फ़िल्म रिव्यू - पँचकृति - फाइव एलिमेंट्स
बैनर - युबोन विजन प्राइवेट लिमिटेड
कहानी - हरिप्रिया भार्गव, संजय भार्गव और कुमार राकेश.
निर्माता - हरिप्रिया भार्गव, संजय भार्गव
निर्देशक - संजय भार्गव
संगीत - राजेश सोनी
रेटिंग - 4 स्टार
आज के दौर में जहाँ एक ओर दुनिया चाँद पर कदम रख रही है वहीं दूसरी ओर आज भी सामाजिक स्तर पर नारी उत्पीड़न की ख़बरें आना विचलित कर देता है , ऐसे में यदि कोई निर्माता/निर्देशक नारी सम्मान और उत्थान को मध्य में रखकर किसी फिल्म का निर्माण करता है तो वाक़ई यह प्रेरणादायक कदम ही कहा जायेगा. पँचकृति ऐसी ही पाँच कहानियों का अनोखा संगम है जिसके माध्यम से फिल्मकार ने समाज मे नारियों के प्रति सोंच को बदलने का प्रयास किया है.
उत्तरमध्य भारत के बुंदेलखंड इलाके के चंदेरी शहर को विषय का केंद्रबिंदु मानकर इस फ़िल्म की कथा पटकथा को बुना गया है जिसमे बुंदेलखंड और राजस्थानी दोनों पुट सामने से उभरकर आए हैं. इस फ़िल्म का पहले ही दृश्य में भगवद्भक्ति और उसके साथ ही विजयेंद्र काला के अभिनय के साथ जो ज्योतिष विद्या और तँत्रमंत्र कि कहानी शुरू होती है वो फ़िल्म के आख़िरी तक आपको बांधे रखने में कामयाब रहती है. इस फ़िल्म में बुंदेलखंड के मशहूर सुआता पूजा के साथ नारी के प्रति लोगों के नजरिये और धार्मिक आस्था को भी बखूबी परोसा गया है. कहानी के अगले पड़ाव में दिखाया गया है कि किस तरह से पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर किसी अजन्मे बच्चे को कभी भी गर्भ के अंदर नहीं मार देना चाहिए. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा देने वाले देश में यह पाप के साथ साथ कानूनी अपराध भी है. निर्देशक ने इसको समझाने के लिए जो भविष्य की बच्ची का कंसेप्ट जोड़ा है वह वाक़ई में अद्भुत रोचकता प्रदान करता है.
फिल्म पंचकृति ग्रामीण भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, परंपराओं और रीति-रिवाजों को व्यापक रूप में दर्शकों के सामने प्रदर्शित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है. "Panch Kriti: Five Elements" का उद्देश्य महिला सशक्तिकरण, सुआता पूजा और बेटी बचाओ जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों पर प्रकाश डालना है. पंचकृति: फाइव एलिमेंट्स पांच कहानियों के समिश्रण पर आधारित है. फिल्म में दर्शायी पाँचों कहानियों का आधार बुंदेलखंड के चंदेरी शहर में स्थित हैं. भारत के प्रतिष्ठित कलाकरों के साथ नए, उभरते कलाकार भी फिल्म में अपने अभिनय का जादू बिखेरते नज़र आ रहे हैं. कोरोना के महाप्रकोप बाद सिनेमाघर, ख़ास कर सिंगल स्क्रीन थिएटर, दर्शकों की कमी सहित कई सारी समस्याओं से जूझ रहे हैं. यह फिल्म, जो ग्रामीण भारत की कहानियों को उजागर करती है, इन सिनेमाघरों में दर्शकों को वापस ले कर आने का काम करेगी. फ़िल्म में प्यार मोहब्बत के साथ साथ बेहतर गीत संगीत भी है जो दर्शकों को थियेटर तक खींच लाने का काम करेंगे. ओटीटी के जमाने मे भी यदि दर्शक इस फ़िल्म को देखने के लिए थियेटर तक आते हैं तो ये बहुत बड़ी उपलब्द्धि मानी जायेगी. क्योंकि फ़िल्म बेहतर कॉन्सेप्ट के साथ बेहतर लोकेशन और तकनीक के साथ बनाई गई है.
फ़िल्म में अभिनय की बात करें तो हर बड़ी फिल्मों की भांति फ़िल्म की शुरुआत से ही विजयेंद्र काला ने पंडित के चरित्र में जान फूंक दिया है , उनके साथ उमेश बाजपेई ने मौर्या जी के रूप में भी ध्यान आकर्षित किया है. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती है फिर माही के चरित्र में माही सोनी, मुकेश के रूप में तन्मय चतुर्वेदी ने अधिक प्रभावित किया है. वहीं कुरंगी विजयश्री नागराज ने सखी के चरित्र को भी संजीदगी से निभाया है. देवयानी चौबे ने रत्ना के रूप में एक सधी हुई लड़की का अच्छा कैरेक्टर निभाया है. फ़िल्म के अगले पड़ाव में पहुंचते ही सागर वही ने सन्नी के किरदार में अच्छा खासा प्रभावित किया है वहीं उनके अपोजिट सारिका बहरोलिया ने रजिनी का किरदार भी सुंदर तरीके से निभाया है. रवि चौहान रजनी के पिता के रूप में भी बढ़ियां जमें हैं. वहीं पूर्व पराग ने कुसुम का कैरेक्टर बेहतरीन निभाया है. कुल मिलाकर फ़िल्म अपना संदेश देने में कामयाब हुई है और अब दर्शकों के ऊपर निर्भर करता है कि कितना प्यार इस पँचकृति को देते हैं.