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हिन्दुस्तानी होने का गर्व महसूस करवाती है 'परमाणु- द स्टोरी ऑफ पोखरण'

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By Shyam Sharma
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हिन्दुस्तानी होने का गर्व महसूस करवाती है 'परमाणु- द स्टोरी ऑफ पोखरण'

बॉलीवुड में जॉन अब्राहम जैसे मेकर भी हैं जो कर्मशल फिल्मों के अलावा कुछ ऐसी फिल्में भी बनाते रहते हैं जो देश से जुड़ी होती है। विकी डोनर, मद्रास कैफे तथा फोर्स, फोर्स 2 जैसी फिल्मों के बाद जॉन द्धारा निर्मित और अभिषेक शर्मा द्धारा निर्देशित फिल्म ‘ परमाणू- द स्टोरी ऑफ पोखरण ऐसी फिल्म है जो 1998 में पोखरण में हुये न्यूक्लीयर टेस्ट का सजीव व प्रभावशाली चित्रण दिखाती हैं जिसके बाद भारत भी एक सुपर पावर बनकर उभरा था। इस टेस्ट को लेकर सारे भारतीयों का सीना चौड़ा हो गया था।

फिल्म की कहानी

जॉन यानि अश्वत रैना जो एक इंजीनियर ब्यूरोक्रेट और फौजी का बेटा हैं जो पड़ोसी देश के लगातार कई परमाणु परिक्षण करने के बाद एक प्रस्ताव रखता है कि उसके पास भी एक ऐसा प्लान है, जिसके बाद हमारा देश भी परमाणु ताकत बन जायेगा। लेकिन उसके प्लान को प्रधान मंत्री के सामने आधे अधूरे तरीके से रखा जाता है लिहाजा 1974 में किया गया परमाणु परिक्षण फेल हो जाता है साथ ही अमेरिका की नजरों में भारत आ जाता है जिसके तहत उस पर कई प्रतिबंध लगा दिये जाते हैं और इस नाकामयाबी का पूरा ठिकरा अश्वत पर फोर्ड दिया जाता है, बाद में उसे नौकरी से भी निकाल दिया जाता है। देश भक्त अश्वत अपनी बीवी और बच्चे के साथ कहीं दूर जाकर अपनी जिन्दगी बसर करने लगता हैं। तीन साल बीत जाते हैं इस बीच काफी उथल पुथल होती है नई सरकार आती है। एक बार फिर अश्वत को बुलाया जाता है। इस बार वो एक ऐसी टीम बनाकर काम करता है जिसका हर सदस्य पूरी तरह से देश भक्त है। पोखरण जाकर किस प्रकार अश्वत अपनी टीम को वहां पाकिस्तानी और अमेरिकी गुप्तचरों के जाल से बचाने के अलावा पोखरण पर हमेशा नजरे गड़ाये अमेरिकी सेटेलाइट को गच्चा दे एक साथ तीन न्यूक्लीयर टेस्ट करने में कामयाब हो कर दिखाता है। publive-image

जॉन ने ये फिल्म काफी दुश्वारियां झेलते हुये कंपलीट की। कितना अरसा उसका और फिल्म की पार्टनर प्रेरणा अरोड़ा के साथ कोर्ट बाजी करने में बीता अंत में जीत उसी की हुई। सबसे पहले तो जॉन की पीठ इस वजह से थपथपानी होगी कि उसने इतना चेलेंजिग विषय चुना। इसके अलावा इतने जटिल विषय को इतने आसान तरीके से बनाया गया जो आम दर्शक की समझ में भी आसानी से आ जाता है। फिल्म को दिलचस्प बनाने के लिये कुछ तथ्य काल्पनिक हैं लेकिन वे फिल्म को मनोरजंक बनाते हैं। फिल्म में कुछ खामियां भी हैं जैसे इस महान कार्य में कुछ अन्य लोगों का भी सहयोग रहा लेकिन पूरा क्रेडिट उस वक्त की सरकार भाजपा को दे दिया गया। कथा पटकथा संवाद तथा म्यूजिक और रीयल लोकेशन फिल्म के कुछ इस तरह की शेप देते हैं कि दर्शक पूरे समय किरदारों से जुड़ा रहता है और अंत में तो इतना रोमांच है जिसके सामने क्रिकेट का रोमांच भी फीका नजर आता है। अभिषेक शर्मा का बहुत ही सधा हुआ निर्देशन हैं वे फिल्म के जरिये दर्शकों में इतना रोमांच भर देते हैं कि बाहर निकलने के बाद वो  अपने भारतीय होने पर बेहद गर्व महसूस करता है। फिल्म की हाईलाईट की पहली बार किसी फिल्म में सैटेलाइट को विलन बनाया गया है। publive-image

जॉन अब्राहम के अभिनय को देखकर जरा भी नहीं लगता कि वो ढेर सारी दुश्वारियां झेलते हुये फिल्म को दर्शकों तक ला पाये हैं। कहानी लगभग उन्हीं के चारों तरफ घूमती है लेकिन इससे अन्य किरदारों की अहमियत कम नहीं होती। डायना पेंटी एक बार फिर असरदार अभिनय कर लोगों का मन मौह लेती हैं। इनके अलावा अनुजा साठे, बोमन इरानी, योगेन्द तथा टिक्कू आदि कलाकारों का भी बेहद सराहनीय अभिनय रहा।

अंत में यही कहा जायेगा कि परमाणु...... एक ऐसी फिल्म है जो भारतीय होने पर गर्व का एहसास करवाती है।

#John Abraham #movie review #Parmanu: The Story of Pokhran
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