पेश है चाणक्य में 'सिंहरण' के रोल में प्रसिद्धि पाने वाले संजीव पुरी का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू By Shanti Swaroop Tripathi 26 Apr 2020 | एडिट 26 Apr 2020 22:00 IST in टेलीविज़न New Update Follow Us शेयर ‘‘मेरा मानना है कि वर्तमान समय में हमारे देश का नेतृत्व राष्ट्र की सोच रहा है..’’-संजीव पुरी 1991 में दूरदर्शन पर प्रसारित डाॅ. चंद्र प्रकाश द्विवेदी निर्देशित धारावाहिक‘‘चाणक्य’’में सिंहरण का किरदार निभाकर चर्चा में आए अभिनेता संजीव पुरी ने बाद में बतौर अभिनेता,लेखक व निर्देशक कई फिल्में व सीरियल किए.इन दिनों वह दो फिल्मों के निर्देशन के अलावा एक वेब सीरीज भी कर रहे हैं.कोरोना के चलते दूरदर्शन पर ‘‘चाणक्य’’के पुनः प्रसारण से वह काफी उत्साहित हैं. प्रस्तुत है संजीव पुरी से ‘‘मायापुरी’’ के लिए एक्सक्लूसिव बातचीतः तीस वर्ष बाद दूरदर्शन पर ‘‘चाणक्य’’ के पुनः प्रसारण की कितनी सार्थकता है? -मेरे हिसाब से तीस वर्ष पहले जब यह प्रसारित हुआ था,उस वक्त जितनी सार्थकता थी,उससे आज कहीं ज्यादा है.क्योंकि जो स्थितियां हैं,जो हालात हैं,और आज जो आम आदमी में जागृति है,आज मेेरे हिसाब से देश व राष्ट्र के लिए सोचने वालों की तादात ज्यादा है.आज हम उस मुल्क में बैठे हैं,जिसकी जनसंख्या का 65 प्रतिशत हिस्सा 35 या उससे कम उम्र के लोगों का है.आज तीस साल बाद पैंसठ प्रतिशत जनता ऐसी है,जिसने ‘चाणक्य’ देखा ही नही था, क्योंकि तब यह पैदा ही नही हुए थे अथवा इनकी उम्र इतनी कम थी कि यह इसे समझ नहीं पाए होंगे.मेरे हिसाब से ‘चाणक्य’अति उपयोगी है.क्योंकि यह सिर्फ राष्ट्र की बात करता है.राष्ट्र को इक्कट्ठा करने की बात करता है.राष्ट्रवाद की बात करता है.आज इसका महत्व बहुत है. इस वक्त पूरे देश में राष्ट्रवाद की बात ज्यादा हो रही है.कुछ लोग इसे एक राजनीतिक पार्टी के साथ जोड़कर देख रहे हैं,ऐसे में चाणक्य की बातें और चाणक्य की नीतियां लोगों को किस तरह से असर करेंगी? देखिए,राष्ट्वाद को एक राजनीतिक पार्टी के साथ जोड़कर देखते हैं,तो आप यह मान रहे हैं कि इससे पहले जो पार्टी थी,वह राष्ट्रवादी नही थी.मेरे हिसाब से यह कहना और सोचना गलत है.हर बार हर सदी में,हर युग में,हर दशक में ऐसे लोग होते हैं,जो देश के बारे में सोचते हैं.ऐसा नही है कि ऐसा सोचने वाले लोग न रहे हो.मगर एक समय ऐसा आता है,जब ऐसा ज्यादा से ज्यादा लोग सोचने वाले हो जाते हैं. और उसकी काफी कुछ वजह नेतृत्व पर निर्भर करती है.आज मेरा यह मानना है कि जिस ढंग का नेतृत्व है,जो सब कुछ छोड़कर राष्ट्र की सोच रहा है,उसकी वजह से लोगों में जागृति है.आज इसके बारे में सोचना और आज की पीढ़ी को अहसास दिलाना कि सैकड़ो वर्ष पहले भी एक ऐसा शख्स था,जो कि राष्ट्र को इकट्ठा करने की सोचता था.