मिलों में मिल मजदूरों तथा उनके यूनियन लीडर द्धारा हक की लड़ाई, अस्सी के दशक की फिल्मों का कथानक हुआ करता था। निर्देशक संजय पटेल की फिल्म ‘ यूनियन लीडर ’ का कथानक भी एक कारखाने में काम करने वाले मजदूरों के यूनियन लीडर का संघर्ष है।
फिल्म की कहानी
राहुल भटट् एक ऐसी कैमिकल फैक्ट्री में काम करता है जो मजदूरों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है, लेकिन उनका मालिक बरसों से उनका शौषण कर रहा है। वो न तो उनके मेडिकल चैकअप पर ध्यान देता है, न ही बरसों से उसने उनकी पगार बढ़ाई। उनका मौजूदा लीडर मालिक का पिटठू है। तंग आकर मजदूर राहुल को लीडर चुन लेते हैं। राहुल अपने मजदूर भाईयों के लिये मालिक से लड़ता हैं और उन्हें न्याय दिलाने में कामयाब होकर दिखाता है।
फिल्म का कथानक यानि मालिक और मजदूरों के बीच संघर्ष पुरानी फिल्मों की याद दिला देता है। निर्देशक जो कहना चाहता है उसे कहने में सफल होता है, लेकिन अफसोस आज ऐसी फिल्मों का जमाना नही रहा। एक अरसे बाद राहुल भटट् को परदे पर देखा, उसने एक संघर्षशील लीडर की भूमिका को बढ़िया अभिव्यक्ति दी है, इसी तरह उसकी बीवी की भूमिका में तिलोत्तमा शोम एक अच्छी अभिनेत्री होने का एहसास करवाती है। सहायक कलाकारों में प्रशांत बारोट और जय भटट् भी उल्लेखनीय रहे।
अंत में फिल्म के लिये यही कहा जायेगा, बासी कथानक वाली इस फिल्म में कलाकारों के अच्छे अभिनय के लिये फिल्म देखी जा सकती है।