Advertisment

मूवी रिव्यू: एजुकेशन में फैले भ्रष्टाचार की परतें खोलती 'वाय चीट इंडिया'

author-image
By Shyam Sharma
New Update
मूवी रिव्यू: एजुकेशन में फैले भ्रष्टाचार की परतें खोलती  'वाय चीट इंडिया'

रेटिंग***

वैसे तो आज हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार हैं लेकिन इनमें मैडिकल और एजुकेशन के क्षेत्र में जिस कदर भ्रष्टाचार फैला हुआ है कि तौबा भली। अगर आपके पास पैसा है तो आपको डॉक्टर, इंजीनियर, यहां तक एम बी ए तक की डिग्री आसानी से मिल सकती है। कैसे ? इसके लिये आपको निर्देशक सोमिक सेन की फिल्म ‘ वाय चीट इंडिया’ देखनी पड़ेगी।

कहानी

राकेश सिंह उर्फ रिक्की यानि इमरान हाशमी बेशक एक मध्य परिवार का बड़ा बेटा है लेकिन वो पढ़ाई के मैदान में असफल सिबत होता है तो इसके बाद वो चल पड़ता है एक अलग राह पर। जहां  वो अपने साथ अमीरों के अलावा गरीबों का भी भला करने का दम भरता है। एक वक्त रिक्की एजुकेशन सिस्टम की कमजोर नस पकड़ ऐसा माफिया बन कर उभरता है जो शिक्षा के सिस्टम की खामियों का जमकर फायदा उठाते हुये गरीब मेधावी छात्रों को प्रलोभन दे उन्हें अमीरों की नकारा और निक्कमी औलादों की जगह उन्हें एग्जाम में बैठाकर उनका जमकर इस्तेमाल करता है तथा उन गरीब छात्रों को कुछ पैसा, थोडी एय्याशी करवाते हुये अपराध बोध मुक्त हो जाता है। उसका एक शिकार सत्तू यानि स्निग्धादीप चटर्जी -जिसने इंजीनीयर की डिग्री हासिल की है- बनता है। यहां तक एक वक्त उसके प्रभाव में सत्तू की बहन श्रेया धनवंतरी तक आ जाती है। वक्त के साथ रिक्की और मजबूत बनता जाता है। एक वक्त उसके साथ बड़े रसूखदार नेता और अधिकारी भी आ जाते हैं। अमीरों से मोटा पैसा एंठ रिक्की गरीब मेधावी छात्रों को पैसे और एय्यासी करवा कर उन्हें लती बना देता है। रिक्की एक दो बार कानून की गिरफ्त में आ चुका हैं लेकिन असरदार लोगों की वजह से उसका कुछ नहीं बिगड़ता। क्या कानून उसका कभी कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा ?

डायरेक्शन

लेखक निर्देशक सोमिक सेन इस बात के लिये बधाई के पात्र हैं क्योंकि उन्होंने  अपनी फिल्म के लिये एक ऐसे विषय को चुना, जिसे सामने लाने की भारी जरूरत थी। विषय को लेकर उनकी रिसर्च भी फिल्म में साफ झलकती है। उन्होंने बारीकी से इस तंत्र की परतें खोलते हुये प्रभावी ढंग से बताने  की कोशिश की हैं कि प्र्रकार रिक्की जैसे लोग गरीब मेधावी छात्रों का इस्तेमाल कर अमीरों की निक्कमी औलादों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाते हैं। एक जगह आकर स्क्रीनप्ले थोड़ा कमजोर पड़ जाता है। संगीत के लेबल पर दिल में हो तुम, कामयाब तथा फिर मुलाकात जैसे गीत कहानी को और मजबूत बनाते हैं। इसके अलावा दूसरे भाग में कहानी थोड़ी बिखरने लगती है। बावजूद इसके निर्देशक के प्रयासों की खुलकर प्रशंसा की जा सकती है।

अभिनय

इस फिल्म से अभिनेता इमरान हाशमी प्रोड्यूसर भी बन गये हैं सो उन्हें एक अच्छी फिल्म बनाने के लिये बधाई। इसके अलावा किसिंग किलर इमरान ने अपनी इमेज से हटकर एक ग्रे-शेड किरदार बहुत ही खूबसूरती से निभाया है । -हालांकि यहां भी किसिंग सीन की हल्की सी झलक है-उसके अलावा स्निग्धदीप तथा श्रेया धनवंतरी के ये पहली हिन्दी फिल्म है। दोनों ने ही अपनी अपनी भूमिकाओं में सहज अभिनय कर उसे दमदार बनाया है।

क्यों देखें

एजुकेशन में होने वाले चीटिंग नुमा भ्रष्टाचार को अच्छी तरह से समझने के लिये फिल्म का देखना जरूरी है।

Advertisment
Latest Stories