वह अपने आप में बहुत जरुरी है, जिससे उन्हें अहसास हो कि यह कोई आज की बात नहीं है.भारत कोई 1947 में नही बना था,1947 में भारत के टुकड़े हुए थे.भारत एक प्राचीन संस्कृति है,हमारी सोच है.चाणक्य कोई एक व्यक्ति नहीं,बल्कि चाणक्य एक सोच थी.वह सोच जितनी फैलेगी,उतना एक इंसान राष्ट् के बारे में सोचेगा.चाणक्य कहते हैं,‘अपने से पहले राष्ट्.’अब यदि यह संदेश हर इंसान तक पहुॅचे कि‘अपने से पहले राष्ट्र’तो देश का उत्थान ही होगा.‘चाणक्य’धर्म की बात नहीं करते.चाणक्य सिर्फ राजनीति की बात करते हैं,सिफ राजनीति की बात करते हैं.मेरा मानना है कि हम लोगों ने बहुत वर्ष अपनी संस्कृति को भूलकर एक तरह से पश्चिमी सभ्यता व संस्कृति के पीछे भागने की चेष्टा की,बिना यह सोचे,जाने या समझे कि हमारे अपने पास क्या था.खुद को या अपनी प्राचीन संस्कृति को अवैज्ञानिक मान लेना और पश्चिमी सभ्यता को वैज्ञानिक मान लेना,यह अपने आप में गलत है.आज से तीन चार सौ वर्ष पहले यही पश्चिमी सभ्यता वाले गैलेलियो को फांसी चढ़ा रहे थे,जब वह कह रहे थे कि सूरज और पृथ्वी कैसे घूमते हैं.और हमारे यहां अगर आप देखें,तो हमारे पंचाग हजारों साल पहले का है.हमारे यहां कुंभ का मेला 12 वर्ष में सिर्फ एक बार होता है और 12 वर्ष में एक बार इसलिए होता है,क्योंकि गुरू का नक्षत्र घूमकर 12 वर्ष में एक बार आता है.तो हमें हजारो साल से यह बात पता थी,इसलिए अपनी सभ्यता को अवैज्ञानिक और दूसरों की सभ्यता को वैज्ञानिक मानकर चलना मेरे हिसाब से बहुत गलत है.चाणक्य का संदेश है कि अपनी संस्कृति को देखो,यह जानने,समझने व पढ़ने का प्रयास करो कि आप क्या थे?आपके पास क्या था? आपकी धरोहर क्या है?और जब हम उस धरोहर को समझने लगेंगे,तो हमें बहुत कुछ ऐसा सीखने को मिलेगा,जहां तब पश्चिमी सभ्यता अभी तक नहीं पहुॅची है. जब धारावाहिक‘‘चाणक्य’’बनना शुरू हुआ,उस वक्त तक आप कई सीरियलों व फिल्मों में काम कर चुके थे.ऐसे में ‘चाणक्य’से जुड़ने के लिए किस बात ने आपको प्रेरित किया था? देखिए,‘चाणक्य’ बनने से पहले मेरा एक धारावाहिक ‘‘पुलिस फाइल्स से’’काफी लोकप्रिय हो चुका था.इसे मैने लिखा था और मुख्य किरदार भी निभाया था.इसके बाद मैने धारावाहिक ‘सिग्मा’ किया.‘बुनियाद’ सहित डेढ़ दर्जन धारावाहिकों व कुछ फिल्मों में काम कर चुका था.फिर जब डाॅक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी से मुलाकात हुई,तो एक कलाकार के तौर पर ‘‘चाणक्य’’से जुड़ना एक बहुत बड़ी चुनौती थी.उसकी वजह यह थी कि इसकी भाषा संस्कृति निष्ठ थी,आपकी जबान साफ होनी चाहिए,आप अच्छी भाषा बोलने वाले होेने चाहिए.ईश्वर की कृपा से मैं ऐसे परिवार में पैदा हुआ,जहां मेरे पिता संस्कृत भाषा के ज्ञाता थे.