भीमराव और रमाबाई विधवा पुनर्विवाह के लिए समाज के खिलाफ खड़े होंगे

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By Mayapuri
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Bhimrao and Ramabai will stand against the society for widow remarriage

एण्टीवी के ‘एक महानायक-डॉ- बी.आर.आम्बेडकर‘ की कहानी में अभी महिलाओं के सशक्तिकरण जैसे महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे को दिखाया जा रहा है. जहां, घरेलू हिंसा जैसी चीज काफी ज्यादा फैली हुई है. भीमराव (अथर्व) और रमाबाई (नारायणी महेश वरणे) पीड़ितों को उनके अधिकारों के बारे में समझाने और गलत व्यवहार किए जाने पर सही मुआवजा मांगने में मदद करते हैं. अब आगे आने वाली कहानी में विधवा पुनर्विवाह का एक और महत्वपूर्ण मुद्दा दिखाया जाएगा. जिस विधवा को लेकर सवाल खड़ा किया गया है, वह नरोत्तम जोशी की अपनी बहन है, जिसके पति की मौत हो गई है और उसके देवर ने शादी का प्रस्ताव रखा है. इसकी वजह से उसके माता-पिता और ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया. भीमराव और रमाबाई, उस विधवा को उसके अधिकारों के बारे में जागरूक करके और साथ ही अपने देवर से शादी करने की बात समझा कर उसकी मदद करते हैं. और समाज के खिलाफ खड़े हो जाते हैं.

युवा भीमराव की भूमिका निभा रहे अथर्व कहते हैं, “डॉ बी.आर आम्बेडकर, महिलाओं के सशक्तिकरण के सबसे बड़े समर्थकों में से एक थे. उन्होंने महिलाओं के उद्धार का रास्ता तैयार किया था. उन्होंने भारत में महिला अधिकारों का जमकर समर्थन किया और महिला अधिकारी की सुरक्षा और उनकी भलाई के लिये कुछ कानून भी बनाए. 1920 में बाबासाहेब ने विधवाओं से संबंधित अंत्योष्टि प्रथाओं पर रोक लगा दी. इसके बाद वे “हिन्दू कोड बिल” लेकर आए, जो संपत्ति पर महिलाओं के अधिकार, संपत्ति के रख-रखाव, शादी, तलाक, गोद लेने, अल्पसंख्यक और संरक्षण की घोषणा थी.” आगे अपनी बात रखते हुए, रमाबाई का किरदार निभा रहीं, नारायणी महेश वरणे कहती हैं, “बाबासाहेब के चर्चित वाक्य का उल्लेख कर रही हूं, ‘महिलाओं के साथ के बिना एकता व्यर्थ है. महिलाओं को शिक्षित किए बिना शिक्षा का कोई फल नहीं. महिलाओं की शक्ति के बिना आंदोलन अधूरा है.‘ महिलाओं के अधिकारों को आकार देने में डाॅ आम्बेडकर ने माध्यम का काम किया था. पहले, महिलाएं पीड़ित होती थीं और उन्हें कई सारी सामाजिक समस्याओं का सामना करना पड़ता था, जैसे घरेलू हिंसा, विधवाओं का शोषण, विधवाओं का पुनर्विवाह. बाबासाहेब ने ना केवल इन प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया, बल्कि संविधान में भी यह प्रावधान कर दिया कि महिलाओं के साथ बराबरी का व्यवहार किया जाए. महिलाओं की बराबरी का प्रावधान हर क्षेत्र के लिये था, चाहे वह शिक्षा हो, रोजगार या फिर सामाजिक और आर्थिक अधिकार. यह बाबासाहेब के वैधानिक सुधार का ही नतीजा है कि आज के दौर में महिलाएं ना केवल अपने अधिकारों के बारे में जानती हैं, बल्कि आत्मनिर्भर भी हैं.”

‘एक महानायक-डाॅ बी.आर आम्बेडकर में देखिए, ‘महिला सशक्तिकरण‘ स्पेशल एपिसोड, रात 8.30 बजे, हर सोमवार से शुक्रवार सिर्फ एण्डटीवी पर!

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