गीला साबित हुआ 'पटाखा'

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By Shyam Sharma
गीला साबित हुआ 'पटाखा'
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विशाल भारद्वाज हमेशा जमीन से जुड़ी कहानीयों पर फिल्में बनाने के लिये जाने जाते हैं। इस बार भी उन्होंने राइटर चरण सिंह पथिक की शॉर्ट स्टोरी दो बहनो से प्रेरित हो फिल्म‘ पटाखा’ का निर्माण व निर्देशन किया। लेकिन इस बार वे देशीपन दिखाने के चक्कर में कुछ ज्यादा ही ओवर हो गये। लिहाजा फिल्म दर्शकों के सिर से गुजर जाती है।

फिल्म की कहानी

गेंदा उर्फ बड़की (राधिका मदान) चंपा उर्फ छुटकी(सान्या मल्हौत्रा) दोनों सगी बहने हैं लेकिन उनके बीच बचपन से पता नहीं क्यों घनघौर दुश्मनी है। दोनों एक दूसरे को एक आंख नहीं देख पाती, अक्सर स्कूल से घर तक पूरा गांव न जाने कितनी बार उनकी जबरदस्त लड़ाई देखता आ रहा है। लिहाजा उनका बापू (विजयराज) दोनों से बहुत परेशान है। लेकिन वो उसके कलेजे की टूकड़े हैं। मजबूरी के तहत विजयराज को बड़की की शादी गांव के पैसेवाले आदमी पटेल (सांनद वर्मा) से तय करनी पड़ती है लेकिन बड़की अधेड़ उम्र पटेल से शादी करने से बचने के लिये अपने ब्वायफ्रेंड जगन के साथ भाग जाती है। निराश विजयराज उसके बाद छोटी बेटी छुटकी की पटेल से शादी करने के लिये तैयार हो जाता है परन्तु इस बार छुटकी अपने ब्वायफ्रेंड के साथ भाग जाती है । इसे किस्मत ही कहा जायेगा कि जिनके साथ दोनों बहने भागती हैं वे दोनों सगे भाई निकलते हैं। इस तरह हमेशा एक दूसरे से पीछा छुड़ाने की ख्वाईशमंद दोनों बहनें इस बार भी एक ही घर में आ जाती हैं। आगे दोनों बहने क्या क्या गुल खिलाती हैं उसे पढ़ने से कहीं अच्छा रहेगा कि बाकी के करतब फिल्म में ही देखे जायें।

विशाल भारद्वाज देशीपन के चक्कर में इस बार कुछ ज्यादा ही देशी हो गये, इतने की पानी सिर से गुजर गया। लचर सी पटकथा के तहत दोनों बहने जिस प्रकार लड़ती हैं वो कहीं से भी हज़म नहीं होता। दूसरे कहानी राजस्थान की है, लेकिन वहां के लोग भाषा झांसी ग्वालियर की बोलते हैं। फिल्म के पहले भाग में दोनों बहने बस गाली गुप्तार करती लड़ती रहती है। इसके बाद दर्शक उत्साहित हो दूसरे भाग में कुछ होता देखने के शुरू से ही फिल्म में नजर गड़ा लेता है, लेकिन वहां उसके हाथ में मनोरजंन के नाम पर झुनझुना ही हाथ आता है क्योंकि फिल्म के तकरीबन सारे किरदार अच्छी एक्टिंग करने के बाद भी कमजोर पटकथा के चलते दर्शकों को प्रभावित नहीं कर पाते। लिहाजा वो अपने आपको ठगा महसूस करता हुआ सिनेमाहाल से बाहर निकलता है। गीत संगीत भी फिल्म से मैच खाता हुआ निकला।

बड़की के तौर पर राधिका मदान और  छुटकी की भूमिका में दगंल फेम सान्या मल्हौत्रा ने दो कट्टर दुश्मन बहनों की भूमिकाओं को पूरी शिद्दत से निभाया है। इसी प्रकार विजयराज ने पिता के तौर पर और सुनील ग्रोवर ने नारद मुनी यानि चुगलखोर के लेकिन हंसमुख इंसान डिप्पर के किरादारों को बढ़िया अभिव्यक्ति दी है। भाभी जी घर पर हैं सीरियल का लोकप्रिय किरदार सक्सेना निभाने वाले अदाकार सांनद वर्मा पटेल की भूमिका में जमे हैं।

अंत में फिल्म को लेकर यही कहा जा सकता है कि विशाल भारद्वाज के चाहने वाले दर्शक गीला फटाका साबित हुई ये फिल्म देखने का खतरा उठा सकते हैं तो.......?

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