मेरी मां शिक्षक थी.तो बचपन से ही मेरी परवरिश उत्कृष्ट भाषा की गोद में हुई.इसके अलावा मुझे इसमें जो किरदार निभाने का अवसर मिला,उसमें घुड़सवारी की बहुत ज्यादा जरुरत थी.और चाणक्य के समय में घुड़सवारी बिना काठी के यानि कि नंगी पीठ पर होती थी.यह काफी कठिन था.जब मुझे यह बताया गया,तो मैं समझ गया.मैं इतिहास का विद्यार्थी रहा हूं.इतिहास में मेरी रूचि रही है.फिर तक्षशिला/गांधार के सेनापति सिंहरण का किरदार निभाना अपने आप में चुनौती थी.सिंहरण का किरदार 28 वर्ष की उम्र से 55 वर्ष की उम्र तक का है.इसे मना करने का सवाल ही नहीं था. आपने सिंहरण को क्या समझा? देखिए,सिंहरण अपने आप में एक जबरदस्त राष्ट्रवादी किरदार है.वह गांधार का सेनापति है.वह गांधार के लिए अपनी जान देने के लिए तैयार है.मगर जब गांधार पर कैकेई प्रांत की तरफ से आक्रमण होता है,तो उसे धोखे से बेहोश कर दिया जाता है.क्योंकि उसके रहते गांधार को परास्त करना संभव नही था.इस बात के लिए उसे ग्लानि होती है और वह इसके लिए मृत्युदंड स्वीकार करने को तैयार हो जाता है.मगर गांधार नरेश आंभी कुमार उसे जीवित रहने का दंड देते हैं.उस ग्लानि को लिए हुए वह पृथक सैनिक बन जाता है ,जो कि पैसे के लिए अपनी सेवाएं देते हैं.मगर इसके बावजूद जब यवन शासक अलेक्ज़ेंडर की सेना भारत की सीमाओ पर पहुॅचती है,तो वह उनकी सेना पर हमला करके उनके हथियार नष्ट करने का काम करता रहता है,जिससे वह उन हथियारों का उपयोग भारतीय सैनिकों पर कर सके.कुछ समय बाद चाणक्य स्वयं सिंहरण के पास आते हैं और कहते हैं,‘मेरे लिए तुम्हारा जीवन बहुमूल्य है.अब तुम्हें चंद्रगुप्त को तैयार करना है.फिर चंद्रगुप्त को शस्त्र आदि की शिक्षा देने का काम करते हैं। .पर अंत में लड़ते हुए मारा जाता है.तो यह अपने आप में अति खूबसूरत और प्रतिक्रिया वाला किरदार है. सिंहरण की एंट्री पांचवे एपिसोड में होती है.आठवे एपिसोड से 14 वें एपिसोड तक नही रहता.मगर 14वें एपिसोड से उसकी पुनः वापसी होती है और अंत तक रहता है.‘‘चाणक्य’’के लेखक व निर्देषक डाॅं.चंद्र प्रकाश द्विवेदी को मेरी प्रतिभा पर यकीन था.तो उन्होने इसे अति महत्वपूर्ण किरदार के रूप में आगे लिखा.मुझे इस बात की खुशी तब भी थी और आज भी है.मुझे तो अचंभा है कि लोग तीस वर्ष बाद भी इसे याद कर रहे हैं.‘चाणक्य’के बारे में बात कर रहे हैं. धारावाहिक‘‘चाणक्य’’और सिंहरण के किरदार का आपके जीवन व करियर पर क्या असर हुआ था? -देखिए,मैं सिर्फ अभिनेता नहीं बनना चाहता था.मै लेखक,निर्देशक और अभिनेता बनना चाहता था.‘चाणक्य’के कारण मेरी पहचान बनी कि मैं किसी भी चुनातीपूर्ण किरदार को निभा सकता हूं.उसके बाद मुझे‘‘चंद्रकांता’, ‘मीरा बाई’में राणा सांगा का किरदार निभाने का अवसर मिला.