हम अभी तक न जाने कितने ऐसे खिलाड़ियों के बारे में नहीं जानते जो रीयल लाइफ में सूरमा कहलाये। कुछ अरसे से हिन्दी फिल्मों के मेकर्स की दिलचस्पी ऐसे सूरमाओं के प्रति बढ़ी तो वे हमारे सामने बायोपिक के तहत सामने आये और अपने कारनामों से हमें हतप्रद कर गये। इस सप्ताह निर्मात्री अभिनेत्री चित्रांगदा सिंह तथा दीपक सिंह द्धारा निर्मित और शाद अली द्धारा निर्देशित फिल्म ‘सूरमा’ में भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कैप्टन संदीप सिंह की बायोपिक का चित्रण काफी जद्दोजहद और उतार चढ़ाव वाला दिखाया गया है।
फिल्म की कहानी
कहानी संदीप सिंह यानि दिलजीत दोसांझ नामक एक ऐसे हॉकी प्लेयर की है जो दुनिया का सबसे तेज ड्रैग फिल्कर था। बचपन में लोकल हॉकी कोच की मार खाने के बाद हॉकी से दूर हुआ संदीप उस वक्त एक बार फिर हॉकी पकड़ लेता है, जब वो हॉकी प्लेयर हरप्रीत यानि तापसी पन्नू से प्यार कर बैठता है। उसके प्यार को पाने के लिये संदीप इंडियन टीम में जगह बनाने और नौकरी तक पहुंचने का लक्ष्य रखता हैं जिसके बाद वो जाकर हरप्रीत का हाथ मांग सके। रात दिन संघर्ष कर वो आखिरकार न सिर्फ इंडियन टीम में जगह पाने में सफल होता है बल्कि उसे एक एयर लांइस में नौकरी भी मिल जाती है। हांलाकि उसके पिता सतीश कौशिक चाहते थे कि इंडियन टीम में उनका बड़ा बेटा अंगद बेदी सेलेक्ट हो, लेकिन अंगद, संदीप में एक जबरदस्त फिल्कर को देखता हैं लिहाजा वो उसे हॉकी फैडरेशन ले जाकर कोच विजय राज के हाथ सौंप देता है। इसके बाद वो इंडियन में शामिल हो लागातार मैच जितवाता है। एक दिन अचानक एक पुलिस के सिपाही की लापरवाही से संदीप की पीठ में गोली लग जाती है। जो उसे पूरी तरह अंपग कर जाती है। ऐसे में एक बार फिर मशक्कत कर उसका भाई और पिता उसे अपने पैरो पर खड़ा करते हैं। लिहाजा इस बार संदीप इंडियन हॉकी टीम का कैप्टन बन ओलंपिक में पाकिस्तान को हरा गोल्ड मेडल लेने में कामयाब होता है।
अभी तक जितनी स्पोर्ट पर जितनी बायोपिक बनी हैं, उन सभी में दर्शकों को ऐसे नायकों से रूबरूं करवाया है जिन्होंने सलाहियतं सहूलियते न होने के बाद भी अपने देश का नाम रौशन किया। 'सूरमा' भी एक ऐसे प्लेयर की कहानी हैं जो अपने जुनून के तहत इंडियन टीम तक पहुंचा। फिल्म में कुछ सवाल भी उठाये गये हैं जैसे आज क्रिकेट खिलाड़ियों को तमाम सुविधायें हैं वैसी अन्य खेलों के खिलाड़ियों को क्यों नहीं। अगर संदीप की बात की जाये तो गोली लगने के चार घंटे बाद कहीं जाकर उसे इलाज मुहस्सर हुआ। अगर उसे पहले सारी सुविधायें मिल जाती तो शायद वो अंपग न हो होता। अब नेशनल गेम के खिलाड़ी के साथ ऐसा हो सकता है तो आम आदमी की तो क्या बिसात। फिल्म की कथा पटकथा ठीक रही तथा कहीं कहीं पर संवाद भी चुस्त दिखाई दिये। संगीत कथा के साथ देता रहा। रीयल लोकेशनों पर फिल्माई गई फिल्म की फोटोग्राफी काफी अच्छी थी। संदीप और हरप्रीत के प्यार की बात की जाये तो ये स्पोर्ट पर अधारित लव स्टोरी फिल्म कही जा सकती है।
संदीप सिंह के किरदार में दिलजीत ने कमाल का अभिनय किया है। दिलजीत जैसे संदीप के किरदार में पूरी तरह उतर गये थे। उसके लव सीन हो या अपंग होने की विवशता या फिर हरप्रीत से दूर होने की बेचैनी। सब कुछ दिलजीत ने बहुत शाइस्तगी से निभाया है। हरप्रीत की भूमिका में तापसी पन्नू बस ठीक रही। वैसे भी उसके हिस्से में एक साधारण रोल आया था। पहली बार अंगद बेदी संदीप के बड़े भाई की भूमिका में शानदार काम कर गये। सतीश कौशिक, विजयराज मुख्य अदाकारों को मजबूत कंधा देते दिखाई दिये।