देओल बंधुओं की फिल्म यमला पगला दीवाना की तीसरी कड़ी ‘ यमला पगला दीवाना फिर से’ नवनीत सिहं ने निर्देशित की हैं नवनीत पंजाबी फिल्मों का जाना पहचाना नाम है। इस बार बाप बेटे पहली कड़ी से अलग भूमिकाओं में मनोरंजन करते नजर आ रहे हैं।
फिल्म की कहानी
अमृतसर में पूरन सिंह वैद्य यानि सनी देओल का बहुत नाम है। उसके पास उसके बुर्जुगों द्धारा बनाई गई वज्रकवच नामक दवा है जो हर बीमारी के लिये लाभदायक है। उस दवा से चेहरे की सुंदरता से लेकर नपुंसकता का ईलाज सफलता पूर्वक होता है। उस दवा के फार्मूले पीछे कितनी ही बड़ी बड़ी दवा कंपनियां हाथ धोकर पीछे पड़ी हैं लेकिन पूरन अपने बुर्जुगों की धरोहर को किसी दूसरे के हाथों नहीं सौपना चाहता। पूरन का एक अविवाहित नकारा छोटा भाई काला सिंह यानि बॉबी देओल है जो हर रात शराब पीकर पड़ोसियों का जीना हराम किये हुये है। कम पढ़ा लिखा होने के वजह से चालीस साल की उम्र हो जाने पर भी उसका विवाह नहीं हो पाया है जबकि उसका सपना कनाडा में सेट होने का है। इनके घर में एक बरसों पुराना किरायेदार है वकील जंयत परमार यानि धर्मेन्द्र, जिन्होंने इनके घर पर कब्जा किया हुआ है। वो इस उम्र में भी रंगीन मिजाज हैं लिहाजा उनके आसपास हमेशा अप्सरायें मंडराती रहती हैं, जो सिर्फ उन्हें ही दिखाई देती हैं। पूरन सिंह की दवा का फार्मला कब्जाने के लिये एक दवा निर्मित करने वाला बिजनेसमैन डॉक्टर कृति खरबंदा को पूरन सिंह पास भेजता है। कृति वो फार्मूला चुराने में कामयाब रहती है। इसके बाद क्या होता है, ये फिल्म देखने के बाद पता चलेगा।
फिल्म एक लोकप्रिय फ्रैंचाईजी है। इसकी तीसरी कड़ी एक हद तक हंसाने में सफल रही है। वैसे भी देओल बंधु की अपनी एक अलग तरह की लोकप्रियता है। जिसका सीधा फायदा फिल्म को मिलने वाला है। फिल्म का पहला भाग काफी दिलचस्प है लेकिन दूसरे भाग में कहानी कोर्ट कचहरी तक पहुंच जाती है। कहानी और किरदारों में किया गया बदलाव ज्यादा प्रभावशाली नहीं बन पाया फिर भी फिल्म दर्शक को गुदगुदाने में सफल है।
धर्मेंद्र बयासी साल की उम्र में भी दर्शकों को हंसाने का मादा रखते हैं। उन्होंने एक मस्तमौला शख्स की भूमिका को पूरी तरह से साकार किया है। सनी इस बार अपनी ढाई किलो के हाथ वाली इमेज से भी आगे निकल गये हैं। इस बार वे एक साथ दो-दो ट्रैरेक्टर अपने हाथों की ताकत से जाम कर देते हैं यहां तक स्पीड से आते ट्रक को अपने शक्तिशाली हाथों से रोक देते हैं, जो ओवर दिखाई देता है। बॉबी देओल फिल्म में काफी स्पेस मिलने का फायदा नहीं उठा पाते। कृति खरबंदा साधारण रही।