तो ‘‘चाणक्य’’की वजह से मुझे आगे काफी अच्छा काम मिला.मैने उसके बाद ‘रंजिश’सहित कई सीरियल किए.कुछ सीरियल लिखे और उनमें अभिनय भी किया.लेकिन कलाकार के तौर पर ‘चाणक्य’जैसे धारावाहिक करके जो खुशी मिली,उसे शब्दों में व्यक्त नही किया जा सकता.वैसे भी इस तरह का काम करने का अवसर बार बार नही मिलता.‘चाणक्य’ने मुझे एक उत्कृष्ट भाषा में खुद को व्यक्त करना सिखाया.मैं कई कलाकारों को जानता हूं,जिन्हे रिजेक्ट कर दिया गया था क्योंकि ‘चाणक्य’के लिए आवश्यक संस्कृत निष्ठ भाषा उनकी जुबान पर नहीं बैठ रही थी.दूसरे कलाकार संवाद रट कर बोलने का प्रयास करते थे,तो वह नेच्युरल नजर न आता.मुझे फायदा यह हुआ कि लोगों को समझ में आया कि मैं इस तरह की भाषा में भी काम कर सकता हूं और तमाम ऐसे लोगों से परिचय हुआ कि जिससे मेरे लेखन का काम भी आगे बढ़ा.उसके बाद मैने अभिनय किया.लेखन किया.निर्देशन भी किया.मैने एक सीरियल और एक फिल्म का लेखन व निर्देशन किया.मुझे लगता है कि मैने जो भी काम किया,उसकी नींव तो धारावाहिक ‘‘चाणक्य’’ही था.मुंबई पहुॅचने के बाद मुझे अभिनय करने के लिए पहला बड़ा धारावाहिक‘‘चाणक्य’’ही मिला था.‘‘चाणक्य’ से पहले के सभी धारावाहिक मैने दिल्ली में रहते हुए किए थे.चाणक्य की वजह से मेरे मुंबई में रहने की समस्या हल हो गयी थी. वर्तमान पीढ़ी,जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पब संस्कृति व आधुनिकता में जीती है,उस पर धारावाहिक ‘‘चाणक्य’’और आपके सिंहरण के किरदार का किस तरह का प्रभाव पड़ने की संभावनाएं आपको नजर आती हैं? पहली बात तो मैं यह नहीं मानता कि वर्तमान पीढ़ी इस तरह की नही हैं या उस तरह की है अथवा यह पीढ़ी बिगड़ गयी है.मेरा मानना है कि वर्तमान समय की पीढ़ी बहुत ही ज्यादा सजग है.वर्तमान समय की पीढ़ी जिस तरह से अपनी जिम्मेदारी और अपने हक को समझती हैं,उसके लिए वह बधाई की पात्र है.पहली बात मैं आज की पीढ़ी से बिल्कुल निराश नही हूं इसकी वजह है कि मैं आज की पीढ़ी के साथ भी बातचीत करता हूॅं,रहता हूं,उसके साथ घूमता हूं.मैं उनके अंदर एक तरह का जज्बा देखता हूं.आज आप जब राष्ट्रवाद की बात कर रहे हैं और आप खुद मान रहे हैं कि आज राष्ट्रवाद की लहर है,और आप यह भी जानते हैं कि आप जिस देश में राष्ट्रवाद की लहर की बात कर रहे हैं,वहां पैंसठ प्रतिशत आबादी 35 वर्ष या उससे कम उम्र के युवाओं की है.तो आज की पीढ़ी सजग तो है.अगर आप यह मान लें कि पैंसठ प्रतिशत लोग राष्ट्रवाद में योगदान दे रहे हैं,और राष्ट्रवाद की लहर चल रही है,तो उनकी सजगता पर कोई सवाल उठाया ही नहीं जा सकता.