एक बार फिर कमल हासन हिन्दी दर्शकों के समुख हैं। लेकिन इस बार वे कोई डब फिल्म नहीं बल्कि विशुद्ध हिन्दी फिल्म ‘ विश्वरुप 2’के साथ आये हैं, ये उनकी पहली फिल्म ‘विश्वरुप’ का दूसरा पार्ट है। इस बार भी वे फिल्म के प्रोड्यूसर, राइटर, डायरेक्टर और एक्टर हैं। ये फिल्म वहां से शुरू होती है, जहां पहली खत्म हुई थी और इस बार भी पहली फिल्म की तरह आतंकवाद पर ही आधारित है ,लेकिन इस बार न जाने क्यों कमल कहानी में कहीं न कहीं खुद उलझ कर रह गये।
फिल्म की कहानी
जैसा कि बताया गया है कि कहानी वहां से शुरू होती है जहां पहली खत्म हुई थी। रॉ ऐजेंट मेजर विशाम अहमद कश्मीरी (कमल हासन) पत्नि नीरूपमा (पूजा कुमार) तथा अपनी साथी एजेंट अस्मिता (एड्रिया जेरेमिया) के साथ अलकायदा का मिशन कंपलीट वापस लौट रहा है। परन्तु एक बार फिर उसे एक और आतंकवादी से दो चार होना है,क्योंकि आगे उसे आतंकवादी कुरेशी (राहुल बोस) की आतंकवादी गतिविधियों को रोकना है। इस मिशन में उसके साथ उसकी पत्नि और कर्नल जगन्नाथ (शेखर कपूर) सहयोगी हैं। इस मिशन के दौरान विशाम पर कई बार हमले होते हैं लेकिन वो हर बार साफ बच निकलता है। एक हमले में उसकी साथी अस्मिता शहीद हो जाती है। उसे पता चलता है कि इस बार कुरेशी और उसका साथी सलीम (जयदीप अहलावत) देश की चोसठवीं आजादी के तहत चौंसठ जगह बम विस्फोट करने का प्लान बना रहे हैं। इस ऑपेरेशन में दीवार बने विशाम को रास्ते से हटाने के लिये वे उसकी पत्नि और मां (वहीदा रहमान) -जो अलमाइजर नामक भूलने वाली बीमारी से ग्रस्त है- को किडनेप कर लेते हैं। बदले में विशाम को अपने आपको सरेडंर करने का हुक्म देते हैं। बाद में किस तरह विशाम अपने कौशल और चातुर्य से उनके मिशन को फेल करता है।
इस बार भी कमल हासन ने सभी जिम्मेदारियों को एक साथ जीते हुये काम किया है जिसमें वे एक हद तक सफल भी हैं, लेकिन इस बार वे पटकथा पर चूक गये क्योंकि वो काफी कमजोर साबित हुई है, जबकि फिल्म के डायलॉग्ज काफी अच्छे हैं। फिल्म का पहला भाग धीमा है जो बाद में थोड़ा तेज और दिलचस्प होने लगता है। परन्तु इस बार कमल कहानी को इतना उलझा बैठे कि दर्शक खुद उसमें उलझ कर रह जाता है। कहानी की ये उलझन ही फिल्म को कमजोर करती है। फिल्म का एक्शन बढ़िया है, म्यूजिक भी साधारण रहा। सिवाय एक गीत ‘इश्क किया ता’ के अलावा कोई गीत याद नहीं रह पाता।
कमल हासन अपने चेहरे से भावों को प्रकट करने में मास्टर हैं यहां भी उन्होंने इस विधा का अच्छा इस्तेमाल किया है खासकर वहीदा रहमान के और उनके सीन यादगार बन गये हैं। इसके अलावा उन्होंने इस बार भी अपनी भूमिका एक अनुभवी अदाकार की तरह निभाई तथा एक्शन एक नौजवान एक्शन मैन की तरह किया है। पूजा कुमार और एिंड्रंया जेरेमिया के बीच की आपसी नौक झौंक मुस्कराने पर मजबूर करती है। दोनों ने अच्छा काम किया है। एक अरसे बाद राहुल बोस परदे पर दिखाई दिये। वे आतंकवादी के रोल में बढ़िया काम कर गये, जयदीप अहलावत को क्लाईमेक्स में जो थोड़ा बहुत मौका मिला उसका उसने सही इस्तेमाल किया। राहुल बोस के अलावा शेखर कपूर और वहीदा रहमान आदि कलाकरों को काफी दिनों बाद परदे पर देख सुखद एहसास हुआ।