मूवी रिव्यु: एक सवाल के जरिये समाज से लड़ता हुआ 'थप्पड़'

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By Mayapuri Desk
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मूवी रिव्यु: एक सवाल के जरिये समाज से लड़ता हुआ 'थप्पड़'

मुल्क, आर्टिकल 15 जैसी ओजस्वी फिल्में देने वाले अनुभव सिन्हा की एक और विचारोत्क फिल्म ‘ Thappad Movie’ इसी सप्ताह रिलीज हुई है। फिल्म में बेहद असरदार ढंग से ओरत के मान सम्मान की बात की है।

रेटिंग****

कहानी

Thappad Movie में पावेल गुलाटी यानि विक्रम और Taapsee Pannu यानि अमृता दोनों अपर क्लास समाज में रहने वाले पति पत्नि हैं। अमृता एक डांसर बनना चाहती थी लेकिन उसने अपने आपको पति के लिये समर्पित हो उसके सपनों को अपना लिया। जल्द ही विक्रम नोकरी के सदके लंदन शिफ्ट होने जा रहा है। इस बात को लेकर अमृता बहुत खुश है। जाने से पहले घर पर हो रही एक पार्टी में विक्रम अपने बॉस के साथ खुंदक में अमृता को भरे लोगों के बीच 'Thappad' मार देता है।


इसके बाद अमृता अपने स्वाभिमान को लेकर इतनी संजीदा हो जाती है कि वो अपना घर छोड़ अपने मायके आ जाती है। अमृता की मां रत्ना पाठक शाह जहां आम ग्रहणी की तरह सोचती है, वहीं उसके पिता कुमुद मिश्रा प्रोग्रेसिव हैं। लिहाजा जहां मां को कहना है कि मियां बीवी में तो ये सब आम बात है, ऐसा हो जाता है। लिहाजा इस बात को ज्यादा महत्व नहीं देना चाहिये। उसकी सास का मानना है कि घर को समेट कर रखने के लिये ओरत को थोड़ा बहुत सहना पड़ता है, जबकि वो भी अपने पति से अलग हो अपने बेटे के पास रह रही है।

यही नहीं जब अमृता की मां का उसके तलाक लेने का पता चलता है तो वो हैरानी जताते हुये कहती है, अब बेटी तलाक लेगी?  क्या गलती हो गई हमसे?  ऐसे लोगों से घिरी तापसी सारे घटनाक्रम को आगे कैसे ले जाती है और इसका अंत क्या होता है। ये फिल्म देखने के बाद भली भांती पता चलेगा।

अवलोकन

Thappad Movie का टाइटल, फिल्म देखने से पहले ये एहसास दिलाता है कि फिल्म घरेलू हिंसा पर होगी, जहां पति पत्नि के बीच Thappad बाजी होगी, चीखना चिल्लाना होगा, फिर बात तलाक तक जा पहुंचती होगी, इसके बाद हिन्दुस्तानी ओरत होने के नाते पत्नि, पति को माफ करते हुये आगे बढ़ जाती होगी।

लेकिन फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है। न कोई चीखना चिल्लाना न ही कोई हाथा पाई किये, फिल्म एक खूबसूरत एहसास के साथ खत्म हो जाती है और दर्शक (खासकर ओरतें एक नये एहसास के साथ सिनेमाहाल से बाहर निकलती हैं)। ये मेरा व्यक्तिगत ख्याल हो सकता है कि निर्देशक ने जिस प्रकार का क्लाईमेक्स चुना है उसके लिये हमारा समाज अभी मानसिक तौर पर बिलकुल तैयार नहीं है। ये सब विदेशों में होना संभव है क्योंकि वहां और भी बहुत सारे सिस्टम हैं, लेकिन यहां नहीं। दो लोगों को यहां तलाक लेने में सालों लग जाते हैं, इस बीच या तो पति पत्नि के बीच हुई रार खत्म हो जाती है या फिर भारी बदले यानि एक दूसरे को तबाह करने में बदल जाती है।

Thappad Movie में ये बात कही भी गई है कि अगर एक थप्पड़ पर अलग होने की बात की जाये तो आधी से ज्यादा ओरतें अपने मायके में दिखाई देगीं। बावजूद इसके फिल्म में एक सवाल मजबूती से खड़ा किया गया है कि उसने पहली दफा थप्पड़ मारा लेकिन क्यों मारा? नहीं मारना था। फिल्म का पहला भाग तो अमृता द्धारा सपने बुनने में ही निकल जाता हैं दूसरे भाग में फिल्म एक सोच को लेकर पूरी तरह आर पार की लड़ाई की तरफ बढ़ती नजर आने लगती है।

अमृता के आगे कोई दलील,कोई बात मायने नहीं रखती, उसका एक बात पर जौर है कि उसे Thappad क्यों मारा और ये सवाल आखिर में इतना बड़ा सवाल बन जाता है कि सारी दलीलों पर भारी पड़ता है। एक तरफ तो अमृता थप्पड़ के बाद अपनी जिन्दगी के तरीके बदलती दिखाई देती है, दूसरी तरफ उसके साथ जुड़ी पांच ओरतें भी उसकी सोच से प्रभावित हैं जैसे उसके पड़ोस में रहने वाली एक बच्ची की  तलाकशुदा नोकरीपेशा मां दीया मिर्जा, उसकी सर्वंट जो पति से मार खाना अपनी जिन्दगी का हिस्सा मानती है।


एक वकील नेत्रा जो खुद मशहूर वकील होने के अलावा मशहूर टीवी एंकर की पत्नि और नामचीन जज की बहू है, लेकिन किस प्रकार दो सफल मदों की सफलता उसके अचीवमेंट को दबा रही है। उसकी सास तन्वी आजमी जो अपनी पहचान जानने के लिये अपने पति से अलग अपने बेटे के साथ रहती है। उसकी मां रत्ना पाठक शाह जो अपनी बेटी को लगातार अपने पति से दूर न जाने के लिये ताकीद करती रहती है। आखिरी शख्स तापसी के भाई की गर्लफ्रेंड है जो हमेशा उसके साथ खड़ी दिखाई देती है। अगर फिल्म के अंत की बात की जाये तो यहां नायिका के कठोर निर्णय के साथ न होते हुये भी उसके निर्णय को चेलेंज करने का मन नहीं होता। यही फिल्म का सबसे खूबसूरत हिस्सा भी है।

अभिनय

तापसी पन्नू कितनी परिपक्व अभिनेत्री है इस फिल्म में उसके लाजवाब अभिनय को देखकर शिद्दत से ये एहसास होता है। फिल्म में उसके द्धारा बोला गया संवाद  कि ‘उसने मुझे पहली बार थप्पड़ मारा, लेकिन क्यों मारा? नहीं मारना था। सीधा दिल में जाकर लगता है। अपनी पहली फिल्म में ही आत्मविश्वास भरा अभिनय दिखाते हुये पावेल गुलाटी एहसास करवाते हैं कि वे लंबी रेस के घोड़े साबित हो सकते हैं। इनके अलावा दिया मिर्जा़, तन्वी आज़मी,रत्ना पाठक शाह, कुमुद मिश्रा, राम कपूर तथा सर्वेंट की भूमिका निभाती अभिनेत्री ने बेहतरीन अभिव्यक्ति दी।

क्यों देखें

समाज में एक कठोर सवाल छोड़कर जाती इस फिल्म को देखना अपने आपमें एक नया अनुभव होगा।

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