रह गया ‘‘चाणक्य’’का,तो ‘चाणक्य’का अपने आप में देखा जाना या चंद्रगुप्त की कहानी सुनना या चाणक्य की कहानी सुनना, यह आज की पीढ़ी का साक्षात्कार है। एक ऐसे काल खंड से,कुछ ऐसे किरदारों से जो हुए हैं,जो हमारे इतिहास का हिस्सा हैं, जिन्होने सैकड़ों साल पहले अखंड भारत का सपना देखा था.आज भी जोे राष्ट्रवादी है,वह अखंड भारत की ही बात करता है.जाहिर सी बात है कि आप राष्ट्रवादी हैं,आप अपने राष्ट्र के लिए कुछ महसूस करते हैं,जो ‘चाणक्य’या चंद्रगुप्त या सिंहरण ने सैकड़ों वर्ष पहले की,उसके लिए मेहनत की,इन सभी किरदारों ने सैकड़ो या हजारों वर्ष पहले जो कर्म किया या कहा,विचारों को मठा,वह सब मठने का जो रस है राष्ट्रवाद का,वह तो आज की पीढ़ी को मिलना तय है.वर्तमान पीढी का साक्षात्कार उन किरदारों के संग हो रहा है, जिनकी सोच राष्ट्रवादी है.शिक्षा में ही राष्ट्रवादिता है. अब‘‘चाणक्य’’के पुनः प्रसारण पर आपको किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं? देखिए,मुझे प्रतिकियाएं बहुत ज्यादा सकारात्मक मिल रही है.मुझे बेहद खुशी है.प्रतिक्रिया भी दो तीन तरह की हैं.एक तो वह पुराने कलाकार, जिनके साथ तीस वर्ष पहले हमने इकट्ठे काम किया था?हम आपस में ही एक दूसरे को फोन करके बात करते हैं.दूसरे कई सारे नए लोग जो हमारे जीवन में बहुत बाद में प्रविष्ट हुए,वह ‘चाणक्य’देखने के बाद फोन करके आश्चर्य के साथ कहते हैं कि, ‘अरे,आपने धारावाहिक‘चाणक्य’में सिंहरण किया था.’उनकी इस हैरानी देख मजा आता है.उन्हे इस बात का अंदाजा ही नही था कि मैने ऐसा किरदार निभाया होगा..क्योंकि आप हों या मैं ,हम आज जो काम कर रहे हैं,उसी के बारे में बात करते हैं,हम बातचीत के दौरान तीस वर्ष पुरानी कहानी नहीं सुनाते हैं.आज जब लोगों ने देखना शुरू किया,तो वह कह रहे हैं,अरे,आपने तो बहुत अच्छा अभिनय किया है.अब ऐसा किरदार क्यों नही कर रहे हो?हम कब तुम्हें इस तरह के सशक्त किरदार में सशक्त अभिनय के साथ देखेंगे,तो उनकी बाते सुनकर मुझे भी हैरानी हो रही है. आपकी नई गतिविधियां क्या हैं? मैं इस वक्त दो फिल्में लिख रहा हूं,स्थितियां सामान्य होने पर उन पर तुरंत काम शुरू होगा.हम एक फिल्म की शूटिंग शुरू करने वाले थे,पर तब तक कोरोना ने सब कुछ ठप्प कर दिया.एक बहुत बड़ी वेब सीरीज है,जो कि बहुत बड़े प्लेटफार्म पर आएगी, लाॅक डाउन खुलते ही उसकी घोषणा हो जाएगी.इसके अलावा दो गाने मैने लिखे हैं,जिन पर मैं ही म्यूजिक वीडियो का निर्देशन कर रहा हूं. गत वर्ष प्रदर्शित फिल्म‘‘बाबा ब्लैक शिप’’में अनुपम खेर के साथ अभिनय भी किया था. पिछले तीस वर्ष के दौरान टीवी पर आए बदलाव को आप किस रूप में देखते हैं?कुछ लोग मानते हैं कि टीवी का स्तर काफी गिर गया है? देखिए,क्या होता है,मैं आपको बताउं,चाहे यहां हो या हालीवुड में हो.हर जगह एक समय आता है जहां हर चीज का मंथन होता है.