर से लेकर पांव तक भारी भरकम पौशाक और गहनां सी ढकी दीपिका पादुकोण पद्मावती के किरदार में पूरी तरह से विलीन होती दिखाई देती है। राजा रतनसिंह अपनी आन बान शान के तहत राजपूताना शौर्य का नृतत्व करते दिखाई देते हैं। उधर पहले जलालुद्दीन और फिर अलाउद्दीन खिलजी जिनकी कू्ररता देखते हुये कई बार सिहरन सी दौड़ जाती है। ये सब देखते हुये शिद्धत से महसूस होता है कि संजय लीला भंसाली एक महान फिल्म निर्देशक होने के अलावा एक बेहतरीन संगीतकार भी हैं। खली बली सॉन्ग उनकी फिल्म बाजीराव के गीत ‘दुश्मन की वाट लावली’ की याद ताजा कर जाता है तथा घूमर गीत पूरी तरह राजस्थानी गीत संगीत पर आधारित लगता है। पूरी फिल्म देखने के बाद आप किसी एक चीज की तारीफ नहीं कर सकते क्योंकि फिल्म का हर फ्रेम सौंद्रय, भव्यता और किरदारों की उम्दा अदाकारी से ओतप्रौत है। फिल्म का स्क्रीन प्ले इतना टाइट है कि दर्शक पौने तीन घंटे तक फिल्म के साथ मंत्रमुग्ध हो जुड़ा रहता है तथा संवाद ऐसे कि रांगटे खड़े हो जाते हैं। जैसे एक सीन में अपनों द्धारा घायल अलाउद्दीन अपने महल में बैठा है, पद्मावती उसके सिपाहियों को धत्ता बता, रतनसिंह को छुड़ा ले जाती है। इसके बाद हताश अलाउद्दीन अपने गुलाम मलिक काफुर से कहता है कि मलिक क्या मेरे हाथ में प्यार की लकीर नहीं है, अगर नहीं है तो क्या तू मेरे हाथ में प्यार की लकीर बना सकता है। काफुर अपने मालिक हालत पर रो उठता है। उसकी कु्ररता का एक नजारा, जब रतन सिंह युद्ध में उसे निहत्था कर देता है तो उसका गुलाम मलिक रतन सिंह को धोखे से तीरों से छलनी कर देता है तो अलाउद्दीन मरते हुये रतन सिंह को कहता है जंग का एक ही उसूल होता है, जीत। खिलजी की कू्ररता दर्शाता एक और संवाद, जब उसकी पत्नि उसे कहती है पद्मावती शादीशुदा है, कुछ तो खौफ खाइये। इस पर वो पत्नि से पूछता है आज खाने में क्या क्या है । पत्नि द्धारा ढेर सारे व्यंजनों के नाम बताये जाने पर वो कहता है, जब खाने के लिये इतनी सारी चीजें हैं तो मैं खौफ क्यों खाऊं।
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शानदार अभिनय
अभिनय की बात की जाये तो दीपिका पादुकोण ने अपने कॅरियर का सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया है। एक एक दृश्य में उसके भीतर जैसे साक्षात पद्मावती विद्मान हो जाती है । वो हर सीन में अपनी आंखो के अलावा पूरी बॉडी से अभिनय करती दिखाई देती है। जब भी वो अपनी पूरी लकदक के साथ स्क्रीन पर आती है तो उसके आसपास की हर चीज बौनी होकर रह जाती है। रणवीर सिंह को अलाउद्दीन खिलजी के किरदार में देखते हुये साफ हो जाता है कि वो अभिनय के लिये एक ऐसा पागल एक्टर जिसकी लगाम अगर डायरेक्टर के हाथ में न हो तो वो पता नहीं क्या कुछ कर दे। यहां भी उसने किरदार के भीतर तक घुसकर काम किया है। उसने किरदार की विलासता, कू्ररता, व्यभिचरिता को बहुत ही प्रभावशाली ढंग से निभाया है, लेकिन रतनसिंह के किरदार में शाहिद कपूर को देख कर हर बार एक ही सवाल उठता है कि सजंय लीला जैसे मेकर से भला ऐसी गलती कैसे हो गई कि उन्होंने रतनसिंह जैसे लंबे चौडे़ राजपूत राजा के किरदार के लिये शाहिद कपूर को कास्ट किया । फिल्म में शाहिद अपनी बॉडी के मुताबिक कहीं से भी राजपूत नहीं लगते, दीपिका जब भी उसके सामने आती है तो वो उसका सामने बच्चा लगता है तथा अलाउद्दीन खिलजी जैसे विशाल विकराल किरदार के सामने तो शाहिद कूपर को देख हंसी आने लगती है। बावजूद इसके उसने इस कमी को अपनी बढ़िया अदाकरी से भरने की भरकस कोशिश की है। जलालुद्दीन खिलजी के किरदार में रजा मुराद अपनी उम्दा अदाकारी के सदके क्या फबे हैं। अलाउद्दीन की पत्नि के किरदार में अदिति राव हेदरी ने भी अच्छा काम किया। मलिक कफुर के किरदार में जिम सर्भ ने बेहतरीन अभिनय किया है। इसके अलावा राजगुरू, गौरा और बादल जैसे किरदार निभाने वाले कलाकार भी उल्लेखनीय रहे ।
अंत में, ‘पद्मावत’ सजंय लीला भंसाली का ऐसा शहाकार है जिस पर पूरे राजस्थान और राजपूतों को गर्व करना चाहिये ।
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