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पूरी तरह बेअसर रही 'साहेब बीवी और गैंगस्टर-3'

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By Shyam Sharma
पूरी तरह बेअसर रही  'साहेब बीवी और गैंगस्टर-3'
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फिल्म ‘ साहेब बीवी और गैंगस्टर की तीसरी कड़ी में तिग्मांशू धूलिया वो जादू नहीं जगा पाये जो पहली दो कड़ियों में था। इस बार संजय दत्त के फिल्म से जुड़ने के बाद दशकों की उत्सुकता और ज्यादा बढ़ गई थी, लेकिन फिल्म में संजू पूरी तरह से निराश करते हैं।

फिल्म की कहानी

दूसरी कड़ी जहां खत्म होती है। फिल्म वहीं से शुरू होती है। साहेब यानि जिमी शेरगिल जेल में हैं और माही गिल की कोशिश है कि वो जेल में ही रहे। क्योंकि इस बीच वो राजनीति में काफी अच्छी पैठ बना चुकी है। उसके विपरीत साहेब जेल से बाहर आता है और एक बार फिर अपनी बिखरी ताकत जमा करना शुरू कर देता है। दूसरी तरफ सजंय दत्त एक राजघराने का युवराज है, जो बेहद गुस्से बाज है। पिछले बीस साल से वो लंदन में एक क्लब चलाता है। वो राजस्थान के राज घराने का युवराज है जिसे उसके ताऊ कबीर बेदी ने जायदाद के चलते  जानबूझ कर लंदन में सेट किया हुआ है लेकिन एक दुर्घटना के बाद संजू वापस आ जाता है और अपने ताऊ से हिस्सा मांगता है जबकि कबीर बेदी और उसका बेटा दीपक तिजोरी उसे जायदाद से बेदखल कर देना चाहते हैं। माही, जिमी को मरवा देना चाहती है। इसके लिये वो संजू से मिलती है। दोनों में करार होता है जिसमें संजू उसका काम करेगा और वो संजू का। लेकिन अंत में अचानक ऐसा कुछ हो जाता है जिसे जानने के लिये फिल्म देखनी होगी।

बेशक इस बार तिग्मांशू फिल्म नहीं संभाल पाये। फिल्म जिस प्रकार शुरू होती है उससे लगने लगता है कि एक बार फिर एक अच्छी फिल्म देखने के लिये मिलने वाली है, लेकिन दूसरे भाग में सब कुछ गुड़ गोबर होकर रह जाता है। पहले भाग में दो कहानियां समानंतर चलती है लेकिन दूसरे भाग में पता ही नहीं लगता कि कौन सा किरदार क्या कर रहा है, और क्यों कर रहा है। संजय दत्त अपनी उम्र से बड़े लगते हैं ऊपर से उन्हें रोमांटिक गाना गाते हुये दिखाना अटपटा लगता है। दूसरे वह कहीं से भी गैंगस्टर नहीं लगते। लोकेशन पहले से देखी भाली हैं। पटकथा सुस्त लेकिन संवाद अच्छे हैं। फिल्म की तरह म्यूजिक भी सुस्त रहा।

तीनों फिल्मों की रीढ माही गिल हमेशा की तरह इस बार भी अपने हिस्से का काम बढ़िया कर गई। इसी प्रकार जिमी शेरगिल भी अच्छे रहे, लेकिन संजय दत्त अपनी भूमिका में पूरी तरह निराश करते हैं वे न तो युवराज लगते हैं और न ही गैंगस्टर। उनकी भूमिका का अंत भी बेअसर रहा। चित्रांगदा को पूरी तरह जाया किया गया। सोहा अली का किरदार शुरू में ही चुप कर दिया जाता है। इनके अलावा कबीर बेदी, दीपक तिजोरी तथा जाकिर हुसैन ठीक ठाक काम कर गये।

अंत में फिल्म के बारे में यही कहा जा सकता है कि इस बार ये फ्रेंचाइज पूरी तरह से कमजोर और बेअसर साबित हुई है।

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