आज से तीस वर्ष पहले जब हम साप्ताहिक धारावाहिक बनाया करते थे.तब सप्ताह में एक बार एपिसोड प्रसारित होता था.उस वक्त निर्माता, निर्देशक,लेखक,कलाकार और एडिटर सभी के पास वक्त हुआ करता था.तब तसल्ली के साथ हर एपिसोड तैयार करना संभव था.जब आप डेली सोप करने लगते है,यानी कि हर सप्ताह चार से सात एपिसोड बनाने हों,तो हर दिन 20 से 25 मिनट की शूटिग करनी है,उसे एडिट भी करना है,उसका प्रसारण तय है,तब आप समझौता करने लगते हैं.मैंने एक धारावाहिक बनाया था-‘तुझपे दिल कुर्बान’.आर्मी पर आधारित इस धारावाहिक में परमीत सेठी जैसे कलाकार थे.यह 2001 के वक्त डेली सोप से पहले की बात है.यह सोनी टीवी का अति लोकप्रिय धारावाहिक था.इसके आठ एपिसोड हमने असम में पहाड़ों पर,आर्मी की कंटोनमेंट में जाकर फिल्माए थे.इसके अलावा पुणे,बेलगाम के आर्मी कंटोनमेंट में जाकर फिल्म की तरह फिल्माया था,क्योंकि हमारे पास वक्त था.उसके 32 एपीसोड ही हुए थे.पूरे विश्व में इसे पसंद किया गया था.अब तो किसी भी धारावाहिक के 32 एपीसोड की कोई गिनती नहीं होती,अब तो तीस एपीसोड एक माह के अंदर ही प्रसारित हो जाते हैं.अब आप अमरीका या इंग्लैंड में देखें,वहां भी डेली सोप पर आते ही उनकी हालत यही हुई.अब एक ही कमरे में सब कुछ फटाफट फिल्माना है,तो इसे स्तर के गिरने या उठने से नही जोड़ा जाना चाहिए.यह तो फार्मेट की मजबूरी है.फिर मिनी सीरीज बनने लगी.छह सात वर्ष पहले मिनी सीरीज बनी थी ‘द पार्क पेवेलिन’.मैं इसके प्रोडक्शन से जुड़ा हुआ था.उस वक्त तो हमारे यहां किसी ने मिनी सीरीज सुनी ही नहीं थी कि आठ दस एपीसोड की मिनी सीरीज बना सकते हैं.आज तो इतने सारे प्लेटफार्म है,जो आपसे आठ से दस एपीसोड की सीरीज मांगते हैं.आप आराम से आठ दस एपिसोड की मिनी सीरीज फिल्मा कर दे सकते हैं,तो यह बहुत बेहतरीन स्थिति है.आप आराम से स्क्रिप्ट पर मेहनत कर सकते हैं.ऐसे में आप अच्छे से लिख सकते हैं,कलाकारों को अच्छे ढंग से तैयार कर सकते हैं और उसे अच्छे ढंग से फिल्मा सकते हैं.तो फार्मेट की अपनी मजबूरियां हैं. और पढ़ेंः मायापुरी में महाभारत के द्रोणाचार्य सुरेंद्र पाल का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू #Entertainment News #mayapuri #Mayapuri Magazine #Actor Sanjeev Puri #Sanjeev Puri #Sanjeev Puri in Chanakya #Sanjeev Puri Interview #Sanjeev Puri Sinharan #Sinharan in Chanakya #अभिनेता संजीव पुरी #चाणक्य #संजीव पुरी #संजीव पुरी इंटरव्यू #संजीव पुरी चाणक्य #संजीव पुरी सिंहरण हमारे न्यूज़लेटर की सदस्यता लें! विशेष ऑफ़र और नवीनतम समाचार प्राप्त करने वाले पहले व्यक्ति बनें अब सदस्यता लें यह भी पढ़ें Advertisment Latest Stories Read the Next Article