रोमांच और इमोशन का अभाव 'पलटन' By Shyam Sharma 07 Sep 2018 | एडिट 07 Sep 2018 22:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर बार्डर और एलओसी जैसी आर्मी बेस्ड फिल्मों के मास्टर डायरेक्टर जेपी दत्ता ‘पलटन’ के रूप में एक और रीयल वॉर स्टोरी लेकर आये हैं। बहुत कम लोगों को जानकारी है कि 1962 की चीन और भारत के युद्ध के बाद 1965 में भी एक छोटा युद्ध हुआ था जिसमें भारतीय सैनिकों ने चीनीयों को छटी का दूध याद दिला दिया था। आज भी ये रहस्य है कि इस लड़ाई को सरकार ने आम जनता से क्यों छिपाया। फिल्म की कहानी ये तिब्बत और भारत के बीच नाथूला नामक एक दर्रे का एक अहम रास्ता है। उन दिनों सीमा के नाम पर एक पत्थरों से बनाई एक लकीर हुआ करती थी। उस लकीर पर अक्सर चीनी और भारतीय सैनिकां के बीच नौकझौंक चलती रहती थी। इससे तंग आकर लेफ्टिनेंट कर्नल राय सिंह यानि अर्जुन रामपाल उस लकीर से पहले अपनी जमीन पर तारों की बाड़ लगाने का हुक्म देते हैं। जिसका विरोध चीनी सैनिक करते हैं। ये छोटी सी झड़प बाद में युद्ध का रूप ले लती है लेकिन इस बार भारतीय सैनिक चीनीयों को ऐसा सबक सिखाते हैं कि वे आत्म समर्पण करने पर मजबूर हो जाते हैं। जेपी दत्ता एक बार फिर आर्मी बेस्ड एक अनसुनी कहानी लेकर आये हैं जिसके बारे में लोग बाग जानते ही नहीं थे। 1962 की लड़ाई में चीनीयों ने सुबह पांच बजे सोते हुये सैनिकों पर हमला कर उन्हें बेदर्दी से मारा था जिसका बदला लेने के लिये भारतीय सैनिक तड़प रहे थे। इसका मौका उन्हें 1965 की इस लड़ाई में मिला, जहां उन्होंने चीनीयों को बुरी तरह रौंद डाला। इस बार जेपी वो कमाल नहीं दिखा पाये जो उनकी पिछली फिल्मों में दिखाई दिया थ। फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी ये है कि फिल्म में न तो रोमांच हैं और न ही इमोशन। पहले भाग में चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच बस नौंक झौंक होती रहती है। दूसरे भाग में कहीं जाकर थोड़ा जोश दिखाई देता है और क्लाईमेक्स का युद्ध एक हद तक रोमांच पैदा करता है। फ्लैशबैक कहानी में खलल डालता है जो जबरन ठूंसा हुआ लगता है। हालांकि इस बार भी शूटिंग में रीयल लोकशन और रीयल सैनिकों का सहयोग लिया गया, लेकिन अंत तक फिल्म से दर्शक जुड़ नहीं पाता। एक दो गीत हैं जो बैकग्रांउड में इमोशन पैदा करने की भरसक कोशिश करते हैं। चीनी कमांडर हिन्दी में ‘हिन्दी चीनी भाई भाई’ बोलता हुआ अजीब लगता है। अर्जुन रामपाल, लेफ्टिनेंट राय सिंह की भूमिका में और सोनू सूद मेजर बिशन सिंह के किरदारों में फबे हैं लेकिन एक फिल्म पुराने हर्षवर्धन राणे अपने जोशपूर्ण अभिनय के तहत पूरी फिल्म में छाये रहते हैं। उनका साथ गुरमीत सिंह ने भी खूब दिया। लव सिन्हा के लिये अच्छा मौ का था जिसका वे पूरी तरह फायदा नहीं उठा पाये जबकि सिद्धांत कपूर को पूरी तरह से जाया किया गया। फिमेल किरदारों को ज्यादा मौके नहीं थे। अर्जुन रामपाल की पत्नि के तौर पर इशा गुप्ता फूडड़ लगती है। आर्मी ऑफिसर के रोल में जैकी श्रॉफ भी ठीक ठाक काम कर गये। बेशक ये एक अनसुने सच्चे युद्ध को दर्शाती फिल्म है लेकिन इस बार फिल्म में रोमांच और इमोशन का सर्वथा अभाव दिखाई दिया। बावजूद इसके एक अनसुने युद्ध को देखने के लिये फिल्म देखी जा सकती है। #Sonu Sood #Arjun Rampal #movie review #JP Dutta #Paltan हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article