-शान्तिस्वरुप त्रिपाठी
हरियाणा से मंुबई फिल्म नगरी तक की अभिषेक दुहन की यात्रा काफी दिलचस्प रही है। फिल्मों मे हीरो बनने की तमन्ना लेकर मंुबई पहुॅचे अभिषेक दुहन को काफी पापड़ बेलने पड़े। पर उन्होेने हिम्मत नही हारी। अभिषेक अब तक ‘सुल्तान’,‘तेरा सुरूर 2’,‘पटाखा’ जैसी फिल्में कर चुके हैं। इन दिनों वह ‘‘एमएक्स प्लेअर’ पर वेब सीरीज ‘‘दहानम’’ में हरी के किरदार में नजर आ रहे हैं। जबकि उनकी पांच फिल्में प्रदर्षित होने वाली हैं।
प्रस्तुत है अभिषेक दुहन से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंष...
क्या आपके परिवार में कला का माहौल है, जिसने आपको अभिनेता बनने के लिए उकसाया?
मैं हरियाणा के एक किसान परिवार से संबंध रखता हॅूं। मेरे पर दादा, दादा सभी किसान रहे हैं। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं मिट्टी में जन्मा और आज आसमान में उड़ रहा हॅूं। मेरी यह एक ऐसी यात्रा है, जहंा मैने धरती और आकाष दोनो देखा है, तो मुझे यह अनुमान है कि मैं कहां हॅूं। मुझे पता है कि मैं कहंा पैदा हुआ हूंू। मेरा जीवन क्या है। मेरा अस्तित्व क्या है? मेरे लिए सबसे बड़ी खुषी मेरा परिवार, मेरे माता पिता हैं। एक दिन मां से बात हो रही थी तो मैने उनसे कहा, ‘मां अब में तेरा नही रह गया। मैं तो सब का हो गया। अब जब कोई इंसान मेरे सामने खड़ा होता है, तो उसकी आॅंखों में मेरे लिए प्यार व ममता होती है। अब यह मेरी जिम्मेदारी है उसको सच्चे मन से स्वीकार करना। मुझे औरतें मंा स्वरूप,पुरूष पिता स्वरूप नजर आते हैं। ’ कुछ लोग यह सुनकर कहते हंै कि जाट आदमी क्या कह रहा है। हमारे हरियाणा में ‘जय जवान जय किसान’ की बात की जाती हैं। हम दिल कोे खोल कर साफ बात करते हैं।
अभिनेता बनने के लिए आपने किस तरह की तैयारियां की?
आठवीं कक्षा के बाद घर से स्कूल के लिए निकलता था और सीधे सिनेमाघर में जाकर फिल्म देखता था। उसके बाद रेलवे स्टेषन पर जाकर बैठे हुए रेल की पटरियां देखता था, जो कि मुझे उम्मीद देती थीं कि यही पटरियंा एक दिन मुझे मंुबई ले जाएंगी। इसके अलावा मैं अपने षहर के लड़कों को पटाता था कि चलो घर से भाग जाते हैं। सभी से कहता कि चलो मंुबई चलते हैं। क्यांेकि मुझे मंुबई आना था। यह उस बच्चे की तैयारी थी जिसे मंुबई आने की चाह थी। हमारे यहां थिएटर को प्राथमिकता नहीं थी। घर पर अभिनेता बनने की बात कर नहीं सकता था। एक बार मैंने स्कूल मंे कुछ लड़कों को बताया कि मुझे हीरो बनना है, तो वह सभी मेरा मजाक उड़ाने लगे। पर मैं अपना काॅलर चैड़ा करता। तो यह भी मेरी तैयारी थी। मंुबई पहुॅचने के बाद मेरी समझ में आया कि अभिषेक तुम्हे अपना पहनावा, चाल, लुक बदलना होगा। अभिनय सीखना पड़ेगा। अब बचपन की इच्छा को तराष कर कला मंे परिवर्तित करने का मसला था। इन्ही को मैं अपनी तैयारी मानता हूंू। उसके बाद तो किस्मत ने साथ दिया और मैं काम करता चला गया। मैने मंुबई पहुॅचने के बाद नादिरा बब्बर के साथ ‘एकजुट’ में पूरे ढाई वर्ष तक मैने काम किया। थिएटर में सब काम किया। थिएटर करने से लोगों के सामने अपनी झिझक को खत्म करने और खुद को पहचानने का मौका मिला। अफसोस मै एनएसडी या पुणे फिल्म संस्थान पढ़ाई करने के लिए नही गया। और आज तक मुझे इसकी कमी महसूस नही हुई। मैं अभी भी सीख रहा हूँ। मुझे बहुत कुछ सीखना है। मुझे लगता है कि मेरे अंदर बहुत कुछ है, जिसे बाहर आना चाहिए। लेकिन दो वर्ष बाद मैंने थिएटर को अलविदा कह दिया। क्यांेकि मैं सिनेमा करना चाहता था। मैं लोगो को बड़े परदे पर कहानियां सुनाना चाहता था।
सिनेमा में षुरूआत कैसे हुई?
