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मूवी रिव्यू: 'जीरो' नकली बौने लगे शाहरूख

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By Shyam Sharma
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मूवी रिव्यू: 'जीरो' नकली बौने लगे शाहरूख

रेटिंग**

इस सप्ताह आनंद एल राय और शाहरूख खान की बहुचर्चित फिल्म ‘ज़ीरो’ रिलीज हुई। फिल्म एक बौने और एक अपाहिज वैज्ञानिक लड़की के प्यार पर अधारित है और हमेशा की तरह एक तीसरा किरदार भी हैं जो इनके प्यार को डिस्टर्ब करता है।

बउआ सिंह यानि शाहरूख खान एक अमीर खानदारन का हकलौता चिराग हैं लेकिन बचपन से वो बौना है। अड़तीस साल का होने के बाद भी उसकी शादी नहीं हो पा रही जिसके लिये अपने बाप का पैसा पानी की तरह बहाता रहता हैं ओर बाप यानि तिग्मांशु धूलिया की मार खाता रहता है। बउआ सिंह बॉलीवुड स्टार बबीता कुमारी यानि कैटरीना कैफ पर बुरी तरह से लटटू है। उसे पाने के लिये वो कुछ भी करने के लिये तैयार है। उसी दौरान उसकी एक साइंटिस्ट लेकिन अपाहिज लड़की आरिफा यानि अनुष्का शर्मा से होती है। वो उसे अपनी बातों से इंप्रैस कर उसके साथ हमबिस्तर होने में कामयाब हो जाता है और जब आरिफा से शादी की बात आती हैं तो शा के दिन बउआ भाग खड़ा होता है। उसके बाद कहानी वाया बबीता कुमारी से होती हुई मेरठ, दिल्ली और अमेरिका तक का सफर करती हुई अनुष्का के साथ अपने अंजाम तक पहुंचती है।

कभी कभी जो कागज पर दिखाई देता हैं उसे पूरी मनफाफिक तरीके से पर्दे पर नहीं उतारा जा पाता। आनंद एल राय के याथ बिलकुल यही हुआ। कागज पर तो उनकी कहानी इतनी दिलचस्प थी कि षाहरूख जैसा स्टार उसमें ने सिर्फ काम करने बल्कि उसे बनाने के लिये भी उतावला हो उठा। लेकिन जब कहानी पर्दे पर आई तो वो बिलकुल अलग थी यानि जो सोचा था फिल्म उसके उलट बन कर सामने आई। पहला भाग दिलचस्प हैं उसमें संवाद और कलाकारों की अदायगी काफी अच्छी रही, लेकिन दूसरे भाग में कहानी कहीं की कहीं पहुंच जाती है। एक अच्छी खासी लव स्टोरी खामखांह मंगल ग्रह तक पहुंचा दी जाती है। बेशक फिल्म के आर्टिस्टों ने बेहतरीन काम किया हैं लेकिन कमजोर कहानी में इतने छेद हैं कि निर्देशक की अक्ल पर तरस आता है जैसे बउआ सिंह अपने पिता की दौलत ऐसे उड़ाता है जिसे देख अंबानी भी शरमा जाये, ऊपर से ये नहीं पता कि उसका बाप इतना अमीर कैसे है। यही नहीं बउआ अपने दोस्त के साथ अमेरिका ऐसे जाता है जैसे मुंबई से दिल्ली जा रहा हो। वहां भी वो डालर्स की बारिश करता हैं अब कोई बताये कि वहां उसके पास पैसे आये कहां से। फिल्म में और भी खामियां है। जिन्हें देख की कम से कम आंनद राय और शाहरूख की तो ये फिल्म बिलकुल नहीं लगती। यहां तक फिल्म का म्यूजिक भी साधारण साबित हुआ।

शाहरूख ने इस बार बौने लेकिन अत्यंत चालाक और चपल षख्स का किरदार निभाया है लेकिन स्पेशल इफेक्ट से उन्हें सिर्फ बौना बना दिया लेकिन बाकी सब षाहरूख का ही था यानि वे बौने के तौर पर भी वे रोमांटिक शाहरूख ही लग रहे थे  यानि वे नकली बौने लगते हैं। अगर शाहरूख ने थोड़ा गौर किया होता तो बौने शख्स के आने मैनेरिज्म होते है, उसके हाथ पैर, उसकी चाल ढाल सब कुछ अलग होता हैं लेकिन यहां शाहरूख सिर्फ छोटे हैं बाकी तो वे षाहरूख ही हैं। अनुष्का शर्मा ने सेरेबल वाल्सी नामक बीमारी से ग्रस्त एक वैज्ञानिक की भूमिका निभाई हैं जिसमें वो अपनी भूमिका से लड़ती दिखाई देती हैं लेकिन जीत नहीं पाती। ये भूमिका इससे पहले प्रियंका चोपड़ा और कल्कि कोचलिन निभा चुकी हैं, अनुष्का उनके आसपास तक नहीं हैं। कैटरीना कैफ ने एक हताश प्रेमिका की भूमिका ग्लैमरस तरीके से निभा दी हैं जिसमें उन्होंने अपने आकर्षक जिस्म का सहारा लिया। सहायक भूमिका में मौहम्मद जीशान मनोरजंन के पल जरूर जुटाते दिखाई देते हैं वरना तिग्मांशु धूलिया तक ने अपने आप को वेस्ट ही किया है। फिल्म में आकर्षण पैदा करने के लिये ढेर सारी अभिनेत्रियां की परेड है जसै काजोल, आलिया भट्ट, दीपिका पादुकोण, जुही चावला तथा श्रीदेवी, अभय देयोल आदि। यहां तक एक गाने में सलमान खान भी दिखाई दिये, लेकिन ये सारे मिलकर फिल्म को दिलचस्प नहीं बना वाते।

सब मिलाकर फिल्म शाहरूख खान के बेहतरीन अभिनय के लिये देखी जा सकती है।

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