मूवी रिव्यू: रीयलस्टिक फिल्म 'सोन चिड़िया' By Shyam Sharma 01 Mar 2019 | एडिट 01 Mar 2019 23:00 IST in रिव्यूज New Update Follow Us शेयर रेटिंग*** एक अरसे बाद डाकुओं पर आधारित निर्देशक अभिषेक चौबे की ‘ सोन चिड़िया’ जैसी रीयलस्टिक फिल्म देखने का अवसर मिला। बेशक फिल्म डाकुओं पर बेस्ड है, लेकिन यहां उस तरह डाकू नहीं हैं जिन्हें हम फिल्मों में घोड़ों पर सवार, वेश्याओं के संग राग रंग में डूबे हुये देखते आये हैं। ये बेशक डाकू है लेकिन ईश्वर में विश्वास रखते हैं। पैदल मीलों चलते हैं। कहानी डाकू मानसिंह यानि मनोज बाजपेयी के गैंग में वकील यानि रणवीर शौरी तथा लखना यानि सुशांत सिंह राजपूत आदि ऐसे ठाकुर डकैत हैं जो ईश्वर में पूरा विश्वास रखते हैं। वे अपने जीने का मकसद तलाश रहे हैं और स्चंय अपने वजूद पर सवाल करते हैं। उनके पीछे दरोगा यानि आशुतोश राणा जो जात से गुजर है। वो इस गैंग से निजी बदला लेने के लिये उनके पीछे पड़ा हुआ है। इस बीच उन्हें एक ठाकुर औरत भूमि पेडनेकर मिलती है जो अपनों के जुल्मों की शिकार है और अपने ससुर के हाथों बारह वर्षीय बच्ची सोन चिरैया के बलात्कार के बाद उसे बचाने और अस्पताल तक ले जाने के लिये बीहड़ का रूख करती हैं और मानसिंह के गैंग से टकराती है। मानसिंह के मारे जाने के बाद गैंग की बागडोर वकील के हाथों में है। वो भूमि की मदद करने के बजाये उसे उसके ससुर के हाथों सोंपने की बात करता है लेकिन यहां लखना सामने आता है और भूमि और उस बच्ची को बचाने के लिये अपने ही गैंग से भिड़ जाता है। इसके बाद क्या कुछ होता हैं वो सब फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा। डायरेक्शन अभिषेक जिस प्रकार अंदाज अपनी फिल्मों में अपनाते हैं वो थोड़ा उलझा हुआ होता है जो आम दर्शक की समझ से बाहर होता है इसीलिये आम दर्शक उनकी फिल्मों से दूर ही रहता है। इस बार उन्होंने ऐसे डाकुओं की रचना की है जिन्हें पापी माना जाता है, उनकी बगावत और दिमाग में चलते विचारों को लेकर कहानी घढी गई है। बीहड़ में बनी ये फिल्म बताती है कि क्या गलत है और क्या सही। फिल्म में डकैत, हमला, बदला तथा पुलिस आदि सभी चीजें हैं बावजूद इसके ये अपराध फिल्म नहीं है बल्कि अपराध करने वाले अपराधियों के हालात की कहानी है। यही नहीं फिल्म में प्रकृति के नियम को भी बताया गया हैं कि सांप चूहे का शिकार करता है और बाज सांप का यानि हर मारने वाला भी एक दिन मारा जायेगा। फिल्म में जातिवाद, घर मुखिया, लिंग भेद तथा अंधविश्वास को सरलता से दिखाया है। फिल्म बदले ओर न्याय के अतंर को भी बताती है। बीहड़ को बहुत ही खूबसूरती से कैमरे में कैद किया है। विशाल भारद्वाज का संगीत तथा रेखा भारद्वाज की आवाज कहानी को और सशक्त बनाती है। अभिनय मनोज बाजपेयी मेहमान भूमिका में भी अपना अभिनय कौषल दर्षा जाते हैं। रणवीर शौरी भी प्रभावित करते नजर आते हैं लेकिन सुषांत सिंह राजपूत से काफी बेहतरीन काम लिया गया, उसने अपनी भूमिका मन लगा कर निभाई। भूमि पेडनेकर ने एक हिम्मतवर महिला के किरदार में बढ़िया अभिव्यक्ति दी। दरोगा के एंटी रोल में आशुतोष राणा एक बार फिर प्रभावित कर जाते हैं। क्यों देखें रीयलस्टिक फिल्मों के शौकीन दर्शक फिल्म मिस न करें। #bollywood #movie review #Sushant Singh Rajput #SONCHIRIYA हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article