मैने सबसे पहले कुछ टीवी सीरियल किए। सीरियल ‘यूं ही’ में मैने नगेटिब किरदार निभाया। सीरियल ‘षुभ विवाह’ में एजाज खान के साथ काम किया। इसमें हम दोनो मेनलीड में थे। फिर मुझे लगा कि मैं यह करने के लिए नहीं आया हॅूं। टीवी पर काम करने के तरीके से मेरे अंदर का कलाकार संतुष्ट नहीं था। लोग मुझसे जिस तरह का काम करवाना चाहते थे, वह मैं कर नहीं पा रहा था, मैं फेल हो रहा था। फेल इसीलिए हो रहा था, क्योंकि वैसा काम मैं मन से करना ही नही चाहता था। मैं तो मजबूरी मंे टीवी पर काम कर रहा था। मैं पूरे पांच वर्ष तक खाली बैठा रहा। पांच वर्ष तक मैं अपने बड़े होने का इंतजार करता रहा। क्योंकि मुझे तो हीरो बनना था। पर उस वक्त में छोटे व डेढ़ पसली वाला इंसान था। मेरे चेहरे से हीरोइज्म नजर नहीं आ रहा था। तो उसके लिए मंैने पांच वर्ष तक इंतजार किया। फिर हिमेष रेषमियां ने मुझे 2016 में फिल्म ‘‘तेरा सुरुर 2’’ में अभिनय करने का अवसर दिया। दोस्त के कहने पर आॅडीषन देने गया था। पटकथा पढ़ने को मिली, तो आखिरी के दो पन्नों में ही मैं था, मगर वह जानदार थे। फिर षानू षर्मा ने मुझे आॅडीषन के लिए बुलाया और सलमान खान के साथ फिल्म ‘सुल्तान’ दी। टीपी का किरदार था, किरदार का अपना असित्त्व था। बेबी को बास पसंद है’ गाना मुझ पर ही फिल्माया गया था। यहां से मेरा हौसला बढ़ा। फिर नाटकीय तरीके से मेरी मुलाकात कास्टिंग डायरेक्टर गौतम किषनचंदानी से हो गयी। उनकी वजह से मुझे विषाल भारद्वाज की फिल्म ‘‘पटाखा’’ मिली। तो एक के बाद एक फिल्म मिलती चली गयी। उसके बाद विधु विनोद चोपड़ा ने राज कुमार राव के साथ फिल्म ‘एक लड़की को देखा तो... ’करने का अवसर दिया। इसमें सोनम कपूर भी थीं।
आपका सपना सत्तर एम एम का सिनेमा करना था,पर आपने तो मोबाइल वाला सिनेमा यानी कि वेब सीरीज ‘‘दहानम’’ कर ली?
बहुत अच्छा सवाल है। ‘पटाखा’ और ‘एक लड़की को देखा’ के बाद कोरोना की वजह से लाॅक डाउन लग गया। पर मैं किस्मत का धनी हूॅं। मंैने लाॅक डाउन में तीन फिल्मों की षूटिंग की। अभी मेरी पांच फिल्में प्रदर्षित होनेे वाली हैं। फिर ‘दहानम’ की। सिनेमा में कहानी व हर किरदसर को विस्तार देना संभव नहीं ,पर वेब सीरीज में यह संभव है। मै वेब सीरीज को अच्छा मानता हूँ। लेकिन यदि चुनाव करने की बात आएगी, तो मैं सिनेमा छोड़कर कहीं नहीं जाउंगा। पर राम गोपाल वर्मा गुणवत्ता वाला काम करते हंै, इसलिए ‘दहानम’ से जुड़ा और मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा। सिनेमा में एक्सपरीमेंट करना मुष्किल है। जबकि एम एक्स प्लेअर काफी प्रयोग कर रहा है। मैने इसकी सीरीज ‘आश्रम’ देखी हुई है। राम गोपाल वर्मा के साथ काम करना मेरा सपना रहा है। उन्होने ‘सत्या’, ‘कंपनी’जैसी फिल्में दी हैं।
‘‘दहानम’’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?
मेरे किरदार का नाम हरी है। एक इंसान जब अपने अस्तित्व,अपनी आजादी व अपने सम्मान के लिए आवाज उठाता है, जब एक इंसान अपने परिवार की सुरक्षा के लिए हथियार उठाता है, तो यह आसान नही होता। कोई भी इंसान बंदूक नही उठाना चाहता। कोई भी इंसान किसी की हत्या नही करना चाहता। पर उसे ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। आत्म रक्षा का हक हमारी सरकार और हमारा भगवान भी देता है। हरी भी अपनी आत्मा, अपने सम्मान व अपने परिवार की रक्षा करता है। उन लोगों के लिए भी लड़ता है, जो अपनी रक्षा नही कर सकते। हरी वह इंसान है, जो ख्ुाद से बाहर निकलकर पूरे गांव वालों की, हर इंसान के बारे में सोचता है। कहानी मंे एक मोड़ आता है,जब वह पवनी को हौसला देता है। पर जब उसके पिता की बेरहमी के साथ हत्या कर दी जाती है, तो वह रोष अलग है।
इसके अलावा क्या कर रहे हैं?
मेरी पांच फिल्में आने वाली हैं। एक है- ‘गबरू गैंग’,दूसरी ‘मंडली’,‘तीसरी का नाम ‘नर्क’ है। एक हेमंत सरन की ‘धूप छांव’ है। ‘धूप छंाव’ पारिवारिक रिष्तो पर आधारित है। इसमें मेरे साथ अहम षर्मा और समीक्षा भटनागर भी हैं। इसमें 1984 में दिल्ली में पैदा हुए इंसान की पूरी जिंदगी की यात्रा है। मेरे बच्चे बड़े हो जाते हैं।